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धर्म-अध्यात्म
रक्षाबंधन मनाएं, नारी और नदी दोनों के सम्मान और स्वाभिमान की रक्षा करें
Manish Sahu
28 Aug 2023 10:18 AM GMT
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धर्म अध्यात्म: धर्मे रक्षते रक्षतः अर्थात धर्म हमारी रक्षा करता है. हालांकि समय के साथ धर्म की परिभाषा बदली. रक्षाबंधन का मतलब केवल अच्छे कपड़े, गिफ्ट और मिठाइयां ही नहीं हैं. ये प्रतीक है भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का. हालांकि रक्षा का अर्थ कहीं ज्यादा व्यापक है. अब रक्षाबंधन की परिभाषा को नए तरीके से विस्तार देने और पारिभाषित करने की जरूरत है. क्या हम महिला शक्ति को बेहतर माहौल देकर उसके सपनों को पूरा करने में साथ खड़े होते हैं.
रक्षाबंधन त्योहार देश में लंबे समय से मनाया जाता है. आमतौर पर इसका मतलब भाइयों द्वारा बहनों की रक्षा और उनका ध्यान रखना है. लेकिन इसका एक गहन मतलब भी है. गहन भाव भी है. इस त्योहार के पीछे के अर्थ को सही मायनों में समझने की जरूरत है.
रक्षाबंधन बहन भाई के पवित्र रिश्ते को सेलिब्रेट करता है. जब बहन भाई को राखी बांधती है तो उसके बदले वो उसकी रक्षा करता है. इस रक्षा को ही अपना धर्म मानता है.
वैसे जब मैं छोटी थी. तब रक्षाबंधन पर अपने छोटे भाई को राखी बांधती थी तो सोचती थी कि वो तो खुद छोटा है, कैसे मेरी रक्षा करेगा. दरअसल भाई समय आने पर बहन की रक्षा करता है तो बहन भी ऐसा ही करती है. दोनों ही समय-समय पर एक दूसरे की रक्षा करते हैं. एक दूसरे का साथ देते हैं. लिहाजा रक्षाबंधन एक दूसरे के साथ बांधे रखने का पवित्र भाव भी है. ये रक्षासूत्र का काम करता है. जीवन के हर पहलू पर आपसी संबल देने और साथ खड़ा होने का भाव देता है. ये रक्षा डोर दोनों ही ओर रक्षा और सम्मान का प्रतीक है.
रक्षा की क्षमता बहन में भी बस तरीका अलग
हो सकता है कि बहन की शक्ति शारीरिक तौर पर हो, बाहुबल कम हो लेकिन जहां तक रक्षा की बात है तो उसमें भी क्षमता कम नहीं बस तरीका अलग होता है. समय आने पर रक्षा करने की क्षमता उसमें भी है बस तरीका अलग हो सकता है. बंधने से हम वास्तव में संरक्षित होते हैं. बंधन ऐसा होना चाहिए, जो हमें संजोए. ये त्योहार उत्साह, उल्लास, उत्सव का प्रतीक है – ये बंधन से कहीं ज्यादा दिशा तय करता है.
रक्षाबंधन को धर्म और समाज के साथ महिला के महत्व और शक्ति के संबंध में फिर से विस्तारित पारिभाषित करने की जरूरत है. ये ऐसा रक्षा सूत्र होता है जो एक भाव देता है और इसमें दोनों ही एक दूसरे की रक्षा करते हैं लेकिन अपने तरीके से. (न्यूज18ग्राफिक्स)
रक्षाबंधन की परिभाषा को विस्तारित करने की जरूरत
हमारे समाज में बहनों की रक्षा भाई का कर्तव्य है, लेकिन अब इस परिभाषा को विस्तारित करना चाहिए. हमें महिला शक्ति को ऐसा माहौल और समाज देना चाहिए कि वो खुद की रक्षा करने में सक्षम हो पाए. स्त्री अपनी रक्षा खुद कर सकती है बस उसके साथ कोई खड़ा होना चाहिए. ये देखना होगा कि वो आगे बढ़े, सपनों तो हकीकत में बदले. उन्हें अपनी काबिलियत पर भरोसा हो. ऐसा माहौल देने का काम भाई के साथ परिवार और समाज सभी का है. भौतिक सुरक्षा नहीं बल्कि उन्हें खुली उड़ान का मौका दें. वो अपनी पहचान बनाएं. सपने पूरा करें. पैरों पर खड़ी हों. रक्षा का मतलब ये भी है कि कभी उनके साथ कुछ गलत हो, भेदभाव हो तो उसके खिलाफ आवाज उठाई जाए.
