धर्म-अध्यात्म

ज्योतिषीय उपाय: इन अचूक उपायों को करने से सफलता, संपन्नता और सौभाग्य प्राप्ति का मिलता है आशीर्वाद

Renuka Sahu
27 July 2023 3:46 AM GMT
ज्योतिषीय उपाय: इन अचूक उपायों को करने से सफलता, संपन्नता और सौभाग्य प्राप्ति का मिलता है आशीर्वाद
x
आज गुरुवार का दिन हैं, जो कि भगवान श्री हरि विष्णु की आराधना व पूजा के लिए विशेष माना जाता हैं, इस दिन भक्त भगवान को प्रसन्न करने के लिए दिनभर उनकी भक्ति आराधना करते हैं और उपवास भी रखते हैं।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आज गुरुवार का दिन हैं, जो कि भगवान श्री हरि विष्णु की आराधना व पूजा के लिए विशेष माना जाता हैं, इस दिन भक्त भगवान को प्रसन्न करने के लिए दिनभर उनकी भक्ति आराधना करते हैं और उपवास भी रखते हैं।

मान्यता है कि आज के दिन व्रत पूजन के साथ ही अगर श्री पुरुष सूक्तम् का संपूर्ण पाठ किया जाए तो भगवान शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और साधक को सफलता, संपन्नता और सौभाग्य का आशीर्वाद प्रदान करते हैं, तो ऐसे में आज हम आपके लिए लेकर आए हैं संपूर्ण पुरुष सूक्तम् पाठ।
॥ श्री पुरुष सूक्तम्॥
ॐ सहस्त्रशीर्षा पुरुष:सहस्राक्ष:सहस्रपात्। स भूमि सर्वत: स्पृत्वाSत्यतिष्ठद्द्शाङ्गुलम् ॥
पुरुषSएवेदं सर्व यद्भूतं यच्च भाव्यम्। उतामृतत्यस्येशानो यदन्नेनातिरोहति॥
एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पूरुषः। पादोSस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि॥
त्रिपादूर्ध्व उदैत्पुरुष:पादोSस्येहाभवत्पुनः। ततो विष्वङ् व्यक्रामत्साशनानशनेSअभि॥
ततो विराडजायत विराजोSअधि पूरुषः। स जातोSअत्यरिच्यत पश्चाद्भूमिमथो पुर:॥
तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत: सम्भृतं पृषदाज्यम्। पशूंस्न्ताँश्चक्रे वायव्यानारण्या ग्राम्याश्च ये॥
तस्माद्यज्ञात् सर्वहुतSऋचः सामानि जज्ञिरे। छन्दाँसि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत॥
तस्मादश्वाSअजायन्त ये के चोभयादतः। गावो ह जज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाताSअजावयः॥
तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन् पूरुषं जातमग्रत:। तेन देवाSअयजन्त साध्याSऋषयश्च ये॥
यत्पुरुषं व्यदधु: कतिधा व्यकल्पयन्। मुखं किमस्यासीत् किं बाहू किमूरू पादाSउच्येते॥
ब्राह्मणोSस्य मुखमासीद् बाहू राजन्य: कृत:। ऊरू तदस्य यद्वैश्य: पद्भ्या शूद्रोSअजायत॥
चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षो: सूर्यो अजायत। श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत॥
नाभ्याSआसीदन्तरिक्ष शीर्ष्णो द्यौः समवर्त्तत। पद्भ्यां भूमिर्दिश: श्रोत्रात्तथा लोकांर्Sअकल्पयन्॥
यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत। वसन्तोSस्यासीदाज्यं ग्रीष्मSइध्म: शरद्धवि:॥
सप्तास्यासन् परिधयस्त्रि: सप्त: समिध: कृता:। देवा यद्यज्ञं तन्वानाSअबध्नन् पुरुषं पशुम्॥
यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
ते ह नाकं महिमान: सचन्त यत्र पूर्वे साध्या: सन्ति देवा: ॥
Next Story