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मार्च में इस दिन पड़ेंगे दोनों प्रदोष व्रत, जाने पूजा विधि और महत्व
हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है। हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का बहुत ही ज्यादा महत्व है। त्रयोदशी तिथि भगवान शिव को समर्पित है। इस दिन भगवान भोलेनाथ के भक्त विधि-विधान से व्रत रखते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं। कहा जाता है कि इस व्रत को करने भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों के परिवार में सुख-शांति व समृद्धि देते हैं। साथ ही जो व्यक्ति नियम और निष्ठा से प्रत्येक प्रदोष का व्रत रखता है उसके कष्टों का नाश होता है। त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष काल में माता पार्वती और भगवान भोलेशंकर की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, प्रदोष काल में की गई भगवान शिव की पूजा कई गुना ज्यादा फलदायी होती है। तो चलिए जानते हैं मार्च महीने के प्रदोष व्रत तिथि, पूजा मुहूर्त और महत्व के बारे में...
मार्च में कब पड़ेगा प्रदोष व्रत?
महादेव की कृपा दिलाने वाला प्रदोष व्रत मार्च माह में दो बार यानी 15 और 29 तारीख को पड़ेगा। मान्यता है कि प्रदोष व्रत को विधि-विधान से करने पर शिव भक्तों को सभी पापों और रोगों से मुक्ति मिलती है। साथ ही उनकी सभी मनोकामना भी पूरी होती है।
अलग-अलग वार को पड़ने की वजह से प्रदोष का नामकरण भी अलग-अलग किया जाता है। जिस प्रकार सोमवार को प्रदोष व्रत पड़ता है, तो सोम प्रदोष कहलाता है। ठीक उसी प्रकार मंगलवार को पड़ने वाले प्रदोष को भौम प्रदोष कहा जाता है।
कैसे रखें प्रदोष व्रत?
प्रदोष व्रत वाले दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान-ध्यान करें और उसके बाद पावन प्रदोष व्रत का संकल्प लें और शिव का पूजन करें। वहीं दिन में भगवान शिव का मनन एवं कीर्तन करते हुए शाम के समय एक बार फिर स्नान करें और सूर्यास्त के समय प्रदोषकाल में भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा करें। इसके बाद प्रदोष व्रत की कथा सुनें या पढ़ें।
कुश के आसन पर उत्तर-पूर्व की दिशा में बैठकर भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। कहा जाता है कि प्रदोष व्रत वाले दिन भगवान शंकर की पूजा में 'ऊं नम: शिवाय:' मंत्र का माला जप करने पर विशेष फल मिलता है। इसलिए जलाभिषेक के साथ ही 'ऊं नम: शिवाय:' का जाप भी करते रहें। इसके बाद भगवान शिव की बेल पत्र, गंगाजल, अक्षत और धूप-दीप आदि से पूजा करें।