धर्म-अध्यात्म

आने वाला है भाद्रपद महीने का भौम प्रदोष व्रत, जानें शुभ मुहूर्त और महत्त्व

Tara Tandi
8 Sep 2023 12:19 PM GMT
आने वाला है भाद्रपद महीने का भौम प्रदोष व्रत, जानें शुभ मुहूर्त और महत्त्व
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हर महीने दो प्रदोष व्रत आते हैं. कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के मंगलवार के दिन जो प्रदोष व्रत आता है उसे भौम प्रदोष व्रत कहते हैं. भौमा, मंगल ग्रह का दूसरा नाम है. भाद्रपद का महीने बेहद शुभ माना जाता है. ऐसे में इस महीने की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को आने वाले भौम प्रदोष व्रत का महत्त्व भी कई गुना ज्यादा है. भगवान शिव को स्मर्पित इस व्रत को रखने वाले लोगों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. हिंदू पुराणों के अनुसार खास कर भौम प्रदोष का व्रत करने का अवसर अगर किसी को मिलता है तो ऐसे जातकों के जीवन से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. तो इस बार ये व्रत कब आ रहा है पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है आइए सब जानते हैं.
भाद्र मास की त्रयोदशी तिथि
12 सितंबर की सुबह 08 बजकर 30 मिनट से 13 सितंबर को सुबह 10 बजकर 45 मिनट तक है. वैसे आपको बता दें कि प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में होती है. इसलिए इसमें उदयातिथि नहीं मानते हैं तो आप ये व्रत 12 सितंबर को रख सकते हैं.
पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 07 बजकर 05 मिनट से रात 09 बजकर 30 मिनट तक
प्रदोष व्रत का महत्त्व
प्रदोष व्रत शिव भक्ति में महत्वपूर्ण है और यह व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है. प्रदोष व्रत का अर्थ होता है 'समय की महत्ता'. इस व्रत को दोपहर के प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करके मनाया जाता है, जिसमें शिवलिंग पर दूध, दही, बिल्व पत्र, धूप, दीप, फल, पुष्प, और बिना नमक के व्रती का उपवास किया जाता है. कहते हैं इस व्रत को करने वाले व्यक्ति की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में शांति, सुख, और समृद्धि का स्रोत माना जाता है.
प्रदोष व्रत से जुड़ी भगवान शिव की कहानी
शिव कहानी में से एक प्रमुख कहानी जो प्रदोष व्रत से जुड़ी है, वह है "समुद्र मंथन" की कहानी, जिसमें भगवान शिव ने हालाहल विष पीने के बाद अपने गले में उसे रोक लिया था ताकि वह देवताओं को हानि ना पहुंचे. इसके परिणामस्वरूप, भगवान शिव के गले में नीला रंग आया, इसलिए उन्हें "नीलकंठ" भी कहा जाता है. प्रदोष व्रत का पालन करने से भक्त इस महत्वपूर्ण कहानी को याद करते हैं और शिव के प्रति अपनी भक्ति को और भी मजबूत करते हैं.
प्रदोष से जुड़ी एक और कहानी प्रचलित है. कहते हैं चंद्र को क्षय रोग हो गया था, जिसके चलते उन्हें मृत्युतुल्य कष्टों हो रहा थे. भगवान शिव ने उस दोष का निवारण कर उन्हें त्रयोदशी के दिन पुन:जीवन प्रदान किया था, और तब से इस दिन को प्रदोष कहा जाने लगा.
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