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- भाई दूज 27 अक्टूबर,...
दिवाली पर सूर्यग्रहण लगने के कारण लोगों के मन में भाई दूज के समय और तिथि को लेकर असमंजस है। लोगों के बीच सवाल उठ रहा है कि आखिर भाई दूज का त्योहार बुधवार या फिर गुरुवार को मनाया जाएगा। मंदिरों के पुजारियों का कहना है कि इस साल कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि बुधवार व गुरुवार दोनों दिन लग रही है। वहीं जो लोग उदया तिथि को आधार मानकर पर्व मनाने हैं वह गुरुवार को भाई दूज का त्योहार मनाएंगे, जबकि काफी लोगों ने बुधवार को भाई दूज व गोवर्धन पर्व मनाने का फैसला किया है।
भाई दूज पर भाइयों का तिलक करने का शुभ समय और मुहूर्त
ज्योतिषाचार्यों ने बताया कि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि का प्रारंभ बुधवार को दोपहर में 2 बजकर 43 मिनट पर हो रहा है और इस तिथि का समापन अगले दिन गुरुवार को दोपहर 1 बजकर 18 मिनट पर होगा। उदयातिथि के आधार पर भाई दूज का त्योहार गुरुवार को मनाया जाएगा। गुरुवार को भाई दूज के अवसर पर भाइयों को तिलक करने का शुभ समय दोपहर 11 बजकर 15 मिनट से दोपहर 12 बजकर 46 मिनट तक है। इस दिन करीब 1 घंटे 31 मिनट तक शुभ समय है। शास्त्रों के अनुसार, भाईदूज के दिन यमराज, यमदूज और चित्रगुप्त की पूजा करनी चाहिए।
सर्वार्थ सिद्धि समेत बन रहे हैं कई योग
28 अक्टूबर को सुबह 06 बजकर 30 मिनट से 10 बजकर 42 मिनट तक सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा। इसके साथ ही सुबह 10 बजकर 42 मिनट से अगली सुबह 06 बजकर 31 मिनट तक रवि नामक योग का निर्माण हो रहा है। इन योग में जो भी शुभ कार्य करेंगे, वह हमेशा सफल होते हैं। इसके साथ ही इस दिन प्रीति योग, आयुष्मान योग और सौभाग्य योग का निर्माण हो रहा है।
भाई दूज का महत्व
भाई दूज के दिन बहनें अपने भाइयों का तिलक करती हैं और उनके सुख-समृद्धि के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं। वहीं भाई अपनी बहनों के पैरों को छूकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और उपहार देते हैं। मान्यता है कि जो भी भाई अपनी बहन के घर जाकर तिलक करवाता है, उसे अनिश्चित मृत्यु का भय नहीं रहता। भाई दूज को यम द्वितिया के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल यमराज के वर के अनुसार, जो व्यक्ति इस दिन यमुना में स्नान करके यम पूजन करता है तो उसे मृत्यु के पश्चात यमलोक में नहीं जाना पड़ता।
भाई दूज पूजा विधि
भाई दूज के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान व ध्यान करें और फिर घर के मंदिर में घी का दीपक जलाकर ईश्वर का ध्यान करें। इसके दिन यमराज और यमुना के साथ भगवान गणेश और भगवान विष्णु की पूजा का भी विधान है। इस दिन पिसे चावल से चौक बनाने की परंपरा भी है। इसके बाद बहनें, भाई को तिलक लगाएं और फिर आरती उतारें। आरती के बाद हाथ में कलावा बांधें और मिठाई खिलाएं। इसके बाद बहनें, भाई के हाथ में नारियल दें और फिर भाई को भोजन करवाएं। भोजन के बाद भाई, बहनों को उपहार दें और चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लें।
भाई दूज की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान सूर्य और संज्ञा की दो संतानें - एक पुत्र यमराज, दूसरी पुत्र यमुना है। एकबार सज्ञा सूर्य के तेज को सहन नहीं कर पा रही थीं तो वह उत्तरी ध्रुव में छाया बनकर रहने लगीं। जिसके कारण ताप्ती नदी और शनिदेव का जन्म हुआ। सज्ञा के उत्तरी ध्रुव में बसने के कारण यमलोक ने अपनी नगरी यमपुरी बसाई और यमुना गोलोक में निवास करने लगीं। लेकिन यमराज और यमुना के बीच बहुत प्रेम और स्नेह था। एक बार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितिया तिथि को यमुना ने अपने भाई यमराज को निमंत्रण भेजा। यमुना के निमंत्रण पर यमराज यमुना के घर आ गए। यमुना ने स्नान व पूजन के बाद स्वादिष्ट व्यंजन यमराज को दिए और आदर सत्कार किया। यमुना के सत्कार से यमराज बेहद प्रसन्न हुए और वरदान मांगने का आदेश दिया। यमुना ने कहा कि आप हर वर्ष इसी दिन मेरे घर आएं और मेरी तरह जो बहन इस दिन भाई का आदर सत्कार कर टीका करे, उसको तुम्हारा भय ना रहे। यमराज ने यमुना को आशीर्वाद दिया और वस्त्राभूषण देकर यमलोक की ओर प्रस्थान कर गए। उसी दिन से इस दिन भाई दूज मनाने की परंपरा शुरू हुई। मान्यता है कि भाई दूज के दिन भाई-बहन को यमराज और यमुना का पूजन अवश्य करना चाहिए।