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जैन धर्म में आलू-जिमीकंद जैसी सब्जियों का सेवन माना जाता है वर्जित, जाने इसका कारन
दुनिया में हिंदू, इस्लाम, ईसाई, बौद्ध, सिख और जैन समेत करीब एक दर्जन धर्म प्रचलित हैं. इनमें से 4 धर्मों का उद्गम स्थान तो भारत ही है. सभी धर्मों में जीवन जीने की खास शैली प्रचलित है. उनकी कई परंपराएं अपने आप में दुर्लभता लिए हुए हैं, जो दूसरों को विस्मय में डाल देती हैं. आज हम जैन धर्म की ऐसी ही कुछ आश्चर्यजनक परंपराओं के बारे में बताते हैं.
जैन धर्म में जमीन में उगी सब्जियां खानी वर्जित
बहुत कम लोगों को पता होगा कि जैन धर्म (Jainism) में आलू या जिमीकंद जैसी सब्जियां खाना वर्जित माना गया है. असल में जमीन के अंदर उगने वाली सब्जियों को कंद कहा जाता है. ऐसी सब्जियों में आलू, लहसुन, प्याज, मूली, गाजर, शकरकंद, जमीकंद जैसी शामिल हैं. जैन धर्म में जमीन के अंदर उगने वाली सब्जियों को अशुद्ध माना जाता है. जैन धर्मगुरुओं के मुताबिक ऐसी सब्जियों के सेवन से इंसान में तामसिक भावना बढ़ती है, जिससे इंसान गलत रास्तों की ओर उन्मुख होता है. इसीलिए जैन धर्म में आलू-जिमीकंद या दूसरी कंद सब्जियों से बचने की कोशिश की जाती है.
व्रत में दिन में पानी तक नहीं पीते
जैन धर्म (Jainism) के विद्वानों के मुताबिक जिस क्षेत्र में जैनी रहते हैं, वहां पर वे आलू की सब्जी खाने से बचते हैं. जब उनके व्रत चल रहे होते हैं तो वे दिन में पानी तक नहीं पीते. शाम होने पर वे केवल एक बार ही पानी पीते हैं. जब उनकी अंतिम आराधना होती है तो वे संथारा या सल्लेखना करते हैं. हिंदू और बौद्ध की तरह जैन धर्म में भी'अहिंसा परमो धर्म' के वाक्य को अटूट रूप में स्वीकार किया जाता है. वे किसी भी प्रकार के जीवों पर अत्याचार का विरोध करते हैं और मांसाहार को हराम मानते हैं.
इस्लाम में सब कुछ खाना हलाल
वहीं इस्लाम और ईसाई धर्म की बात की जाए तो उनमें सभी शाकाहारी और मांसाहारी चीजों के भक्षण को अच्छा माना गया है. दुनिया के अधिकतर मुसलमान इस बात को मानते हैं कि अल्लाह ने धरती पर जो कुछ भी बनाया या प्राणियों के रूप में भेजा, उन सबका उपभोग किया जा सकता है. यही वजह है कि मांसाहार उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया है. मुसलमान सुअर को छोड़कर सभी जीवों का मांस खाना पसंद करते हैं. वहीं ईसाई घोड़े और कुत्तों को छोड़कर किसी भी जानवर का मांस खाना बुरा नहीं मानते.