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Chanakya Niti: मनुष्य में जन्म से ही होते हैं ऐसे 4 गुण, जिन्हें व्यक्ति अपने जीवन में चाहे तो भी पा नहीं सकता, जानें क्यों
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र के 11वें अध्याय में लिखे पहले श्लोक में मनुष्य के ऐसे 4 गुणों का जिक्र किया है जिसे व्यक्ति अपने जीवन में चाहे तो भी पा नहीं सकता, बल्कि ये सभी 4 गुण जन्म से ही उसे प्राप्त होते हैं. ये गुण जिनमें हों वो किसी भी कठिनाई पर आसानी से सफलता हासिल कर लेते हैं. व्यक्ति इन गुणों के कारण नौकरी-व्यापार में कामयाबी हासिल करता है. आइए जानते हैं चाणक्य द्वारा बताए गए इन चार गुणों के बारे में...
दातृत्वं प्रियवक्तृत्वं धीरत्वमुचितज्ञता ।
अभ्यासेन न लभ्यन्ते चत्वारः सहजा गुणाः ॥
दान देने की इच्छा का गुण जन्म से व्यक्ति के स्वभाव में होता है. जिसका स्वभाव दानी न हो वो चाहकर भी इस गुण को आत्मसात नहीं कर सकता. यह ऐसा गुण है जिसे किसी के सिखाने से विकसित नहीं किया जा सकता. यह व्यक्ति के स्वाभाव पर पूर्ण रूप से निर्भर करता है.
धीरज या सहज होने का अर्थ, साथ में उत्पन्न अर्थात् जन्म के साथ है. व्यवहार में इसे 'खून में होना' कहते हैं. इन गुणों में विकास किया जा सकता है, लेकिन इन्हें अभ्यास द्वारा पैदा नहीं किया जा सकता. धीरज रखना या सब्र रखना सबसे बेहतर गुण माना जाता है. यही वो गुण है जिसके कारण इंसान कठिन से कठिन परिस्थितियों से भी आसानी से निकल जाता है. यह गुण व्यक्ति में जन्मजात होता है.
चाणक्य ने मधुर वाणी को भी सबसे बेहतर गुण माना है. यह गुण व्यक्ति के स्वभाव में निहित होता है. आज की भाषा में कहा जाए तो ये आनुवंशिक गुण हैं- जींस में है. परिवेश इसे विकसित कर सकता है. वातावरण इस गुण को थोड़ा-बहुत तराश सकता है.
चाणक्य इस श्लोक में चौथे गुण के रूप में उचित अथवा अनुचित के ज्ञान को शामिल करते हैं. वो कहते हैं कि उचित और अनुचित में परख करने का गुण व्यक्ति के अंदर जन्म से ही होते हैं, इन्हें अभ्यास से प्राप्त नहीं किया जा सकता.