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इनकी प्रदक्षिणा करने से मिलता है सातों द्वीपों से युक्त पृथ्वी की परिक्रमा का फल
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | पाश्चात्य देशों का अनुकरण करते हुए भारत वर्ष में भी मदर्स डे और फादर्स डे (मातृ-पितृ दिवस) अलग-अलग मनाने की परम्परा शुरू हो गई है, किन्तु भारतीय परम्परा माता और पिता दोनों को एक साथ पूजने की बात करती है :सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमय: पिता। मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत॥
अर्थात माता का स्थान सभी तीर्थों से ऊपर होता है और पिता का स्थान सभी देवताओं से ऊपर होता है, इसलिए हर मनुष्य का यह कर्त्तव्य है कि वह अपने माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करे और सदा उनका आदर-सत्कार करे।
मातरं पितरं चैव यस्तु कुर्यात् प्रदक्षिणम्। प्रदक्षिणीकृता तेन सप्तद्वीपा वसुंधरा॥
अर्थात् जो व्यक्ति माता-पिता की प्रदक्षिणा करता है, उसके द्वारा सातों द्वीपों से युक्त पृथ्वी की परिक्रमा हो जाती है।
शास्त्रों में देव ऋण, ऋषि ऋण के साथ-साथ मातृ-पितृ ऋण उतारने की भी बात कही गई है। मातृ-पितृ ऋण उतारने के लिए पितृ पक्ष में तर्पण और श्राद्ध के साथ-साथ अपनी संतानों में धार्मिक संस्कार डालने की बात कही गई है। माता-पिता अपनी संतान के लिए जो कष्ट सहन करते हैं, उसके बदले पुत्र यदि सौ वर्षों तक माता-पिता की सेवा करे, तब भी वह इनसे उऋण नहीं हो सकता।
कहते हैं कि एक बार देवताओं में इस बात की प्रतियोगिता हुई कि सबसे पहले किस देवता की पूजा होगी। इसका निर्णय इस शर्त पर होना तय हुआ कि जो पृथ्वी की परिक्रमा करके सबसे पहले आएगा, उसे ही प्रथम पूज्य माना जाएगा।