धर्म-अध्यात्म

Chhath Puja: क्‍यों मनाया जाता है छठ पूजा का महापर्व?

Tulsi Rao
30 Oct 2022 9:29 AM GMT
Chhath Puja: क्‍यों मनाया जाता है छठ पूजा का महापर्व?
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। Chhath puja ki shuruat kab hui: छठ पूजा के दिन सूर्य देवता और छठी मईया की पूजा विधि विधान से की जाती है, लेकिन क्‍या आप जानते हैं इस पर्व को कब से मनाना शुरू किया गया. भगवान सूर्य की आराधना कब से की जाने लगी. इसका इतिहास बहुत ही पुराना बताया जाता है. पौराणिक मान्‍यताओं के मुताबिक, छठ पूजा को सतयुग से जोड़ कर देखा जाता है. ऐसी कई कथा मिलती है जिसमें राजा प्रियवंद, भगवान राम, पांडवों के अलावा दानवीर कर्ण की कहानी का जिक्र मिलता है, तो चलिए छठ के शुभ अवसर पर इन कहानियों के बारे में जानते हैं.

राजा प्रियवंद ने की थी पूजा

एक पौराणिक मान्‍यता के मुताबिक, राजा प्रियवंद निः संतान थे और उस वजह से परेशानी में थे. इस समस्‍या को लेकर उन्‍होंने महर्षि कश्‍यप से बात की. उस समय महर्षि कश्‍यप ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कराया. इस यज्ञ में बनाई गई खीर को राजा प्रियवंद की पत्‍नी को खिलाई गई. उसके बाद उनके यहां एक पुत्र का जन्‍म हुआ, लेकिन वह मृत पैदा हुआ, इस वियोग में राजा ने भी अपने प्रण त्‍याग दिए. उसी समय ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना ने राजा प्रियवंद से कहा की, मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्‍पन्‍न हुई हूं. इसलिए मेरा नाम षष्‍ठी भी है. अगर तुम मेरी पूजा करो और लोगों में इसका प्रचार करो. उसके बाद राजा ने षष्‍ठी के दिन विधि विधान से पूजा पाठ किया और उसके बाद उनके यहां पुत्र की प्राप्ति हुई.

श्रीराम और सीता दे दिया था अर्घ्‍य

पौराणिक मान्‍यताओं के मुताबिक, लंका के राजा रावण का वध करने के बाद श्रीराम जब पहली बार अयोध्‍या पहुंचे थे. उस समय भगवान श्रीराम और मां सीता ने रामराज्‍य की स्‍थापना के लिए छठ का उपवास रखा था और उस समय सूर्य देव की पूजा अर्चना की थी.

द्रौपदी ने किया था व्रत

पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार, छठ व्रत की शुरूआत द्रौपदी से मानी जाती है. द्रौपदी ने पांडवों के अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य और उनके बेहतर जीवन के लिए छठी मईया का व्रत रखा था. उसके बाद पांडवों को उनका राजपाट वापस मिल गया था.

दानवीर कर्ण ने की थी सबसे पहले पूजा

महाभारत के मुताबिक, दानवीर कर्ण सूर्य के पुत्र थे और वो हमेशा सूर्य की पूजा करते थे. इस कथा के अनुसार सबसे पहले कर्ण ने ही सूर्य की उपासना शुरू की थी. वह रोज स्‍नान के बाद नदी में जाकर अर्घ्‍य देते थे.

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