धर्म-अध्यात्म

छठ पर्व इन चार परंपराओं के बिना है अधूरा, आप भी जानें

Gulabi
9 Nov 2021 1:45 PM GMT
छठ पर्व इन चार परंपराओं के बिना है अधूरा, आप भी जानें
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छठ पर्व, छठ या षष्ठी पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है

छठ पर्व, छठ या षष्ठी पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है। सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है। यह एक ऐसा पर्व है जो वैदिक काल से चला आ रहा है। छठ पर्व मुख्यः रुप से ॠषियो द्वारा लिखी गई ऋग्वेद मे सूर्य पूजन, उषा पूजन और आर्य परंपरा के अनुसार मनाया जाता हैं। छठ पूजा सूर्य, उषा, प्रकृति,जल, वायु और उनकी बहन छठी मइया को समर्पित है। छठ में कोई मूर्तिपूजा शामिल नहीं है।

छठ महापर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से आरंभ होता है और इसका समापन कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी को होता है। इस पर्व में पवित्र स्नान, उपवास,लंबे समय तक पानी में खड़ा होना, प्रसाद और अर्घ्य देना शामिल है। इस पर्व की परंपरा काफी कठिन है। और इन परंपराओं के बिना यह पर्व अधूरा है। आइए जानते हैं क्या है छठ महापर्व की ये परम्पराएं जिनके बिना यह त्योहार अधूरा है।
कार्तिक शुक्ल पक्ष कि चतुर्थी तिथि को छठ महापर्व कि पहली परंपरा का निर्वाह किया जाता है। छठ पर्व का पहला दिन आज यानि 8 नवंबर को मनाया जा रहा है। आज का दिन यानि कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को नहाए-खाए के रूप में मनाया जाता है। इस परंपरा के अनुसार सबसे पहले घर की सफाई कर उसे शुद्ध किया जाता है। इसके पश्चात छठव्रती स्नान कर शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। घर के अन्य सभी सदस्य व्रती सदस्यों के भोजन करने के बाद ही भोजन ग्रहण करते हैं। भोजन के रूप में कद्दू-चने की दाल और चावल ग्रहण किया जाता है।
छठ पर्व के दूसरे दिन यानि 9 नवंबर को दूसरी परंपरा का निर्वाह होता है। दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिनभर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे 'खरना' कहा जाता है। खरना के प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है।
छठ पर्व का मुख्य दिन होता है कार्तिक शुक्ल षष्ठी, यानि तीसरा दिन। यह तीसरा दिन 10 नवंबर को है। इस दिन छठ प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ, चावल के लड्डू बनाते हैं। इसके अलावा फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है। सायंकाल को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बांस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रती के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर जाते हैं। सभी छठव्रती तालाब या नदी किनारे सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं। सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है।
चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी 11 नवंबर को पड़ रही है। इस दिन व्रती वहीं पुन: इकट्ठा होते हैं, जहां उन्होंने शाम को अर्घ्य दिया था। व्रती सुबह उगते सूर्य को कमर भर पानी में रहकर अर्घ्य देती हैं। और व्रती कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं।
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