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धर्म-अध्यात्म
क्या बहुत कठोर होते हैं, इस्कॉन संन्यासी बनने के नियम, जानिए
Neha Dani
14 July 2023 4:05 PM GMT
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धर्म अध्यात्म: इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस (iskcon) के दुनिया भर में करोड़ों की संख्या में फॉलोअर्स हैं। कृष्ण आंदोलन या हरे कृष्ण के नाम से इन्हें जाना जाता है। सनातन धर्म का प्रचार करने के लिए सालों से मुहिम चला रहा इस्कॉन अपने संत अमोघ लीला दास के विवेकानंद को लेकर दिए गए विवादित बयान के कारण इन दिनों सुर्खियों में है। संत अमोघ लीला दास जो iskcon के भक्तों के बीच एक जाना-माना नाम हैं उन्होंने स्वामी विवेकानंद को लेकर बयान दिया था कि 'क्या कोई दिव्यपुरुष कोई जानवर को मारकर खाएगा? क्या कभी मछली खाएगा? हालांकि अपने बयान पर उन्होंने माफी मांग ली है लेकिन इस्कॉन ने उन्हें एक माह के लिए प्रतिबंधित कर दिया है। अमोघ लीला दास वो शख्स है जिन्होंने विदेश में लाखों रुपये सैलरी वाली इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़कर महज 29 साल में इस्कॉन के सन्यासी बन गए।
आइए जातने हैं कि इस्कॉन का सन्यासी कैसे बनते हैं और उन्हें किन नियमों का पालन करना होता है? क्या इस्कॉन संन्यासी का जीवन बहुत कठिन होता है? इस्कॉन का संन्यासी बनने के लिए कठोर तपस्या की तो नहीं लेकिन शास्त्रों में लिखे हुए नियमों का सख्ती से पालन करना होता है। नियमों का पालन करने वाले को ही ब्रह्मचारी यानी कि वानप्रस्थ होने की संन्यास दीक्षा दी जाती है। संन्यासी के मार्गदर्शन में शुरू होती ही शिक्षा इस्कॉन का ब्रह्मचारी बनने के लिए लौकिक शिक्षा पूरी करनी होती है। इस्कॉन मंदिर में वरिष्ठ ब्रम्हचारी या संन्यासी मार्गदर्शन में ब्रह्मचारी बनकर रहना होता है। ये ही ब्रम्हचारी के शिक्षा गुरु होते हैं। पीले वस्त्र धारण करने होते हैं शिक्षा गुरु के मार्गदर्शन में सकारात्मक बदलाव के लिए शिक्षा ग्रहण करते समय ब्रह्मचारी को पीले वस्त्र यानी पीला धोती कुर्ता धारण करना होता है।
शिक्षा ग्रहण करते समय करने होते हैं ये काम दो तीन साल बाद के बाद ब्रम्हचारी को सफेद कुर्ता धोती दिया जाता है यानी कि ब्रम्हहचारी शिक्षा प्राप्त करते हुए प्रगति के पद पथ पर है। संन्यासी बनने के लिए पूर्ण ब्रह्मचारी होना जरूरी है उसका कृष्ण भगवान की सेवा करना ही मुख्य काम होता है। भजन संकीर्तन, वाद्य वादन, गायन, पाक कला, संस्कृत भाषा ऐसे कोर्स मंदिर में ही अपनी पसंद के अनुसार पूरा कर सकते हैं। सदा के लिए छोड़नी होती है ये चीजें ब्रहृमचारी को मांस, मदिरा, सेक्स, जुवा यहां तक कि चाय कॉफी भी त्यागना अनिवार्य होता है। इसके अलावा भोजन में लहसुन प्याज को भी त्यागना होता है। मोबाइल फोन और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का त्याग करना अनिवार्य होता है। दीक्षा देते समय दिया जाता है नया नाम ब्रह्मचारी की शिक्षा लेते समय शिक्षा गुरु की अनुमति के बिना कही भी जाना सख्त मना होता है।सभी कार्य उन्हीं की अनुमति पर ही करना होता है। शिक्षा गुरु ये निर्णय करता है कि आप दीक्षा लेने के योग्य हैं या अयोग्य हैं। शिक्षा गुरु के उत्तीर्ण किए जाने के बाद इस्कॉन के प्रमुख गुरु सन्यस्त की दीक्षा देंते है इसके साथ ही नया नाम दिया जाता है।
जीवन भर गेरुआ वस्त्र धारण करना होता है इसके साथ ही वो ही तय करेंगे कि आप देश या विदेश के किस मंदिर में संन्यासी बनकर जाएंगे। दीक्षा मिलने के बाद हर संन्यासी को गेरुआ वस्त्र धारण करना होता है। संन्यासी बनने के बाद की जिम्मेदारी भगवत को समर्पित होने के बाद भागवत गीता का विश्व भर में प्रचार करना, श्रीमद भागवतम का ज्ञान जन-जन तक पहुंचाना, कृष्ण भक्ति का प्रसार करके लोगों को भगवान कृष्ण की भक्ति करने के लिए प्रेरित करना भी शामिल है। सन्यांसी को हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे का महामंत्र का जप करना और उसका प्रचार करना भी शामिल है।
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