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2 दिन मनाते हैं वट सावित्री व्रत, जानें इसके पीछे का इतिहास
वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) रखने से पति की आयु लंबी होती है, दांपत्य जीवन खुशहाल होता है और पुत्र प्राप्ति का भी आशीष मिलता है. इन तीन वजहों से सुहागन महिलाएं वट सावित्री व्रत रखती हैं. वट सावित्री व्रत दो दिन मनाया जाता है. एक वट सावित्री व्रत अमावस्या तिथि को और एक वट सावित्री व्रत पूर्णिमा तिथि को. आखिर ऐसा क्यों होता है? आइए जानते हैं तिरुपति के ज्योतिषाचार्य डॉ. कृष्ण कुमार भार्गव से.
वट सावित्री व्रत और वट पूर्णिमा व्रत
उत्तर भारत में मुख्यत: यूपी, एमपी, बिहार, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों में ज्येष्ठ माह की आमवस्या तिथि को वट सावित्री व्रत रखा जाता है. इसे वट सावित्री अमावस्या व्रत भी कहते हैं. वहीं गुजरात, महाराष्ट्र समेत दक्षिण भारत के राज्यों में वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि रखते हैं. यहां पर इसे वट पूर्णिता व्रत कहते हैं.
आमवस्या आधारित कैलेंडर में वट सावित्री आमवस्या व्रत के बारे में बताया जाता है और पूर्णिमा आधारित कैलेंडर में यह वट पूर्णिमा व्रत होता है. हालांकि पुराणों के आधार पर देखा जाए, तो स्कंद पुराण में वट पूर्णिमा व्रत के बारे में बताया गया है. इसे ज्येष्ठ पूर्णिमा को रखते हैं.
दोनों व्रतों का समान महत्व
वट पूर्णिमा व्रत और वट सावित्री व्रत का एक समान महत्व है, अंतर बस तिथियों का ही है. उत्तर भारत की सुहागन महिलाएं ज्येष्ठ अमावस्या को वट सावित्री व्रत रखती हैं और बाकी जगहों की महिलाएं 15 दिन बाद ज्येष्ठ पूर्णिमा को वट पूर्णिमा व्रत रखती हैं. ये दोनों ही व्रत पति की लंबी आयु और सुख वैवाहिक जीवन के लिए रखा जाता है. दोनों व्रत में ही वट वृक्ष की पूजा होती है.
वट सावित्री व्रत 2022 मुहूर्त
ज्येष्ठ अमावस्या तिथि प्रारंभ: 29 मई, दोपहर 02 बजकर 54 मिनट से
ज्येष्ठ अमावस्या तिथि समापन: 30 मई, शाम 04 बजकर 59 मिनट तक
वट सावित्री व्रत पूजा मुहूर्त: सुबह 07:12 बजे से
वट पूर्णिमा व्रत 2022 मुहूर्त