धर्म-अध्यात्म

अन्नपूर्णा जयंती इस दिन मनाई जाएगी.....ऐसे करें पूजा-पाठ, कभी नहीं होगी धन-धान्य की कमी

Bhumika Sahu
17 Dec 2021 4:15 AM GMT
अन्नपूर्णा जयंती इस दिन मनाई जाएगी.....ऐसे करें पूजा-पाठ, कभी नहीं होगी धन-धान्य की कमी
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संपूर्ण विश्व के अधिपति विश्वनाथ की अर्धांगिनी मां अन्नपूर्णा बिना किसी भेदभाव से सभी का भरण-पोषण करती हैं. जो भी भक्ति-भाव से इन वात्सल्यमयी माता का अपने घर में आवाहन करता है, मां अन्नपूर्णा उसके यहां सूक्ष्म रूप से अवश्य वास करती हैं.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन मां अन्नपूर्णा जन्मोत्सव मनाया जाता है. इस बार रविवार, 19 दिसंबर को अन्नपूर्णा जयंती मनाई जाएगी. जब पृथ्वी पर लोगों के पास खाने के लिए कुछ नहीं था तो मां पार्वती ने अन्नपूर्णा का रूप लेकर पृथ्वी को इस संकट से निकाला था. अन्नपूर्णा जयंती का दिन मनुष्य के जीवन में अन्न के महत्व को दर्शाता है. इस दिन रसोई की सफाई और अन्न का सदुपयोग बहुत जरूरी होता है. माना जाता है कि इस दिन रसोई की सफाई करने और अन्न का सदुपयोग करने से मनुष्य के जीवन में कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं होती, इसलिए हमेशा अन्न का सदुपयोग अवश्य करना चाहिए.

