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धर्म-अध्यात्म
धनतेरस पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और पौराणिक कथा
Deepa Sahu
30 Oct 2021 1:04 PM GMT
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पंचाग के अनुसार प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर धनतेरस पर्व मनाया जाता है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पंचाग के अनुसार प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर धनतेरस पर्व मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही भगवान धनवंतरि पृथ्वी पर सागर मंथन से उत्पन्न हुए थे। इस बार यह तिथि 2 नवंबर को है। तो आइए जानते हैं धनतेरस पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और पौराणिक कथा…
धनतेरस पूजा विधि
धनतेरस के दिन सबसे पहले सुबह उठकर नित्यक्रिया से निवृत्त होकर धनतेरस पूजा की तैयारी शुरू करें। इसके बाद घर के ईशान कोण में भगवान धनवंतरि की पूजा करें। ध्यान रखें कि पूजा करते समय अपने मुंह को हमेशा ईशान, पूर्व या उत्तर दिशा में ही रखें। पूजा करते समय पंचदेव यानी भगवान सूर्य, भगवान गणेश, माता दुर्गा, भगवान शिव और भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद भगवान धनवंतरि की षोडशोपचार पूजा करें। पूजा के अंत में सांगता सिद्धि के लिए दक्षिणा जरूर चढ़ाएं। पूजा समापन करने के बाद भगवान धनवंतरि के सामने धूप, दीप, हल्दी, कुमकुम, चंदन, अक्षत और फूल चढ़ाकर मंत्रोच्चार करते हुए प्रणाम करें। इसके बाद घर के मुख्य द्वार या आंगन में दीपक जलाएं। एक दीपक यम देवता के नाम का जरूर जला दें। ध्यान रखें कि धनतेरस के दिन घर में अपने इष्ट देवता की पूजा करते समय स्वास्तिक, कलश, नवग्रह देवता, पंच लोकपाल, षोडश मातृका और सप्त मातृका का पूजन करना न भूलें।
धनतेरस पूजा शुभ मुहूर्त 2021
धनतेरस पूजा मुहूर्त 2 नवंबर शाम 06 बजकर 18 मिनट से रात 08 बजकर 10 मिनट तक। प्रदोष काल शाम 05 बजकर 32 मिनट से रात 08 बजकर 10 मिनट तक रहेगा। वृषभ काल का समय शाम 06 बजकर 18 मिनट से 08 बजकर 13 मिनट तक रहेगा। 2 नवंबर त्रयोदशी तिथि सुबह 11 बजकर 31 मिनट से 3 नंवबर की सुबह 09 बजकर 02 मिनट पर समाप्त होगी।
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धनतेरस की पौराणिक कथा
भगवान धनवंतरि को स्वास्थ्य के देवता के रूप में पूजा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सागर मंथन के समय भगवान धनवंतरि अमृत कलश लेकर अवतरित हुए थे इसीलिए इस दिन बर्तन खरीदने की प्रथा प्रचलित हुई। एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु द्वारा शाप दिए जाने के कारण देवी लक्ष्मी को तेरह वर्षों तक एक किसान के घर पर रहना था। मां लक्ष्मी के उस किसान के रहने से उसका घर धन-समाप्ति से भरपूर हो गया। तेरह वर्षों के बाद जब भगवान विष्णु मां लक्ष्मी को लेने आए तो किसान ने मां लक्ष्मी से वहीं रुकने का आग्रह किया। इस पर देवी लक्ष्मी ने किसान से कहा कि कल त्रयोदशी है और अगर वह साफ-सफाई करके दीप प्रज्वलित करके उनका आह्वान करेगा तो किसान को धन-वैभव की प्राप्ति होगी। इसके बाद मां लक्ष्मी ने जैसा कहा था किसान ने वैसा ही किया। तब मां की कृपा से उसे धन-वैभव की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि तब से ही धनतेरस के दिन माता लक्ष्मी के पूजन की परंपरा आरंभ हुई।ती लक्षण और इससे बचाव के तरीके
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