धर्म-अध्यात्म

निर्जला एकादशी का व्रत रखने से मिलता है सभी 24 एकादशियों का पुण्य, जानिए इससे जुड़ी जरूरी बातें

Renuka Sahu
27 May 2022 4:16 AM GMT
By observing the fast of Nirjala Ekadashi, one gets the virtue of all 24 Ekadashis, know the important things related to it
x

फाइल फोटो 

ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi ) कहा जाता है. निर्जला एकादशी व्रत को बेहद पुण्यदायी और धर्म, कर्म, अर्थ और मोक्ष दिलाने वाला माना गया है. मान्यता है कि अगर आप सालभर में पड़ने वाली अन्य एकादशी के व्रत नहीं रख पाए हैं तो निर्जला एकादशी का व्रत रख लें. इस एक व्रत को रखने मात्र से आपको सालभर की सभी 24 एकादशियों का पुण्य प्राप्त हो जाता है. कहा जाता है कि इसी दिन विश्वामित्र ने संसार को गायत्री मंत्र सुनाया था. इस कारण इसे महाएकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इस बार निर्जला एकादशी 10 जून को पड़ रही है. ये व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है. इस व्रत में पानी पीना भी वर्जित बताया गया है. माना जाता है कि जो भी व्यक्ति इस व्रत को विधिवत रखता है, उससे उसके पूर्वज संतुष्ट होते हैं और आशीर्वाद देते हैं. यहां जानिए निर्जला एकादशी व्रत से जुड़ी जरूरी बातें.

जानें व्रत का महत्व
निर्जला एकादशी व्रत सभी मनोकामनाएं पूरी करने वाला माना गया है. इस एक एकादशी का व्रत सभी तीर्थों की यात्रा करने और सभी दानों से भी कहीं ज्यादा बताया गया है. भगवान वेद व्यास ने इस व्रत का महत्व कुंती पुत्र भीम को बताते हुए इस व्रत को सद्गति प्रदान करने वाला बताया था. इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है.
व्रत का शुभ मुहूर्त
ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 10 जून दिन शुक्रवार को प्रात: 07 बजकर 25 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन 11 जून गुरुवार को सुबह 05 बजकर 45 मिनट पर होगा. व्रत 10 जून को रखा जाएगा और व्रत का पारण 11 जून को किया जाएगा. व्रत का पारण 11 जून की सुबह स्नानादि के बाद किसी ब्राह्मण या जरूरतमंद को भोजन व दक्षिणा देने के बाद करें.
निर्जला एकादशी व्रत पूजा विधि
सुबह स्नान करके व्रत का संकल्प लें. इसके बाद नारायण और मां लक्ष्मी की तस्वीर रखकर विधि​ विधान से पूजा करें. पूजा के दौरान उन्हें हल्दी, चंदन, रोली, अक्षत, पुष्प, भोग, वस्त्र, दक्षिणा, धूप और दीप आदि अर्पित करें. इसके बाद व्रत कथा पढ़ें या सुनें. फिर आरती करें. पूरे दिन आपको बगैर कुछ खाए पीए व्रत रहना है. अगले दिन स्नान के बाद किसी जरूरतमंद या ब्राह्मण को सम्मानपूर्वक भोजन कराएं और उसे जल से भरे कलश पर सफेद वस्त्र, शक्कर और दक्षिणा आदि रखकर दान करें. उसका आशीर्वाद लेने के बाद व्रत का पारण करें.
ये है व्रत कथा
राजा पांडु के घर में सभी सदस्य एकादशी का व्रत रहा करते थे, लेकिन भीम से भूख सहन नहीं होती थी, इसलिए वे व्रत नहीं रख पाते थे. एक बार उन्होंने वेदव्यासजी से पूछा, 'हे परमपूज्य! मुझे व्रत करने में बहुत दिक्कत होती है. आप मुझे ऐसा उपाय बताएं जिससे व्रत भी न रहना पड़े और उसका फल भी मिल जाए. तब वेदव्यासजी ने कहा, अगर आप मृत्यु के बाद सद्गति प्राप्त करना चाहते हैं तो एकादशी का व्रत रखना बहुत जरूरी है. हर महीने में दो एकादशी के व्रत आते हैं. लेकिन अगर आप सभी एकादशी का व्रत नहीं रह सकते तो ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी का निर्जला व्रत जरूर रहें. इस दिन आप अन्न और जल दोनों ही नहीं लेंगे. इस व्रत को रखने के बाद आपको सालभर की एकादशी का पुण्य प्राप्त हो सकता है. भीम इसके लिए तैयार हो गए और निर्जला एकादशी का व्रत रहने लगे. तभी से इस एकादशी को भीम एकादशी भी कहा जाने लगा.
Next Story