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धर्म-अध्यात्म
25 अगस्त को रखा जाएगा बहुला चतुर्थी का व्रत, जानिए पूजा की विधि और लाभ
Admin4
23 Aug 2021 5:41 PM GMT
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चतुर्थी तिथि के देवता प्रथम पूज्य भगवान गणेश (Lord Ganesha) माने गए हैं. खास बात ये है कि इस बार चतुर्थी गणेश जी प्रिय दिन बुधवार (25 अगस्त) को पड़ रही है. यानी इस बार व्रत पूजा करने वाले लोगों को
जनता से रिश्ता वेबडेस्क :- नई दिल्ली: हिंदू पंचांग (Panchang) के अनुसार, भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को बहुला चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. चतुर्थी तिथि के देवता प्रथम पूज्य भगवान गणेश (Lord Ganesha) माने गए हैं. खास बात ये है कि इस बार चतुर्थी गणेश जी प्रिय दिन बुधवार (25 अगस्त) को पड़ रही है. यानी इस बार व्रत पूजा करने वाले लोगों को इससे विशेष लाभ मिलेंगे.
बहुला चतुर्थी का महत्व
ऐसी मान्यता भी है कि इस व्रत को करने से संतान के ऊपर आने वाला कष्ट शीघ्र ही समाप्त हो जाते हैं, सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और विघ्नहर्ता गणेश व्यक्ति के जीवन के सभी दुख और संकटों को दूर कर देते हैं. ज्योतिष में भी गणेश को चतुर्थी का स्वामी कहा गया है. इसे संतान की रक्षा का व्रत भी कहा जाता है. भाद्रपद चतुर्थी तिथि को पुत्रवती स्त्रियां अपने संतान की रक्षा के लिए उपवास रखती हैं. इस दिन चन्द्रमा के उदय होने तक बहुला चतुर्थी का व्रत करने का बहुत ही महत्व है. इस व्रत में गौ तथा सिंह की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर पूजा करने का विधान प्रचलित है. इस व्रत को गौ पूजा व्रत भी कहा जाता है.
बहुला चतुर्थी व्रत की पूजा विधि
इस दिन प्रातः काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर नए कपड़े पहनने चाहिए. इस दिन पूरे दिन उपवास रखने के बाद संध्या के समय गणेश गौरी, योगेश्वर श्रीकृष्ण एवं सवत्सा गौ माता का विधिवत पूजन करना चाहिए. पूजा से पूर्व हाथ में गंध, अक्षत (चावल), पुष्प, दूर्वा, द्रव्य, पुंगीफल और जल लेकर गोत्र, वंशादि के नाम का का उच्चारण कर विधिपूर्वक संकल्प अवश्य ही लेना चाहिए अन्यथा पूजा का पूर्ण फल नहीं मिलता है. स्थान विशेष के अनुसार विधि विधान में अंतर हो जाता है. अतः क्षेत्र विशेष में जिस विधि से पूजा प्रचलित है उसी विधि के अनुसार पूजा करनी चाहिए.
कई स्थानों पर शंख में दूध, सुपारी, गंध तथा अक्षत (चावल) से भगवान श्रीगणेश और चतुर्थी तिथि को भी अर्ध्य दिया जाता है. रात्रि में चन्द्रमा के उदय होने पर भी अर्ध्य दिया जाता है. इस दिन पुखे (कुल्हड़) पर पपड़ी आदि रखकर भोग लगाकर पूजन के बाद ब्राह्मण भोजन कराकर उसी प्रसाद में से स्वयं भी भोजन करना चाहिए. बहुला चतुर्थी व्रत की कथा अवश्य ही पढ़ना या सुनना चाहिए. कथा सुनने के बाद ब्राह्मण को भोजन करानी चाहिए तथा उसके बाद स्वयं भोजन करनी चाहिए.
बहुला चतुर्थी व्रत के लाभ
- सकट चतुर्थी व्रत करने व्यक्ति को इच्छित सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
- इस व्रत को करने से शारीरिक तथा मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है.
- यह व्रत निःसंतान को संतान का सुख देता है.
- इस व्रत को करने से धन-धान्य की वृद्धि होती है.
- व्रत करने से व्यावहारिक तथा मानसिक जीवन से सम्बन्धित सभी संकट दूर हो जाते हैं.
- व्रती स्त्री को पुत्र, धन, सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
- संतान के ऊपर आने वाले कष्ट दूर हो जाते है.
- इस दिन गाय के दूध से बनी हुई कोई भी खाद्य सामग्री नहीं खानी चाहिए.
- गाय के साथ-साथ उसके बछड़े का भी पूजन करना चाहिए.
- भगवान श्रीकृष्ण और गाय की वंदना करना चाहिए.
- श्री कृष्ण के सिंह रूप में वंदन करना चाहिए.
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