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फाइल फोटो
लोक आस्था के महापर्व छठ पर आज प्रमुख सूर्य मंदिरों और नदी-तालाबों के किनारे आस्था का सैलाब उमड़ेगा। आज शाम अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। लोक आस्था के महापर्व छठ पर आज प्रमुख सूर्य मंदिरों और नदी-तालाबों के किनारे आस्था का सैलाब उमड़ेगा। आज शाम अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। गुरुवार को उदयगामी सूर्य को अर्घ्य देने के बाद महापर्व छठ संपन्न होगा। आचार्य प्रियेन्दू प्रियदर्शी के अनुसार, अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने का समय शाम में 4:30 से 5:26 बजे के बीच और उदयगामी सूर्य को अर्घ्य देने का समय सुबह 6:34 बजे से है। शाम में अर्घ्य गंगा जल से दिया जाता है। जबकि उदयगामी सूर्य को अर्घ्य कच्चे दूध से देना चाहिए। आचार्य राजनाथ झा के अनुसार, भारतीय सनातन धर्म में सूर्य उपासना का विशेष पर्व छठ है। ये पर्व पूर्णत: आस्था से जुड़ा है।
छठ महापर्व देता है ये सात महत्वपूर्ण संदेश
सहयोग
प्रिंस कुमार राजू (आशीर्वाद सेवा समिति ट्रस्ट, बिहार प्रमुख) कहते हैं, 'महापर्व छठ का मुख्य आधार सहयोग है। इसमें हर व्यक्ति आना योगदान देता है। महापर्व शुरू होते ही फल और पूजन सामग्री का वितरण शुरू होता है। जो जितना सक्षम होता है, उतना दूसरे को देता है। घर से घाट तक लाइटिंग की व्यवस्था की जाती है। इसमें सब मदद करते हैं। इससे संतुष्टि मिलती है।'
सरोकार
डॉ. बीरबल झा (चेयरमैन, मिथिला फाउंडेशन) ने कहा, 'छठ को पर्यावरण की शुद्धता से जोड़ा गया है। दिवाली में घर की सफाई करते हैं पर छठ में गली, मोहल्ले संग जलस्रोतों की भी सफाई करते हैं। पहले लोग नदी, कुआं, तालाबों का ही पानी पीते थे। छठ से उनकी सफाई की शुरुआत हुई। ऐसे में छठ को राष्ट्रीय पर्व घोषित करना चाहिए। इससे देश के सभी जलस्रोतों की सफाई में मदद मिलेगी।'
समर्पण
फिल्म कलाकार विनीत कुमार के मुताबिक छठ में समर्पण का भाव साफ दिखता है। यह धरती पर रहने वाले समस्त जीवों की भलाई के लिए है। छठ व्रत में हर कोई समर्पित रहता है। इसके लिए किसी को कहने की जरूरत नहीं होती। कोई रास्तों की सफाई करके तो कोई घाट की तैयारी में अपना योगदान देता है। सब चाहते हैं कि व्रती को दिक्कत न हो। चाहे खरना की तैयारी हो या फिर घाट पर अर्घ्य देने की बात... सबमें लोग तन-मन से जुटते हैं।
सद्भाव
कोचिंग संचालक व शिक्षाविद गुरु रहमान ने कहा कि भगवान सूर्य साक्षात शक्ति के रूप हैं और एकमात्र देवता हैं जो प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं। इस पर्व में गजब का सद्भाव दिखता है। क्या हिंदू क्या मुस्लिम... कोई भेदभाव नहीं। मुस्लिम महिलाएं चूल्हा बनाती हैं तो उसे हिन्दू समुदाय उपयोग करता है। इस पर्व में धर्म की दीवारें टूट जाती हैं। मैं कई मुस्लिम परिवारों को जानता हूं जो इस व्रत को करते हैं। पूरी आस्था के साथ प्रसाद का ग्रहण करते हैं।
संयम
लोक गायिका शारदा सिन्हा ने कहा कि छठ में संयम बहुत जरूरी है। इस महापर्व के प्रति लोगों की आस्था ही उन्हें अनुशासित कर देती है। 36 घंटे के पर्व में हर वक्त व्रती यही दुआ करते हैं कि उनसे कोई गलती न हो जाए। दिवाली बाद से ही खाने-पीने में शुद्धता बरती जाती है। जिनके घर यह पर्व होता है वे लहसुन-प्याज तक नहीं खाते हैं। इस महापर्व में सात्विकता का पुट रहता है।
समन्वय
भोजपुरी गायिका देवी ने कहा, 'वैसे तो समन्वय किसी भी पर्व का आधार है, लेकिन छठ में यह पग-पग पर दिखता है। तालाब और पोखरों के किनारे घाट बनाने में, गेहूं सुखाने और पिसाने से लेकर अर्घ्य देने तक में यह दिखता है। चार दिनों तक व्रती और उनके परिवारजन हर कदम पर एक-दूसरे की बातों व विचारों को महत्व देते हैं। घाट से अपार्टमेंट तक यह भाव दिखता है।'
संस्कृति
महावीर मंदिर न्यास के सचिव आचार्य किशोर कुणाल ने कहा कि छठ देश-विदेश में बिहार की सांस्कृतिक पहचान और बिहारी परंपरा का ब्रांड एंबेस्डर है। इसके दो भाग हैं। पहले सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। दूसरे में छठी मइया की पूजा होती है। शोध के मुताबिक माता पार्वती के ही एक रूप स्कन्दमाता की छठी मइया के रूप में पूजा की जाती है। राज्य में सूर्य पूजा का प्रमाण एक हजार साल पहले भी मिलता है। माना जाता है कि वनवास में द्रौपदी ने पहला छठ किया था।
अर्घ्य का समय
बुधवार शाम
4.30 से 5.26 अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य
गुरुवार सुबह
6:34 उदयगामी सूर्य को अर्घ्य
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