महिला शक्तियों को अक्षम मानने पर क्या होता है
जो समाज अपनी महिला शक्तियों को अक्षम मानता है, इतिहास बताता है कि उसका पतन होता है. हमें इतिहास से सीखना होगा. महाभारत और रामायण इसका उदाहरण हैं. स्त्री की रक्षा नहीं होने पर धर्मयुद्ध की स्थिति आ जाती है. हम अगर शक्ति को उसकी ताकत का अहसास नहीं दिलाएंगे तो समय दिलाएगा.
रक्षाबंधन पर ये समझें कि नारीऔर नदी शक्ति का स्वरूप हैं, उन्हें सुरक्षित और संवर्धित करना चाहिए. (न्यूज18 ग्राफिक्स)
विकास दर मानकों में स्त्री के लिए बेहतर माहौल भी हो
हमारा कर्तव्य ये है कि देश के विकास दर मानकों में स्त्री सम्मान, स्वास्थ्य, उनके बेहतर माहौल को समाहित करें. महिला शक्ति अस्वस्थ हुई तो समाज भी अस्वस्थ रहेगा. उसकी तरक्की टिकाऊ नहीं रहेगी. लिहाजा जरूरी है कि समाज आगे बढ़ने के लिए महिलाओं की ताकत और स्वाभिमान के साथ प्रकृति का संवर्धन भी करे.
अब अमृतकाल में क्या हो
हम अमृतकाल में प्रवेश कर चुके हैं. ये काल अगले 1000 सालों तक रहेगा. इसमें हमें महिलाओं के सम्मान और स्वाभिमान को तय करना होगा, उन्हें आगे बढ़ाने के अवसर देने होंगे. तभी अमृतकाल की परिकल्पना सही तौर पर साकार हो सकेगी.
महिलाओं के खिलाफ क्राइम पर कड़ा दंड हो
महिलाओं के खिलाफ क्राइम करने वालों को कड़ा दंड मिले. केवल रक्षाबंधन का एक दिन ही क्यों बल्कि हररोज महिला शक्तियों को सुरक्षित माहौल देना जाना चाहिए. इसके प्रयास हों. महिलाओं के प्रति असमानता और रक्षा में सभी को साथ आना चाहिए. उनकी पढ़ाई के रास्ते या अन्य जीवन के पहलुओं में आने वाली बाधाओं को दूर किया जाना चाहिए. उन्हें उच्च शिक्षा दें और साथ में नौकरी के साथ अधिकारों में भी बराबरी. तभी वो सही मायनों में रक्षित होंगी. अपने पैरों पर खड़ी होंगी. इसे हमें धर्म और रक्षा की परिभाषा में लाना ही होगा.
क्या होना चाहिए हमारा धर्म
महिलाएं जिन बाधाओं और समस्याओं का रोज सामना करती हैं, उसे दूर करना हमारा धर्म होना चाहिए. महिलाओं की राह में बाधा का मतलब समाज और प्रकृति के साथ बाधा है. इसका असर हम सभी पर पड़ता है. समाज पर पड़ता है.
नारी और नदी को संवर्धित करें
नारी और नदी को उस शक्ति का स्वरूप मानकर उसे सुरक्षित और संवर्धित करना चाहिए. मणिपुर में जिस तरह महिलाओं के अपमान और रेप की घटनाएं हुईं, जिस तरह हम रोजाना महिलाओं के साथ रेप और अन्य अपराधों की खबरों को देखते हैं, वो दहलाती है लेकिन तब भी उसमें बहुत सी ऐसी खबरें सामने भी नहीं आ पाती होंगी. बहुत सी ऐसी खबरों का राजनीतिकरण करके घटनाओं को अनदेखा करने का काम होता है. उनकी गंभीरता को खत्म कर दिया जाता है. हमें समाज से इस गंदगी को जड़ से निकालना होगा. महिलाओं को आब्जेक्ट की पेश करना बिल्कुल ठीक नहीं, ऐसा करके हम वास्तव में समाज और जड़ों को इंपैक्ट कर रहे हैं. महिलाओं के गुणों को आगे लाने की जरूरत है. रक्षा बंधन की असली पहचान तभी है जब हम ऐसा कर पाएं.
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