धर्म-अध्यात्म

Chaitra Navratri 2021: 20 को अष्टमी और 21 अप्रैल को है रामनवमी, जानिए कन्या पूजन के शुभ मुहूर्त

Kunti Dhruw
13 April 2021 1:02 PM GMT
Chaitra Navratri 2021: 20 को अष्टमी और 21 अप्रैल को है रामनवमी, जानिए कन्या पूजन के शुभ मुहूर्त
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चैत्र नवरात्रि

जनता से रिश्ता वेबडेस्क: मां भवानी की अराधना का विशेष पर्व 13 अप्रैल से शुरू हो गया है। इसी के साथ नव विक्रमी संवत्सर 2078 का भी प्रारंभ होगा। देवी भगवती कई विशिष्ट योग-संयोग के साथ अश्व पर सवार पर सवार होकर आएंगी। नवसंवत्सर के राजा और मंत्री मंगल होंगे। चैत्र नवरात्रि को ही सृष्टि प्रारंभ माना गया है। सृष्टि इससे पहले शक्तिविहीन थी। नवरात्रि में उसमें अनेकानेक शक्ति का संचार हुआ। इसलिए चैत्र नवरात्रि प्रमुख शक्ति पर्व है।

अष्टमी और नवमी पूजन-
सोमवार, 19 अप्रैल को सप्तमी तिथि मध्य रात्रि 12 बजकर 01 मिनट तक है। इसके बाद अष्टमी तिथि का प्रारंभ हो जाएगा। 21 अप्रैल को नवमी है। नवमी भी मध्यरात्रि 12 बजकर 35 मिनट तक है। इसलिए अष्टमी व नवमी दोनों ही दिन व्रत पारण और कन्या पूजन के लिए पर्याप्त मिल रहे हैं।
रामनवमी का पूजन दोपहर 12 बजे होता है। इसलिए इससे पहले देवी नवमी का पूजन कर लें। पहले शक्ति अराधना होगी और फिर रामनवमी।
20 अप्रैल को अष्टमी तिथि पर बन रहे ये पूजा के शुभ मुहूर्त-
ब्रह्म मुहूर्त- 04:11 ए एम, अप्रैल 21 से 04:55 ए एम, अप्रैल 21 तक।
अभिजित मुहूर्त- 11:42 ए एम से 12:33 पी एम तक।
विजय मुहूर्त- 02:17 पी एम से 03:08 पी एम तक।
गोधूलि मुहूर्त- 06:22 पी एम से 06:46 पी एम तक।
अमृत काल- 01:17 ए एम, अप्रैल 21 से 02:58 ए एम, अप्रैल 21 तक।
21 अप्रैल यानी रामनवमी के दिन बनने वाले शुभ मुहूर्त-
ब्रह्म मुहूर्त- 04:10 ए एम, अप्रैल 22 से 04:54 ए एम, अप्रैल 22 तक।
विजय मुहूर्त- 02:17 पी एम से 03:09 पी एम तक।
गोधूलि मुहूर्त- 06:22 पी एम से 06:46 पी एम तक।
रवि योग- 07:59 ए एम से 05:39 ए एम, अप्रैल 22 तक।
निशिता मुहूर्त- 11:45 पी एम से 12:29 ए एम, अप्रैल 22 तक।
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की होती है पूजा-
नवरात्र के पहले दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा की जाती है। पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या थीं, तब इनका नाम सती था। इनका विवाह भगवान शंकरजी से हुआ था। प्रजापति दक्ष के यज्ञ में सती ने अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती और हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं। उपनिषद् की एक कथा के अनुसार, इन्हीं ने हैमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व-भंजन किया था। नव दुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री का महत्व और शक्तियां अनन्त हैं। नवरात्र पूजन में प्रथम दिन इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इस दिन उपासना में योगी अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित कर साधना करते हैं।


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