धर्म-अध्यात्म

शिव की तरह बनें उदार, तभी होंगे शिव साकार

Teja
18 Feb 2023 4:17 PM GMT
शिव की तरह बनें उदार, तभी होंगे शिव साकार
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सरल सहज भाव और अहंकार हीन आज की व्यवहारिक भाषा मे अगर किसी का संस्थान जनहितायअहर्निश चलता हो,जहां कोई अवकाश नहीं होता तो वह दरबार भगवान शंकर का है जहां ज्ञान विज्ञान और कर्म की अनंत रचनाएं, व्याख्याएं चलती रहती हैं ,दैहिक दैविक भौतिक ताप विनाश के लिए *त्रयः शूल निर्मूलनम शूलपाणि * के रूप में दया के लिए दान के लिए पीड़ा हरण के लिए जहां कोई अवकाश नहीं है,वह शिव दरबार।नेटवर्क रूपी क्लाउड यानीअम्बर में दिगम्बर है एक देवता जो कह सकते हैं की दया करुणा पर बरसाने में हमेशा ऑनलाइन रहते हैं।स्वयं पावरहाउस की तरह स्थिरता रखते हैं लेकिन अपने गणों को घूमने फिरने की शिक्षा अवकाश दे देते हैं। बना स्विच के हमेशा दया करुणा शीतलता भरी चन्द्रमा रूपी लाइट जलाये रखते हैं।दुष्टों को भयभीत करने हेतु मुण्डमाल से मुंड भी टकरा देते हैं।ऋषि कृषि का समन्वय नंदी बी साथ रहते हैं

आज के टूटते परिवार के युग मे भी पूरे परिवार को एक साथ लेकर चलते हैं जैसे लगता है कि एक रेलवे स्टेशन हो जहां आनंद ही मंगल है, दांवपेच का कोई दंगल नहीं है जहां सब लोग एक साथ बैठते हैं परिवार में एकता है भगवान शंकर का शिवत्व उनका कार्य एकात्म संस्क्रति का उत्थान है,जिस में सहिष्णुता सद्भाव और कर्म पालन है जरा उनके परिवार को देखें गणेश उत्तर भारत में ज्यादा प्रसिद्ध है तो दक्षिण भारत में उनके दूसरे पुत्र कार्तिकेय और मुर्गन के रूप मेंअर्थात संपूर्ण वैभव के देवता माने जाते हैं,मातृवत पोषण हेतु शक्तिपीठों में उनकी पत्नी पार्वती पूरे देश भर में हैं।वे तो स्वयं संपूर्ण हिमालय क्षेत्र अपने लिए रख लिए यहां तक की इस्लामिक देशों में नानीपीर कहे जाते हैं और पूरी दुनियाँ मेंपहले पैगंबर के रूप में अगर किसी को माना गया तो भगवान शिव को ही सभी लोग मानते हैं ,ऐसे में आप कह सकते हैं एक ऐसे महादेव जो आज गुरु हैं आज रचनाकार हैं इसके बावजूद वो निराकार मोकार मूलं तुरीयं हैं।समस्त कारणों के कारण है,अजं शाश्वतं कारण कारणानाम है।

हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है भगवान शिव का आज के दिन विवाह माना जाता है और आज ही के दिन भगवान शिव शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे।फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी का विशेष महत्व होता है क्योंकि यह वसंत का संक्रमण काल होता है प्रकृति अपने श्रृंगार की पूर्णता प्राप्त करती है मां पार्वती प्रकृति स्वरूपा है इसलिए सज धजकर आज विवाह करने जा रही हैं।भगवान शंकर का परिवार देखे तो शीश पर जल ,बैठे कैलाश यानी आकाश चन्द्रमा अर्थात अग्नि,प्राप्ति पृथ्वी पर यानी पंचतत्व का साकार रूप भगवान शंकर हैं। डमरु सेना दृष्टि क्योंकि दमन हेतु कार्तिकेय और गणेश जैसे सेनापतियों को जोश भी देना है पुत्र के रूप में पशु मानव का संयुक्त समन्वय के प्रतीक गणेश और मानवता से पशुता निकालने और उसका विनाश करने वाले कार्तिकेय। परिवार देखिए एक प्रकार से डिटॉक्सिफिकेशन करने वाला है भगवान शिव का परिवार है जो मानवता और प्रकृति में विषाक्तता है उसका शमन करते हैं। अपरिग्रह तो देखिए न खाने का न रहने का कोई ठिकाना नही है। पुत्र हैं वह कहीं कैथ तो और जामुन खाते हैं क्योंकि कहा जाता है कि गणेश विवेक के देवता है जो खट्टा और मीठी दोनों परिस्थितियों में समान भाव जागृत रखना चाहिए तभी प्रसन्नता का मोदक मिलता है के प्रतीक हैं। मां पार्वती का वाहन सिंह है जो कभी संग्रहित प्रकृति का नहीं है गणेश का वाहन मूषक है शिव के मस्तक और हाथ में सर्प हैं ,उदाहरण देखिए समन्वय सहानुभूति का है,समन्वय अनेकता में एकता का है, समन्वय सबको साथ लेकर के चलने का है।

भगवान शंकर जैसा की प्रसिद्ध है कि विश्व के इकलौते एंटीडोट हैं जो समस्त विषों का शमन करते हैं ।जितने प्रकार के अल्कलॉइड्स भांग धतूरा मदार उनके ऊपर इसलिए चढ़ता है कि जब आप मतिभ्रम हो जाएं जब आप के अंदर अस्थिरता आ जाए तब आप शिव की तरह अपने को विष रहित अर्थात इन सबसे निराभिमानी बने रहिये। शिव ही संपूर्ण ब्रह्मांड के कह सकते हैं माइट्रोकांड्रिया हैं जो ऊर्जा देते हैं और परमाणु बम की तरह ऊर्जा से नष्ट भी करने की शक्ति रखते भी रखते हैं।हलाहल विष पीते हैं और समस्या का हल भी करते हैं।शिव मानसिक विकारों के शमन के देवता हैं शिव शक्ति का दिव्य मिलन कि यह सृष्टि के आरंभ होती है और यहीं से समाज का निर्माण होता है।

अंततः समस्त लोक के शोक नाशन श्लोक स्वयं तुलसी ने लिखकर यही कहा!भवानी शङ्करौ वन्दे श्रद्धा विश्वास रूपिणौ। याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्।। (रामचरितमानस,बालकाण्ड१/२) अर्थात्- श्रद्धा स्वरूप माँ पार्वती और विश्वास रूप प्रभु शिव को मैं प्रणाम करता हूँ इन दोनों के बिना सिद्ध लोग भी अपने हृदय में बसे ईश्वर(सुख शान्ति)को नहीं पा सकते। *महाशिवरात्रि की मङ्गलकामना केवल कामना नही बल्कि कार्य रूप में मंगल हो यही शुभाकांक्षा है।

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