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आरती का सही तरीके से करने पर मिलता है पूजा का पूरा फल
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सनातन परंपरा में ईश्वर के लिए की जाने वाली आरती का बहुत महत्व है. किसी भी मंदिर या घर में आरती के समय हमारा मन परमात्मा की भक्ति में डूब जाता है. दरअसल, आरती पूजा की वह विधि है, जिसे करने पर पूजा का पूरा फल प्राप्त होता है और आराध्य देवी–देवता की कृपा बरसती है. आरती को 'आरार्तिक' और 'नीराजन' भी कहा जाता है. पुराणों में आरती की महिमा का गुणगान करते हुए कहा गया है कि यदि कोई मंत्र आदि नहीं जानता हो तो वह श्रद्धापूर्वक उस पूजा–अनुष्ठान का पूरा फल प्राप्त कर सकता है. आइए पूजा में की जाने वाली आरती का महत्व और विधि जानते हैं –
ईश्वर की साधना के लिए की जाने वाली आरती आम तौर पर घरों में सुबह–शाम की जाती है लेकिन इसे दिन भर में एक से पांच बार की जा सकती है.
पूजा में की जाने वाले आरती के लिए प्रयोग में लाये जाने वाले दीपक या फिर उसमें बातियों या फिर कपूर की संख्या एक, पांच या सात रखें.
आरती करते समय सबसे पहले उसे अपने आराध्य के चरणों की तरफ चार बार, इसके बाद नाभि की तरफ दो बार और अंत में एक बार मुख की तरफ घुमाएं. ऐसा कुल सात बार करें. आरती करने के बाद उस पर से जल फेर दें और प्रसाद स्वरूप सभी लोगों पर छिड़कें.
आरती को हमेशा ऊंचे स्वर और एक ही लय ताल में गाया जाता है. ऐसा करने पर पूजा स्थल का पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाता है और मन को सुकून देने वाला होता है.
पूजा में की जाने वाली आरती को हमेशा खड़े होकर की परंपरा रही है लेकिन यदि आप स्वास्थ्य कारणों के चलते आरती के लिए उठने में असमर्थ हों तो आप ईश्वर से क्षमा मांगते हुए बैठकर भी आरती कर सकते हैं.
आरती के बाद हमेशा दोनों हाथ से उसे ग्रहण करने का नियम है. मान्यता है कि ईश्वर की शक्ति आरती के दीपक की उस ज्योति में समा जाती है, जिसके उपर से भक्तगण हाथ फेर कर अपने मस्तक पर ग्रहण करते हैं.
आरती करने से पूजा में हुई किसी भी प्रकार की भूल–चूक माफ हो जाती है और उसका पूरा लाभ मिलता है.
(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)