धर्म-अध्यात्म

चाणक्य नीति : भोजन और दान के विषय में हर मनुष्य को ये 4 चीजों से जुड़ी ये बातें जानना बेहद जरुरी

Renuka Sahu
2 Oct 2021 1:41 AM GMT
चाणक्य नीति :  भोजन और दान के विषय में हर मनुष्य को ये 4 चीजों से जुड़ी ये बातें जानना बेहद जरुरी
x

फाइल फोटो 

आचार्य चाणक्य असाधारण प्रतिभा के धनी थे. सैकड़ों वर्ष बीत जाने के बाद भी उनकी गिनती श्रेष्ठ विद्वानों में की जाती है. आ

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आचार्य चाणक्य असाधारण प्रतिभा के धनी थे. सैकड़ों वर्ष बीत जाने के बाद भी उनकी गिनती श्रेष्ठ विद्वानों में की जाती है. आचार्य को राजनीति, कूटनीति, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र समेत तमाम विषयों की गहरी समझ थी. किसी भी परिस्थिति को देखकर वे उसके परिणामों का अनुमान लगा लेते थे. यही कारण है कि जीवन की हर रणनीति वो काफी सोच समझकर बनाते थे और विजयी होते थे.

आचार्य के इस अनुभव का ही नतीजा था कि पूरे नंद वंश का नाश कर आचार्य ने एक साधारण बालक को राजगद्दी पर बैठा दिया. आचार्य के तमाम अनुभव आज भी उनकी किताबों में मौजूद हैं. आचार्य चाणक्य का नीति शास्त्र ग्रंथ उनमें से एक है और लोगों के बीच काफी प्रचलित है. यदि इसकी बातों पर ध्यान देकर जीवन में उतारा जाए तो तमाम समस्याओं को आसानी से समाप्त किया जा सकता है. जानिए भोजन और दान समेत इन 4 चीजों पर क्या कहती है चाणक्य नीति.
भोजन
सनातन धर्म में ब्राह्मण को बहुत ही पूजनीय माना गया है. इसलिए आचार्य चाणक्य कहते हैं कि सही मायने में किसी ब्राह्मण को भोजन करवाने के बाद जो आपके पास बचता है, वो सच्चा भोजन है. पहले के समय में ब्राह्मण भिक्षा मांग कर ही अपना घर चलाते थे, वो जरूरतमंद होते थे, इसलिए ये बात तब के समय में फिट थी. लेकिन आज के समय में आपको किसी जरूरतमंद को भोजन करवाने के बाद ही खुद खाना चाहिए. ऐसा भोजन परिवार में बरकत लाता है और मन को शुद्ध और सकारात्मक बनाता है. साथ ही ऐसे व्यक्ति पर भगवान की भी कृपा बनी रहती है.
प्रेम
आचार्य के अनुसार प्रेम एक भावना है, जो ​दूसरों के प्रति नि:स्वार्थ भाव से बहती है. रिश्तों के अनुसार इसका स्वरूप बदल जाता है. इसमें किसी से कुछ पाने की आशा नहीं होती. शुद्ध प्रेम वही है जो नि:स्वार्थ भाव से किया जाए.
बुद्धिमत्ता
सिर्फ कुछ ग्रंथ और पुराण को पढ़ लेने और उनकी बातों को रट लेने से बुद्धिमत्ता की परख नहीं की जाती. वास्तव में बुद्धिमान वो व्यक्ति है, जो उन बातों को अपने जीवन में उतारे. जिस व्यक्ति का ज्ञान उसे पाप कर्म में लिप्त होने से रोकता है, वो व्यक्ति वास्तव में बुद्धिमान है.
दान
आचार्य चाणक्य का मानना था कि श्रेष्ठ दान वही होता है जो नि:स्वार्थ भाव से दिया जाए. दिखावे के साथ या किसी स्वार्थवश अगर आप किसी को धन, दौलत, अन्न आदि कुछ देते भी हैं, तो वो दान कैसे कहा जा सकता है. श्रेय लेने की आशा से किया हुआ दान कभी सार्थक नहीं होता, इसलिए गुप्त दान को श्रेष्ठ माना जाता है.


Next Story