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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि की साढ़े साती से पीड़ित व्यक्ति को शारीरिक मानसिक परिवारिक के साथ-साथ आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे में जानिए शनि के प्रकोप से बचने के लिए किन मंत्रों का जाप करना होगा शुभ।
नई दिल्ली, Shani Sade Sati: न्याय देवता शनि देव को कर्मों का फल देने वाला देवता कहा जाता है। भगवान सूर्य के पुत्र शनिदेव व्यक्ति को उसके कामों के अनुसार शुभ या फिर अशुभ फल देते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनि ग्रह को नवग्रहों में सबसे सबसे धीमी गति से चलने वाला ग्रह माना जाता है। शनि को 12 राशियों में घूमने में करीब 30 साल का वक्त लगता है। इसलिए यह हर राशि में करीब ढाई साल तक रहते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, हर व्यक्ति को जीवन में एक बार शनि की साढ़े साती का जरूर सामना करना पड़ता है। शनि के साढ़े साती के चरण कई लोगों के लिए कष्टकारी साबित होते हैं। ऐसें में जानिए साढ़े साती के दुष्प्रभावों को किन मंत्रों के द्वारा काफी हद तक कम कर सकते हैं।
क्या है शनि का साढ़े साती?
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जब कुंडली में जन्म राशि अर्थात चंद्र राशि से 12वें स्थान पर शनि का गोचर आरंभ होता है, तो शनि की साढ़े साती आरंभ हो जाती है। शनि एक राशि में करीब ढाई साल तक रहते हैं। तीन भावों में होने के कारण कुछ साढ़े सात साल का अंतराल होता है। इस कारण शनि के इस विशेष गोचर को शनि की साढ़े साती कहते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनि की छोटी साढ़े साती तब भी होती है जब शनि जन्म कुंडली में स्थित चंद्रमा से चतुर्थ भाव, अष्टम भाव में भ्रमण करते हैं। इसके अलावा शनि ग्रह किसी की कुंडली के पहले, दूसरे, बारहवें औऱ जन्म के चंद्र के ऊपर से गुजरे तब भी शनि की साढ़े साती होती है।
शनि साढ़े साती के कितने होते हैं चरण
कहा जाता है कि शनि साढ़े साती के कुल चीन चरण होते हैं, जो ढाई-ढाई साल के होते हैं। पहले चरण में शनि की साढ़े साती होने पर जातक की आर्थिक स्थिति पर, दूसरे चरण में परिवारिक जीवन पर और तीसरे चरण पर सेहत पर असर पड़ता है। माना जाता है कि दूसरा चरण सबसे ज्यादा कष्टकारी होता है।
शनि के साढ़े साती के दुष्प्रभावों को कम करने का मंत्र
शनिवार के दिन स्नान आदि करने के बाद संभव हो तो काले रंग के वस्त्र धारण कर लें। इसके बाद शनि मंदिर जातक शनि देव की पूजा करें। शनि देव की मूर्ति पर जल या सरसों का तेल, फूल, सिंदूर, अक्षत, काला वस्त्र, नैवेद्य आदि अर्पित करें। इसके बाद दीपक और धूप जलाएं। फिर शांति के साथ बैठकर शनि स्तोत्र, शनि चालीसा के साथ इन मंत्रों का जाप करें।