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![आज देवशयनी एकादशी से चातुर्मास का हुआ प्रारंभ आज देवशयनी एकादशी से चातुर्मास का हुआ प्रारंभ](https://jantaserishta.com/h-upload/2022/07/10/1772877-vb.webp)
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आज 10 जुलाई रविवार को देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) से चातुर्मास (Chaturmas) का प्रारंभ हुआ है
आज 10 जुलाई रविवार को देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) से चातुर्मास (Chaturmas) का प्रारंभ हुआ है. आज से भगवान श्रीहरि विष्णु योग चार माह तक योग निद्रा में रहेंगे. योग निद्रा में होने के कारण आज से लेकर देवउठनी एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी तक कोई भी शुभ कार्य नहीं होगा. चातुर्मास में विवाह, गृह प्रवेश, सगाई आदि जैसे मांगलिक कार्य वर्जित हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु चातुर्मास में पाताल लोक में निवास करते हैं. काशी के ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट से जानते हैं चातुर्मास की महत्वपूर्ण तिथियां, कथा और पूजा के बारे में.
चातुर्मास की महत्वपूर्ण तिथियां 2022
चातुर्मास का प्रारंभ: देवशयनी एकादशी, 10 जुलाई, रविवार
आषाढ़ शुक्ल एकादशी तिथि की शुरूआत: 09 जुलाई, शनिवार, शाम 04:39 बजे
आषाढ़ शुक्ल एकादशी तिथि की समाप्ति: 10 जुलाई, रविवार, दोपहर 02:13 बजे
चातुर्मास का समापन: देवउठनी एकादशी, 04 नवंबर, शुक्रवार
कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि की शुरूआत: 03 नवंबर, गुरुवार, शाम 07:30 बजे
कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि की समाप्ति: 04 नवंबर, शुक्रवार, शाम 06:08 बजे
चातुर्मास के चार माह कौन-कौन से हैं?
चातुर्मास आषाढ़ शुक्ल एकादशी से शुरु होती है और कार्तिक शुक्ल एकादशी को खत्म होती है. इसमें कुल 5 माह होते हैं, लेकिन तिथियों के हिसाब से देखा जाए, तो चार माह ही होते हैं. आषाढ़ शुक्ल एकादशी से श्रावण शुक्ल एकादशी एक माह, श्रावण शुक्ल एकादशी से भाद्रपद शुक्ल एकादशी दो माह, भाद्रपद शुक्ल एकादशी से अश्विन शुक्ल एकादशी तीन माह और अश्विन शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी चार माह. इस तरह से चातुर्मास में हिन्दू कैलेंडर के आषाढ़, सावन, भाद्रपद, अश्विन और कार्तिक माह आते हैं.
चातुर्मास में पूजा पाठ
चातुर्मास में पूजा पाठ पर कोई पाबंदी नहीं होती है. इस माह में आपको भगवान शिव और भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा करनी चाहिए. चातुर्मास भगवान शिव का प्रिय माह सावन भी शामिल है. इसमें आप भगवान शिव की आराधना करके अपनी मनोकामनाएं पूरी कर सकते हैं.
चातुर्मास संक्षिप्त कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने वामन अवतार के समय असुरराज बलि से 3 पग भूमि दान स्वरूप मांगी, जिसके फलस्वरूप उन्होंने बलि को वरदान मांगने को कहा, तो उसने कहा कि हे प्रभु! जब भी वह सुबह सोकर उठे, तो उसे साक्षात् आपके दर्शन हों. तब भगवान विष्णु बलि के साथ पाताल लोक में निवास करने लगे.
इस पर माता लक्ष्मी ने बलि को अपना भाई बना लिया और भगवान विष्णु को उनके वचन से मुक्त करा लिया. वे फिर वापस अपने धाम चले गए. लेकिन बलि से कहा कि वे हर साल आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक पाताल लोक में रहेंगे. तब से यह चार माह चातुर्मास के होते हैं, जिसमें भगवान विष्णु पाताल लोक में योग निद्रा में होते हैं.
![Ritisha Jaiswal Ritisha Jaiswal](https://jantaserishta.com/h-upload/2022/03/13/1540889-f508c2a0-ac16-491d-9c16-3b6938d913f4.webp)
Ritisha Jaiswal
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