धर्म-अध्यात्म

मंगलवार के दिन करें हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम् का जाप

Tara Tandi
10 Oct 2023 6:46 AM GMT
मंगलवार के दिन करें हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम् का जाप
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हिंदू धर्म में हर दिन किसी न किसी देवी देवता को समर्पित किया गया है वही मंगलवार का दिन हनुमान पूजा के लिए उत्तम माना जाता है इस दिन भक्त पवनपुत्र हनुमान की विधि विधान से पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं।
मान्यता है कि ऐसा करने से प्रभु की अपार कृपा बरसती है लेकिन इसी के साथ ही अगर मंगलवार के दिन श्री हनुमान तांडव स्तोत्र का पाठ सच्चे मन से किया जाए तो भगवान जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और जातक को सुख समृद्धि व धन प्राप्ति का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
॥ श्री हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम् ॥
वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम् ।
रक्ताङ्गरागशोभादयं शोणापुच्छं कपीश्वरम् ॥
भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरंजनं, दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम्।
सुकण्ठकार्यसाधकं विपक्षपक्षबाधकं, समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम्॥1॥
सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न ।
इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वानराऽधिनाथ आप शं तदा, स रामदूत आश्रयः ॥2॥
सुदीर्घलोचनेन, पुच्छगुच्छशोभिना, भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ ।
कृतौ हि कोसलाधिपौ, कपीशराजसन्निधौ, विदहजेशलक्ष्मणौ, स मे शिंव करोत्वरम् ॥3॥
सुशब्दशास्त्रपारगं विलोक्य रामचन्द्रमाः, कपीश नाथसेवकं, समस्तनीतिमार्गगम्।
प्रशस्य लक्ष्मणं प्रति, प्रलम्बबाहुभूषितः कपीन्द्रसख्यमाकरोत्, स्वकार्यसाधकः प्रभुः ॥4॥
प्रचण्डवेगधारिणं, नगेन्द्रगर्वहारिणं, फणीशमातृगर्वहृद्दृस्यवासनाशकृत् ।
विभीषणेन सख्यकृद्विदेह जातितापहृत्, सुकण्ठकार्यसाधकं, नमामि यातुधतकम् ॥5॥
नमामि पुष्पमौलिनं, सुवर्णवर्णधारिणं गदायुधेन भूषितं, किरीटकुण्डलान्वितम्।
सुपुच्छगुच्छतुच्छलंकदाहकं सुनायकं विपक्षपक्षराक्षसेन्द्र-सर्ववंशनाशकम् ॥6॥
रघूत्तमस्य सेवकं नमामि लक्ष्मणप्रियं दिनेशवंशभूषणस्य मुद्रीकाप्रदर्शकम्।
विदेहजातिशोकतापहारिणम् प्रहारिणम् सुसूक्ष्मरूपधारिणं नमामि दीर्घरूपिणम् ॥7॥
नभस्वदात्मजेन भास्वता त्वया कृता महासहा यता यया द्वयोर्हितं ह्यभूत्स्वकृत्यतः ।
सुकण्ठ आप तारकां रघुत्तमो विदेहजां निपात्य वालिनं प्रभुस्ततो दशाननं खलम् ॥8॥
इमं स्तवं कुजेऽह्नि यः पठेत्सुतसा नरः कपीशनाथसेवको भुनक्तिसर्वसम्पदः ।
प्लवङ्गराजसत्कृपाकताक्षभाजनास्सदा न शत्रुतो भयं भवेत्कदापि तस्य नुस्त्विह ॥9॥
नेत्राङ्गनन्दधरणीवत्सरेऽनङ्गवासरे ।
लोकेश्वराख्यभट्टेन हनुमत्ताण्डवं कृतम् ॥10॥
॥ ॐ इति श्री हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम् ॥
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