धर्म-अध्यात्म

बद्रीनाथ धाम में नहीं बजाया जाता शंख

3 Nov 2023 4:13 PM GMT
बद्रीनाथ धाम में नहीं बजाया जाता शंख
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बद्रीनाथ धाम : घूमने के हर कोई शौकीन होते है। कुछ लोग धार्मिक स्थानों पर घूमना पसंद करते है। इनमे से ऐसी ही एक जगह है बद्रीनाथ धाम । देवभूमि उत्तराखंड की खूबसूरती हर जगह फेमस है यही है बद्रीनाथ धाम । यहाँ बद्रीनाथ के दर्शन करने के लिए देश-दुनिया से श्रद्धालु पहुंचते हैं। बद्रीनाथ धाम चार धामों में से एक है। ये धाम भगवान विष्णू को समर्पित है। यहां दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।बद्रीनाथ धाम ये मंदिर कई रहस्यों से भरा है। दरअसल बद्रीनाथ धाम में शंख नहीं बजाया जाता। आमतौर पर किसी भी मंदिर में पूजा के समय शंख बजाना अनिवार्य होता है पर यहाँ नहीं। जानिए ऐसा क्यों है।

विज्ञान के अनुसार सर्दियों में हर जगह बर्फबारी होने लगती है। ऐसे में अगर यहां शंख बजाया जाए तो उसकी ध्वनि पहाड़ों से टकराकर गूंज पैदा करती है। जिससे बर्फ में दरारें पड़ने या बर्फीले तूफान की आशंका है. भूस्खलन भी हो सकता है.शायद यही कारण है कि प्राचीन काल से ही बद्रीनाथ धाम में शंख नहीं बजाया जाता रहा है। शंख की ध्वनि सभी वाद्य यंत्रों में सबसे ऊंची ध्वनि मानी जाती है। इसकी प्रतिध्वनि से कंपन उत्पन्न होता है। इसके अलावा एक पौराणिक कारण भी है।हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार हिमालय क्षेत्र पर राक्षसों का आतंक था। ऋषि-मुनि राक्षसों से डरते थे और अपने आश्रमों में पूजा भी नहीं कर पाते थे। एक बार माता लक्ष्मी यहां बने तुलसी भवन में ध्यान कर रही थीं। उसी समय भगवान विष्णु ने शंखचूर्ण नामक राक्षस का वध किया।

शंख आमतौर पर युद्ध की समाप्ति के बाद बजाया जाता है लेकिन भगवान विष्णु माता लक्ष्मी के ध्यान में विघ्न नहीं डालना चाहते थे इसलिए शंख नहीं बजाया जाता था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार तभी से बद्रीनाथ धाम में शंख नहीं बजाया जाता।ऐसी भी मान्यता है कि यहां साधेश्वरजी का मंदिर था और ब्राह्मण पूजा के लिए आते थे। राक्षसों ने उन्हें पूजा करने से रोका और उनके साथ मारपीट की। यह देखकर साधेश्वर महाराज ने अपने भाई अगस्त्य ऋषि से मदद मांगी। जब अगस्त ऋषि भी मंदिर में पूजा करने गए तो राक्षसों ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया।इसके बाद अगस्त्य ऋषि ने मां भगवती का स्मरण किया। कहा जाता है कि उनकी चीख सुनकर मां कुष्मांडा प्रकट हुईं और वहां मौजूद सभी राक्षसों का वध कर दिया। लेकिन अतापी और वातापी नाम के दो राक्षस वहां से भाग निकले। अतापी मंदाकिनी नदी में छिप गया और वातापी बद्रीनाथ धाम में जाकर एक शंख में छिप गया। कहा जाता है कि तभी से बद्रीनाथ धाम में शंख बजाना वर्जित है।

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