धर्म-अध्यात्म

चाणक्य नीति : बहुत पूज्यनीय होते है ये 7 लोग, इन्हें पैर लगाना भी होता है पाप

Renuka Sahu
4 Jun 2022 2:01 AM GMT
Chanakya Niti: These 7 people are very revered, they also have to set foot in sin
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फाइल फोटो 

आचार्य चाणक्य ने चाणक्य नीति में 7 ऐसे लोगों के बारे में बताया है, जो पूज्यनीय माने जाते हैं.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आचार्य चाणक्य ने चाणक्य नीति में 7 ऐसे लोगों के बारे में बताया है, जो पूज्यनीय माने जाते हैं. इन्हें पैर लगाने से भी व्यक्ति बन जाता है पाप का भा​गीदार. जानिए आचार्य चाणक्य का श्लोक और उन सात लोगों के बारे में. श्लोक है - पादाभ्यां न स्पृशेदग्निं गुरु ब्राह्मणमेव च, नैव गां न कुमारीं च न वृद्धं न शिशुं तथा.

अग्नि को हिंदू धर्म में देवता माना गया है. किसी भी शुभ काम में बिना दीपक के या यज्ञ के शुरुआत नहीं होती. ऐसे में ​अग्नि या अग्निकुंड में पैर लगाना पाप माना गया है. ये सीधे तौर पर देवी देवता का अपमान माना जाता है. ऐसी गलती करने से व्यक्ति पाप का भागीदार तो बनता ही है, साथ ही वो अग्नि के ताप से जल भी सकता है.
हमारा कोई भी शुभ काम ब्राह्मण ही संपन्न कराता है, यहां तक कि किसी की मृत्यु के बाद जब तक ब्राह्मण भोज न कराया जाए, मृतक की आत्मा को शांति नहीं मिलती. इसलिए ब्राह्मणों को पूज्यनीय माना जाता है. उनका कभी अपमान न करें. उनके पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त करें.
गुरु आपके भविष्य का निर्माण करता है. आपको सही राह दिखाता है. ऐसे गुरु का कभी अपमान नहीं करना चाहिए. उनका सम्मान करें और आशीष प्राप्त करें. जो लोग गुरु का आदर नहीं करते, उनका जीवन में कभी भला नहीं हो सकता.
कुंवारी कन्या को भी देवी तुल्य माना गया है. कन्या का न कभी अपमान करें, न ही उस पर कुदृष्टि डालें. ऐसा करने वाला पाप का भागीदार होता है. घर की ही नहीं, हर कन्या का सम्मान करना सीखें.
हम आज जो कुछ भी हैं, वो घर के बड़े बुजुर्गों के संस्कारों के कारण ही हैं. अपने बुजुर्गों का हमेशा सम्मान करें. बड़े बुजुर्गों के आशीर्वाद से बड़ी से बड़ी बला भी टल सकती है. इससे परिवार में बरकत होती है.
गाय को हिंदू धर्म में माता कहा जाता है. गाय में 33 कोटि देवताओं का वास माना जाता है. गाय को अगर पैर लग जाए तो ये पाप माना गया है. ऐसे में आपको तुरंत क्षमायाचना करनी चाहिए. गाय की सेवा करें. इससे आपके परिवार में सुख समृद्धि का वास होता है. 7-शिशु
कहा जाता है अबोध बालक भी भगवान का स्वरूप होता है. उसका मन एकदम निश्छल होता है. वो जो कुछ भी कहता है, करता है, उसमें कभी किसी का अहित करने की मंशा नहीं होती. ऐसे बालक को भगवान की तरह मानना चाहिए और उसे प्यार देना चाहिए. उसका सम्मान करना चाहिए.
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