धर्म-अध्यात्म

Budh Pradosh Vrat : बुध प्रदोष व्रत पर पूजा के दौरान करें ये आरती

Tara Tandi
19 Jun 2024 8:02 AM GMT
Budh Pradosh Vrat : बुध प्रदोष व्रत पर पूजा के दौरान करें ये आरती
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Budh Pradosh Vrat ज्योतिष न्यूज़ : सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन प्रदोष व्रत को बहुत ही खास माना गया है जो कि हर माह में दो बार पड़ता है पंचांग के अनुसार प्रदोष व्रत हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर मनाया जाता है जो कि भगवान शिव की साधना आराधना को समर्पित होता है।
इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विधान है इस दिन पूजा पाठ और व्रत करने से जीवन की दुख परेशानियां दूर हो जाती है और सुख समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है अभी ज्येष्ठ माह चल रहा है और इस माह का दूसरा प्रदोष व्रत 19 जून दिन बुधवार यानी आज किया जा रहा है बुधवार को प्रदोष पड़ने के कारण इसे बुध प्रदोष के नाम से जाना जाता है इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधिवत पूजा करें साथ ही शिव जी की प्रिय आरती जरूर पढ़ें माना जाता है कि ऐसा करने से शिव प्रसन्न होकर सुख समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते है।
शिव जी की आरती
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव...॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव...॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव...॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव...॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव...॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव...॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव...॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव...॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव...॥
महामृत्युंजय मंत्र
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
रूद्र गायत्री मंत्र
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
शिव प्रार्थना मंत्र
करचरणकृतं वाक् कायजं कर्मजं श्रावण वाणंजं वा मानसंवापराधं ।
विहितं विहितं वा सर्व मेतत् क्षमस्व जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो ॥
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