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धर्म-अध्यात्म
द्वापर युग से हुई थी अक्षय तृतीया मनाने की शुरुआत,जानें कथा एवं धार्मिक महत्व
Apurva Srivastav
6 May 2024 8:43 AM GMT
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नई दिल्ली : भारत में अक्षय तृतीया का दिन बहुत शुभ माना जाता है। इससे जुड़ी कई कहानियां हैं। एक कथा है कि एक बार पांचों पांडव और उनकी पत्नी द्रौपदी अज्ञातवास में थे। उसी समय उन्हें ऋषि दुर्वासा ने संदेश भिजवाया कि वे पांडवों के यहां भोजन करने आ रहे हैं। जब तक संदेश मिला, तब तक पांडवों ने भोजन कर लिया था। ऐसे में उनके पास ऋषि दुर्वासा को भोजन कराने के लिए अन्न का एक दाना भी नहीं था।
ऋषि अपने क्रोध के लिए प्रसिद्ध थे। यदि उन्हें समय पर भोजन नहीं मिलता तो वे पांडवों को शाप दे देते। तब द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण से इस समस्या के समाधान के लिए प्रार्थना की। श्रीकृष्ण वहां आए। उन्होंने देखा कि भोजन के मुख्य पात्र में चावल का एक दाना है। उन्होंने उस चावल के दाने को उठाकर खा लिया और वह पात्र ‘अक्षय पात्र’ में बदल गया। ‘अक्षय’ पात्र अर्थात ‘वह जिसका कभी क्षय नहीं होता’।
जब ऋषि दुर्वासा अपने शिष्यों के साथ भोजन के लिए आए, द्रौपदी ने उसी अक्षय पात्र से सभी को भोजन कराया। वे जैसे ही उस पात्र में से भोजन निकालतीं, उसमें उतना ही और भर जाता। वह पात्र कभी खाली नहीं हुआ। हमारे देश में जो व्यक्ति बहुत उदार होता है, हमेशा सेवा में लगा रहता है और दूसरों की सहायता करता रहता है, तो लोग उसे कहते हैं, ‘ये तो एक अक्षय पात्र हैं; एक ऐसे चमत्कारी पात्र जो लाखों लोगों के पेट भरते रहते हैं।
अक्षय तृतीया के बारे में एक और कहानी है- श्रीकृष्ण और उनके एक निर्धन मित्र सुदामा की! एक दिन सुदामा की पत्नी ने उनसे कहा, ‘हम इतनी गरीबी में जीवन जी रहे हैं और कृष्ण इतने धनी हैं; वे तो आपके बड़े अच्छे मित्र हैं, आप जाकर उनसे कुछ ले क्यों नहीं आते?’ सुदामा ने कहा, ‘ठीक है मैं जाऊंगा, लेकिन मैं अपने मित्र के यहां खाली हाथ नहीं जा सकता, मुझे उनके लिए कुछ ले जाना होगा।’ तब उनकी पत्नी ने उन्हें एक गठरी में तीन मुट्ठी चावल बांधकर दे दिए। जब सुदामा कृष्ण के यहां पहुंचे तो कृष्ण बहुत प्रसन्न हुए और सुदामा का पैर धोकर उनका स्वागत किया।
सुदामा और कृष्ण बहुत घनिष्ठ मित्र थे, उन दोनों के बीच बहुत घनिष्ठ प्रेम था। वैसे तो सुदामा कृष्ण से सहायता मांगने आए थे, लेकिन कृष्ण के प्रेम से इतने विह्वल हो गए कि उनसे कुछ मांग ही नहीं पाए। सुदामा जब वहां से जाने लगे, तब कृष्ण ने उनसे पूछा कि, ‘मैं जानता हूं तुम मेरे लिए कुछ लाए हो, मुझे दो!’ सुदामा ने कृष्ण को वे चावल दे दिए। कृष्ण ने बहुत प्रेम से उन्हें स्वीकार किया और उन्हें खा लिया।
तब भी सुदामा कृष्ण से कोई सहायता नहीं मांग पाए और घर लौट गए। जब वे अपने घर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि उनका घर धन-धान्य से भरा हुआ था। तो कुछ भी असंभव नहीं है। जब सच्ची भक्ति होती है, वहां केवल आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि भौतिक समृद्धि भी आती है।
इसीलिए लोग अक्षय तृतीया के दिन एक दूसरे को उपहार में सोना देते हैं। ऐसा माना जाता है कि यदि आपको अक्षय तृतीया के दिन कुछ मिलता है तो वह हमेशा बढ़ेगा। यह संसार जिसमें हम रहते हैं, यह सब वास्तव में ‘कुछ भी नहीं’ है। एक दिन हम यह सब कुछ यहीं छोड़ कर चले जाएंगे। हमारा शरीर भी इसी मिट्टी में वापस मिल जाएगा। आप सदैव समृद्ध होते रहेंगे, क्योंकि आपकी ‘आत्मा’ शाश्वत है।
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Apurva Srivastav
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