धर्म-अध्यात्म

Buddha Purnima 2021 Date : 26 मई को बुद्ध पूर्णिमा, जानिए भगवान बुद्ध के बताए चार आर्य सत्य के बारे में

Deepa Sahu
24 May 2021 8:58 AM GMT
Buddha Purnima 2021 Date : 26 मई को बुद्ध पूर्णिमा, जानिए भगवान बुद्ध के बताए चार आर्य सत्य के बारे में
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वैशाख पूर्णिमा के दिन भगवान बुद्ध का हुआ था जन्म

वैशाख मास की पूर्णिमा तिथि को बुद्ध पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन भगवान बुद्ध की विधि-विधान से पूजा की जाती है। बौद्ध अनुयायियों के साथ-साथ हिंदुओं के लिए भी बेहद खास रहता है। हिंदू धर्म के अनुसार, गौतम बुद्ध को भगवान विष्णु का 9वां अवतार माना जाता है। इसके साथ ही कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ को वैशाख पूर्णिमा की चांदनी रात में ज्ञान मिला था। इसके बाद वह बुद्ध और वैशाख पूर्णिमा, बुद्ध पूर्णिमा के नाम से मशहूर हुई। बुद्ध का एक नाम तथागत भी है, तथागत का अर्थ है – आत्मज्ञान की साधना में लीन रहते हुए, जिसने परम सत्य को पा लिया हो। गौतम बुद्ध ने ढाई हजार साल पहले ज्ञान प्राप्ति के बाद अपने अनुयाइयों को चार आर्य सत्य नाम का जो पहला उपदेश दिया, वह संदेश आज भी उतना ही सार्थक और प्रासंगिक है। आइए जानते हैं इन चार आर्य सत्य के बारे में और बुद्ध के दिए महाज्ञान के बारे में…

पहला आर्य सत्य
हर आदमी का जीवन दुखों से भरा हुआ है। सांसारिक मनुष्यों के जीवन में बीमारी, महामारी, शारीरिक कष्ट और प्रियजनों के बिछुड़ने की प्रक्रिया चलती रहती है। बुद्ध कहते हैं जिन चीजों में लोग सुख ढूंढ़ते हैं, उनके मूल में आखिरकार दुख ही दुख निकलता है। मौजूदा वक्त में भी देखा जाए तो जो व्यक्ति खुद को जितना ज्यादा भोग-विलास और नशीले पदार्थों में डुबोकर सुखों की चाह में लगा रहता है, उसका अंत ही दुखभरा होता है।
दूसरा आर्य सत्य
हर दुख की कोई वजह होती है। ग्लोवलाइजेशन के इस दौर में कोरोना महामारी के इतना विकराल रूप लेने का सबसे अहम कारण अज्ञान और अनुशासनहीनता ही माना जा रहा है। कोरोना वायरस मामलों के डॉक्टरों के आगाह करने के बावजूद बड़ी संख्या में लोग खान-पान में मांसहार, जंकफूड, कोल्ड ड्रिंक्स, शराब, बीड़ी-सिगरेट, गुटका व पान-मसालों का सेवन करते रहे। बिना मास्क के घर से निकलने की लापरवाही की वजह से चालान काटने पड़े।
तीसरा आर्य सत्य
दुख निरोध को लोगों के सामने व्यक्त करते हुए बताया कि यह संसार दुखों और कष्टों से भरा हुआ है, लेकिन दुखों का अंत संभव है। दुखों से मुक्ति, जिसे गौतम बुद्ध ने निर्वाण कहा, मनुष्य के इसी जन्म में संभव है। बुद्ध का स्वर्ग-नरक, परलोक आदि में विश्वास नहीं था। बुद्ध ने बहुत आसान शब्दों में कहा कि हर चीज किसी न किसी कारण से पैदा होती है। इसलिए यदि कारण को ही समूल नष्ट कर दिया जाए तो उस चीज का कोई अस्तित्व ही नहीं रह जाता। चूंकी गुखों का मूल कारण अविघा यानी अज्ञान है, अज्ञान के समाप्त होते ही मनुष्य का निर्वाण हो जाता है। बुद्ध कहते हैं कि निर्वाण का मतलब मृत्यु या मुक्ति नहीं बल्कि जीवन के दुखों से मुक्ति है।
चौथा आर्य सत्य
इसमें बुद्ध ने आमजन के लिए बहुत बढ़िया बात कही कि किसी भी व्यक्ति के दुखों को कोई दूसरा व्यक्ति चाहे, वह कितना भी बड़ा महाज्ञानी है, नष्ट नहीं कर सकता। उन्होंने कहा अप्प दीपो भव। बुद्ध के कहने का अभिप्राय है कि मनुष्य के जीवन में दुख-दर्द, उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। व्यक्ति को दूसरे की नहीं बल्कि अपने सहारे ही चलना पड़ता है। दूसरे की बैसाखी से मंजिल तक नहीं पहुंचा जा सकता।
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