धर्म-अध्यात्म

कब है हरियाली तीज, जाने तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और धार्मिक महत्व

Shiddhant Shriwas
9 Aug 2021 11:02 AM GMT
कब है हरियाली तीज, जाने तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और धार्मिक महत्व
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शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 10 अगस्त, मंगलवार की सायं 6 बजे आरंभ हो जाएगी और 11 तारीख, बुधवार की शाम 4 बजकर 53 मिनट तक रहेगी

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। Hariyali Teej 2021 Vrat, Puja Vidhi, Shubh Muhurat : तीज वास्तव में यह एक ऐसा पर्व है जिसमें करवा चौथ जैसा श्रृंगार का वातावरण है, महिला मुक्ति सा एहसास है, राखी एवं भाई दूज जैसा पारिवारिक संगम है,करवा चौथ जैसा समर्पण है, मालपुओं व घेवर से दीवाली जैसी खुशबू है, होली सी उमंग है, प्रकृति की पूर्ण अनुकंपा है। मान्यता है इस दिन भगवान शिव तथा माता पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था। इसीलिए करवा चौथ की भांति इस दिन भी महिलाएं पति की दीर्घायु एवं सुखमय गृहस्थ जीवन के लिए निर्जल व्रत रखती हैं और पार्वती जी को श्रृंगार की हरी वस्तुएं अर्पित करती हैं। इन दिनों चारों तरफ हरियाली छाई होती है।

ज्योतिषीय दृष्टि से विशेष है इस बार हरियाली तीज?

वैसे तो शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 10 अगस्त, मंगलवार की सायं 6 बजे आरंभ हो जाएगी और 11 तारीख, बुधवार की शाम 4 बजकर 53 मिनट तक रहेगी, परंतु उदया तिथि के अनुसार हरियाली तीज का व्रत 11 अगस्त को ही रखा जाएगा। श्रावणी शुक्ल मधुस्त्रवा ,हरियाली या सिंधारा तीज 11 अगस्त को पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र और बुधवार को पड़ रही है जो इस बार अत्यंत शुभ है। इसे श्रावणी तीज भी कहा जाता है। इस बार 11 अगस्त को शिव योग सायंकाल 6 बजकर 30 मिनट तक है जिसमें तीज का व्रत रखना अधिक सार्थक रहेगा। इस दिन रवि योग भी प्रातः 9 बजकर 30 बजे से लेकर पूरे दिन रहेगा। यही नहीं, इस दिन विजय मुहूर्त भी दोपहर ढाई बजे से साढ़े तीन बजे तक रहेगा। यदि आप राहुकाल का विचार करते हैं तो यह दोपहर साढ़े 12 बजे से लेकर 2 बजे तक रहेगा।

क्या है पारिवारिक ,सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व ?

ऐसी मान्यता है कि मां पार्वती ने 107 जन्म लिया। कठोर तप के बाद 108वें जन्म पर उन्हें भगवान शिव ने पत्नी के रूप में स्वीकार किया। तभी से इस व्रत का चलन हुआ। इस दिन जो सुहागन महिलाएं, 16 श्रृंगार करके भगवान शिव एवं पार्वती की पूजा करती हैं, उनके सुहाग की रक्षा होती है। इस दिन सुहागिनें मेंहदी लगाकर झूलों पर सावन का आनंद मनाती हैं। प्रकृति धरती पर चारों ओर हरियाली की चादर बिछा देती है और मन मयूर हो उठता है। इसीलिए हाथों पर हरी मेंहदी लगाना प्रकृति से जुड़ने की अनुभूति है जो सुख समद्धि का प्रतीक है। इसके बाद वही मेंहदी लाल हो उठती है जो सुहाग, हर्षोल्लास एवं सौंदर्य का प्रतिनिधित्व करता है।

जिस लड़की के ब्याह के बाद पहला सावन आता है उसे ससुराल में नहीं रखा जाता। इसका कारण यह भी था कि नवविवाहिता अपने मां बाप से ससुराल में आ रही कठिनाइयों, खटटे् मीठे अनुभवों को सखी सहेलियों के साथ बांट सके और मन हल्का करने के अलावा कठिनाईयों का समाधान भी खोजा जा सके। इसीलिए नवविवाहित पुत्री की ससुराल से सिंधारा आता है। और ऐसी ही सामग्री का आदान प्रदान किया जाता है ताकि संबंध और मधुर हों और रिश्तेदारी प्रगाढ़ हो। इसमें उसके लिए साड़ियां, सौंदर्य प्रसाधन, सुहाग की चूड़ियां व संबंधित सामान के अलावा उसके भाई बहनों के लिए आयु के अनुसार कपड़े, मिष्ठान तथा उसकी आवश्यकतानुसार गिफ्ट भेजे जाते हैं। आज जब छोटी छोटी बातों के कारण तलाक तक की नौबत आ जाती है तो वर्तमान युग में तीज का त्योहार मात्र औपचारिकता निभाने की बजाए उसकी भावना और दिल से मनाना अधिक सार्थक होगा।

पूजन विधि

यों तो तीज का त्योहार तीन दिन मनाया जाता है परंतु समयाभाव के कारण इसे एक दिन ही मनाना रह गया है क्योंकि इसके साथ साथ आगे पीछे कई अन्य पर्व भी चल रहे होते हैं। जैसे इस बार 13 अगस्त को नागपंचमी व्रत पड़ रहा है। तीज से एक दिन पहले मेंहदी लगा ली जाती है। तीज के दिन सुबह स्नानादि करके श्रृंगार करके नए वस्त्र व आभूषण धारण करके गौरी की पूजा करती हैं। इसके लिए मिट्टी या अन्य धातु से बनी शिवजी,पार्वती व गणेश जी की मूर्ति रखकर उन्हें वस्त्रादि पहना कर रोली, सिंदूर, अक्षत आदि से पूजन करती हैं। इसके बाद आठ पूरी, छ पूओं से भोग लगाती हैं। फिर यह बायना जिसमें चूड़ियां, श्रृंगार का सामान व साड़ी, मिठाई, दक्षिणा या शगुन राशि इत्यादि अपनी सास, जेठानी, या ननद को देते हुए चरण स्पर्श करती हैं। इसके बाद पारिवारिक भोजन किया जाता है। सामूहिक रूप से झूला झूलना, तीज मिलन, गीत संगीत, जलपान आदि किया जाता है। कुल मिलाकर यह पारिवारिक मिलन का सुअवसर होता है। तीज के बहाने संपूर्ण शरीर की ओवर हालिंग भी हो जाती है।

इस दिन तीज पर तीन चीजें त्यागने का भी विधान है।

1. पति से छल कपट

2. झूठ - दुर्व्यवहार

3. पर निन्दा

तीज पर ही गौरा विरहाग्रि में तपकर शिव से मिली थी। ये तीन सूत्र सुखी पारिवारिक जीवन के आधार स्तंभ हैं जो वर्तमान आधुनिक समय में और भी प्रासंगिक हो जाते हैं।

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