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धर्म-अध्यात्म
भय से मुक्ति दिलाते हैं च्यवनेश्वर महादेव, इंद्र के वज्र प्रहार का भी यहां नहीं हुआ था असर
Manish Sahu
28 July 2023 8:58 AM GMT

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धर्म अध्यात्म: उज्जैन के 84 महादेवों में श्री च्यवनेश्वर महादेव 30वें स्थान पर हैं. कहा जाता है कि एक बार देवराज इंद्र ने क्रोधित होकर महर्षि च्यवन पर अपने व्रज से प्रहार कर दिया था, लेकिन न सिर्फ महर्षि च्यवन बच गए, बल्कि उनका भय भी समाप्त हो गया.
भय से मुक्ति दिलाते हैं च्यवनेश्वर महादेव, इंद्र के वज्र प्रहार का भी यहां नहीं हुआ था असर
उज्जैन में है श्री च्यवनेश्वर महादेव का मंदिर.
देवाधिदेव भगवान शंकर की नगरी उज्जैन में वैसे तो अनेकों शिव मंदिर हैं, लेकिन 84 महादेव के पूजन-अर्चन का महात्म कुछ भिन्न है. इन शिव मंदिर से कई कथाएं जुड़ी हुई हैं, जिसमें इन मंदिरों की उत्पत्ति और मंदिर में किए गए पूजन-अर्चन से लेकर भगवान का पूजन-अर्चन करने से होने वाले विशेष लाभ के बारे में बताया गया है. 84 महादेव के 30 क्रम में आने वाले श्री च्यवनेश्वर महादेव की महिमा भी कुछ ऐसी ही अपार है, क्योंकि इस मंदिर से जुड़ी कथा बताती है कि किस प्रकार देवराज इंद्र के क्रोधित होने के बावजूद उनके वज्र के प्रहार से महर्षि च्यवन न सिर्फ बच गए, बल्कि उनका भय भी सदा-सदा के लिए समाप्त हो गया.
श्री च्यवनेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी पंडित पवन गुरु ने बताया कि सप्तसागरों में से एक पुरुषोत्तम सागर के सामने, इंदिरा नगर ईदगाह के सामने यह अति प्राचीन मंदिर विद्यमान है, जहां भगवान शिव की काले पाषाण की प्रतिमा विराजमान है. मंदिर में भगवान शिव के साथ ही माता पार्वती, श्री गणेश, कार्तिक स्वामी और नंदी जी की प्रतिमा भी अति मनोहारी है.
मंदिर में वैसे तो प्रतिदिन भगवान का विशेष पूजन-अर्चन कर महाआरती की जाती है, लेकिन श्रावण मास में भगवान के पूजन-अर्चन का विशेष क्रम जारी रहता है. मंदिर के पुजारी पंडित पवन गुरु ने बताया कि यदि सच्चे मन से श्री च्यवनेश्वर महादेव का पूजन-अर्चन किया जाए तो न सिर्फ भय से मुक्ति मिलती है, बल्कि हमारी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं.
इंद्र के वज्र प्रहार से च्यवनेश्वर महादेव ने की थी च्यवन ऋषि की रक्षा
पौराणिक कथाओं के अनुसार बताया जाता है कि यह वही शिवलिंग है, जिनकी आराधना करने से च्यवन ऋषि को इंद्र का वज्र प्रहार भी नुकसान नहीं पहुंचा पाया था. बताया जाता है कि महर्षि भृगु के पुत्र च्यवन थे, जो कि वैसे तो परम तपस्वी थे ही, लेकिन जिस समय वे वितस्ता नदी के किनारे तपस्या में लीन थे, उसी समय राजा शर्याति की कन्या सुकन्या तपस्वी च्यवन पर धूल-मिट्टी लगे होने के कारण उन्हें पहचान नहीं पाई और उसने अनभिज्ञता के कारण अपनी सखियों के साथ च्यवन ऋषि के दो चमकते हुए नेत्रों में कांटे चुभा दिए, जिससे नेत्रों से खून निकलने लगा.
इस कृत्य से ऋषि च्यवन अत्यधिक दुखी हुए, जिससे राजा शर्याति की सेना में बीमारियां फैलना शुरू हो गईं. सारी बातें पता चलने पर शर्याति बेटी सुकन्या को महर्षि च्यवन के पास ले गए, जहां सुकन्या ने अनजाने में किए गए इस कृत्य के लिए महर्षि से न सिर्फ माफी मांगी, बल्कि महर्षि च्यवन को अपने पति के रूप में स्वीकार्य किया. महर्षि भी सुकन्या को पत्नी के रूप में पाकर प्रसन्न हुए, जिसके फलस्वरूप शर्याति के राज्य में होने वाली बीमारियां रुक गईं.
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