धर्म-अध्यात्म

रोजाना पूजा के समय करें इन मंत्रों का जाप मिलेगा कर्ज से मुक्ति

Apurva Srivastav
2 April 2024 9:10 AM GMT
रोजाना पूजा के समय करें इन मंत्रों का जाप मिलेगा कर्ज से मुक्ति
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नई दिल्ली : बुधवार के दिन भगवान गणेश की पूजा-उपासना की जाती है। साथ ही विशेष कार्यों में सिद्धि प्राप्ति हेतु बुधवार को भगवान गणेश के निमित्त व्रत भी रखा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान गणेश की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में व्याप्त सभी दुख दूर हो जाते हैं। साथ ही घर में सुख, समृद्धि और शांति आती है। भगवान गणेश को ऋणहर्ता भी कहा जाता है। अतः ज्योतिष कर्ज से निजात पाने के लिए साधक को भगवान गणेश की पूजा करने की सलाह देते हैं। अगर आप भी आर्थिक विषमता से परेशान हैं, तो रोजाना पूजा के समय इन मंत्रों का जप करें।
ऋण मुक्ति मंत्र :
ऊँ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्रये श्रियम् ।।
ऊँ हिरण्यवर्णा हरिणीं सुवर्णरतस्त्रजाम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो मम आ वह ।।
ऊँ चंद्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्।
तां पदिनेमीं शरणमहं प्रपघेSलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणोमि ।।
ऊँ आदित्यवर्णे तपसोधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोSथ विल्व:।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्य ब्राह्मा अलक्ष्मी:।।
ऊँ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्रये श्रियम् ।।
ऊँ कर्दमेन प्रजा भूता मयि संभव कर्दम ।
श्रियं वासय में कुले मातरं पद्मालिनीम् ।।
ऊँ आर्द्रा पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगला पद्ममालिनीम् ।
चन्द्रां हिरण्मयी लक्ष्मीं जातवेदो मम आवह ।।
ऊँ तांमSआ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यांहिरण्यं प्रभूतंगावो दास्योSश्वान् विन्देयं पुरुषानहम् ।।
“मंगलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रद ।
स्थिरासनो महाकाय: सर्वकामविरोधक:।।”
कर्ज मुक्ति मंत्र
ॐ गं ऋणहर्तायै नमः।
ऊँ तां मSआ वह जातवेदों लक्ष्मीमनगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामवश्वं पुरुषानहम् ।।
अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनाद प्रमोदिनीम् ।
श्रियं देवीमुप ह्रये श्रीर्मा देवी जुषताम् ।।
ऊँ उपैतु मां देवसख: कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोSस्मिराष्ट्रेस्मिन् कीर्त्तिमृद्धिं ददातु मे ।।
ऊँ क्षुत्पिपासमलां ज्येष्ठामलक्ष्मी नाशयाम्यहम् !
अभूतिम समृद्धिं च सर्वां निणुर्द में गृहात् ।।
ऊँ मनस: काममाकूतिं वाच: सत्यमशीमहि ।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि: श्री: श्रयतां दश: ।।
ऊँ आप: सृजंतु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे ।
निच देवीं मातरं श्रियं वासय में कुले ।।
ऊँ आर्दा य: करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदो म आवह ।।
“ॐ अत्रेरात्मप्रदानेन यो मुक्तो भगवान् ऋणात् दत्तात्रेयं तमीशानं नमामि ऋणमुक्तये।”
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