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अश्विन मास एकादशी व्रत, पहले जान लें ये महत्वपूर्ण नियम
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सनातन धर्म एकादशी व्रत को सभी व्रतों में श्रेष्ठ बताया गया है। हिंदी पंचांग के अनुसार प्रत्येक मास में पंद्रह-पंद्रह दिन के दो पक्ष होते हैं, शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। दोनों पक्षों की ग्यारहवीं तिथि को एकादशी का व्रत किया जाता है। अश्विन मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस बार इंदिरा एकादशी 02 अक्टूबर 2021 दिन शनिवार को पड़ रही है। यह एकादशी पितृपक्ष में पड़ती है। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्रत्येक एकादशी का दिन जगत पालनकर्ता भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित होता है, परंतु हर एकादशी का अपना अलग महात्म्य होता है।धार्मिक मान्यता के अनुसार जो मनुष्य सभी एकादशियों के व्रत नियम और निष्ठा के साथ रखता है, वह इस लोक के सुखों को भोगते हुए बैकुंठ धाम को प्राप्त करता है। यदि आप भी एकादशी व्रत करना चाहते हैं तो पहले आपको इसके सभी नियमों के बारे में जानना बहुत आवश्यक है। तो चलिए जानते हैं एकादशी व्रत के नियम।
जान लें एकादशी के ये जरूरी नियम-
एकादशी व्रत के नियम दशमी तिथि से ही आरंभ हो जातें हैं अतः सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए।
एकादशी के व्रत में किसी भी प्रकार का अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है खासतौर पर एकादशी में चावल का सेवन पूर्णतया वर्जित होता है।
जो लोग एकादशी व्रत नहीं रखते हैं उन्हें भी इस दिन चावलों का त्याग करना चाहिए।
एकादशी व्रत का पारण अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को सूर्योदय के बाद पूजन और ब्राह्मण को भोजन करवाने के बाद करना चाहिए।
इस बात का खास ध्यान रखें कि एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले और हरि वासर समाप्त होने के बाद ही करना चाहिए।
यदि सूर्योदय से पहले द्वादशी तिथि समाप्त हो जाए तो सूर्योदय के बाद व्रत का पारण किया जा सकता है। इसके अलावा द्वादशी तिथि में ही व्रत का पारण कर लेना चाहिए।
द्वादशी समाप्त होने के बाद एकादशी का पारण करना पाप के समान माना जाता है।
इन बातों का भी रखें ध्यान-
एकादशी व्रत में जितना हो सके कम बोलना चाहिए ताकि आपके मुख से गलती से कोई अपशब्द न निकले।
यदि गलती से आपके मुख से किसी के लिए कोई अपशब्द निकल जाए तो भगवान श्री हरि विष्णु के समक्ष क्षमा प्रार्थना करें।
व्रत में पूरा समय ईश्वर का स्मरण करना चाहिए।
दशमी तिथि से द्वादशी तिथि तक पूर्णतया ब्रह्मचर्य का पारण करना चाहिए।