माता पार्वती का ही स्वरूप हैं मां अन्नपूर्णा
मां अन्नपूर्णा के पूजन और अनुष्ठान का विशेष महत्व है. ब्रह्मवैव‌र्त्तपुराण के काशी रहस्य अनुसार भवानी अर्थात पार्वती ही अन्नपूर्णा हैं. मार्गशीर्ष माह में इनका व्रत सर्व मनोकामना पूर्ण करने वाला है व इस का वैज्ञानिक महत्व भी है. मान्यताओं के मुताबिक इस समय कोशिकाओं के जेनेटिक कण रोग निरोधक होकर चिरायु व युवा बनाने में प्रयत्नशील होते हैं. इन दिनों किया गया षटरस भोजन वर्ष उपरांत स्वास्थ्य वृद्धि करता है.
अन्नपूर्णा देवी हिन्दू धर्म में मान्य देवी-देवताओं में विशेष रूप से पूजनीय हैं. इन्हें मां जगदम्बा का ही एक रूप माना गया है, जिनसे सम्पूर्ण विश्व का संचालन होता है. इन्हीं जगदम्बा के अन्नपूर्णा स्वरूप से संसार का भरण-पोषण होता है. अन्नपूर्णा का शाब्दिक अर्थ है- 'धान्य' (अन्न) की अधिष्ठात्री. सनातन धर्म की मान्यता है कि प्राणियों को भोजन मां अन्नपूर्णा की कृपा से ही प्राप्त होता है.
काशी है माता अन्नपूर्णा की पुरी
भगवान शिव की अर्धांगनी, कलयुग में माता अन्नपूर्णा की पुरी काशी है, किंतु सम्पूर्ण जगत उनके नियंत्रण में है. बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी के अन्नपूर्णा जी के आधिपत्य में आने की कथा बड़ी रोचक है.
भगवान शंकर जब पार्वती के संग विवाह करने के पश्चात उनके पिता के क्षेत्र हिमालय के अन्तर्गत कैलाश पर रहने लगे, तब देवी ने अपने मायके में निवास करने के बजाय अपने पति की नगरी काशी में रहने की इच्छा व्यक्त की. महादेव उन्हें साथ लेकर अपने सनातन गृह अविमुक्त-क्षेत्र (काशी) आ गए. काशी उस समय केवल एक महाश्मशान नगरी थी. माता पार्वती को सामान्य गृहस्थ स्त्री के समान ही अपने घर का मात्र श्मशान होना नहीं भाया.
काशी का प्रधान देवीपीठ है माता अन्नपूर्णा का मंदिर
इस पर यह व्यवस्था बनी कि सत्य, त्रेता, और द्वापर, इन तीन युगों में काशी श्मशान रहे और कलियुग में यह अन्नपूर्णा की पुरी होकर बसे. इसी कारण वर्तमान समय में माता अन्नपूर्णा का मंदिर काशी का प्रधान देवीपीठ हुआ. स्कन्दपुराण के 'काशीखण्ड' में लिखा है कि भगवान विश्वेश्वर गृहस्थ हैं और भवानी उनकी गृहस्थी चलाती हैं. अत: काशीवासियों के योग-क्षेम का भार इन्हीं पर है. 'ब्रह्मवैव‌र्त्तपुराण' के काशी-रहस्य के अनुसार भवानी ही अन्नपूर्णा हैं.
परन्तु जनमानस आज भी अन्नपूर्णा को ही भवानी मानता है. श्रद्धालुओं की ऐसी धारणा है कि मां अन्नपूर्णा की नगरी काशी में कभी कोई भूखा नहीं सोता है. अन्नपूर्णा माता की उपासना से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं. ये अपने भक्त की सभी विपत्तियों से रक्षा करती हैं.
इनके प्रसन्न हो जाने पर अनेक जन्मों से चली आ रही दरिद्रता का भी निवारण हो जाता है. ये अपने भक्त को सांसारिक सुख प्रदान करने के साथ मोक्ष भी प्रदान करती हैं. तभी तो ऋषि-मुनि इनकी स्तुति करते हुए कहते हैं-
शोषिणीसर्वपापानांमोचनी सकलापदाम्.दारिद्र्यदमनीनित्यंसुख-मोक्ष-प्रदायिनी॥
काशी की पारम्परिक 'नवगौरी यात्रा' में आठवीं भवानी गौरी तथा नवदुर्गा यात्रा में अष्टम महागौरी का दर्शन-पूजन अन्नपूर्णा मंदिर में ही होता है. अष्टसिद्धियों की स्वामिनी अन्नपूर्णाजी की चैत्र तथा आश्विन के नवरात्र में अष्टमी के दिन 108 परिक्रमा करने से अनन्त पुण्य फल प्राप्त होता है.
माता अन्नपूर्णा देवी की पूजा विधि
सामान्य दिनों में अन्नपूर्णा माता की आठ परिक्रमा करनी चाहिए. प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन अन्नपूर्णा देवी के निमित्त व्रत रखते हुए उनकी उपासना करने से घर में कभी धन-धान्य की कमी नहीं होती है.
भविष्यपुराण में मार्गशीर्ष मास के अन्नपूर्णा व्रत की कथा का विस्तार से वर्णन मिलता है. काशी के कुछ प्राचीन पंचांग मार्गशीर्ष की पूर्णिमा में अन्नपूर्णा जयंती का पर्व प्रकाशित करते हैं.
अन्नपूर्णा देवी का रंग जवापुष्प के समान है. इनके तीन नेत्र हैं, मस्तक पर अ‌र्द्धचन्द्र सुशोभित है. भगवती अन्नपूर्णा अनुपम लावण्य से युक्त नवयुवती के सदृश हैं. बन्धूक के फूलों के मध्य दिव्य आभूषणों से विभूषित होकर ये प्रसन्न मुद्रा में स्वर्ण-सिंहासन पर विराजमान हैं.
देवी के बाएं हाथ में अन्न से पूर्ण माणिक्य, रत्न से जड़ा पात्र तथा दाहिने हाथ में रत्नों से निर्मित कलछुल है. अन्नपूर्णा माता अन्न दान में सदा तल्लीन रहती हैं.
देवीभागवत में राजा बृहद्रथ की कथा से अन्नपूर्णा माता और उनकी पुरी काशी की महिमा उजागर होती है. भगवती अन्नपूर्णा पृथ्वी पर साक्षात कल्पलता हैं क्योंकि ये अपने भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं.
स्वयं भगवान शंकर इनकी प्रशंसा में कहते हैं- "मैं अपने पांचों मुख से भी अन्नपूर्णा का पूरा गुणगान करने में समर्थ नहीं हूं. यद्यपि बाबा विश्वनाथ काशी में शरीर त्यागने वाले को तारक-मंत्र देकर मुक्ति प्रदान करते हैं, तथापि इसकी याचना मां अन्नपूर्णा से ही की जाती है. गृहस्थ धन-धान्य की तो योगी ज्ञान-वैराग्य की भिक्षा इनसे मांगते हैं-
अन्नपूर्णेसदा पूर्णेशङ्करप्राणवल्लभे॥
ज्ञान-वैराग्य-सिद्धयर्थम् भिक्षाम्देहिचपार्वति॥
मंत्र-महोदधि, तन्त्रसार, पुरश्चर्यार्णव आदि ग्रन्थों में अन्नपूर्णा देवी के अनेक मंत्रों का उल्लेख तथा उनकी साधना-विधि का वर्णन मिलता है. मंत्रशास्त्र के सुप्रसिद्ध ग्रंथ 'शारदातिलक' में अन्नपूर्णा के सत्रह अक्षरों वाले निम्न मंत्र का विधान वर्णित है-
"ह्रीं नम:! भगवतिमाहेश्वरिअन्नपूर्णेस्वाहा"
मंत्र को सिद्ध करने के लिए इसका सोलह हजार बार जप करके, उस संख्या का दशांश (1600 बार) घी से युक्त अन्न के द्वारा होम करना चाहिए. जप से पूर्व यह ध्यान करना होता है-
रक्ताम्विचित्रवसनाम्नवचन्द्रचूडामन्नप्रदाननिरताम्स्तनभारनम्राम्.नृत्यन्तमिन्दुशकलाभरणंविलोक्यहृष्टांभजेद्भगवतीम्भवदु:खहन्त्रीम्॥
अर्थात 'जिनका शरीर रक्त वर्ण का है, जो अनेक रंग के सूतों से बुना वस्त्र धारण करने वाली हैं, जिनके मस्तक पर बालचंद्र विराजमान हैं, जो तीनों लोकों के वासियों को सदैव अन्न प्रदान करने में व्यस्त रहती हैं, यौवन से सम्पन्न, भगवान शंकर को अपने सामने नाचते देख प्रसन्न रहने वाली, संसार के सब दु:खों को दूर करने वाली, भगवती अन्नपूर्णा का मैं स्मरण करता हूं.'
प्रात:काल नित्य 108 बार अन्नपूर्णा मंत्र का जप करने से घर में कभी अन्न-धन का अभाव नहीं होता. शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन अन्नपूर्णा का पूजन-हवन करने से वे अति प्रसन्न होती हैं. करुणा मूर्ति ये देवी अपने भक्त को भोग के साथ मोक्ष प्रदान करती हैं.
सम्पूर्ण विश्व के अधिपति विश्वनाथ की अर्धांगिनी अन्नपूर्णा सबका बिना किसी भेदभाव से भरण-पोषण करती हैं. जो भी भक्ति-भाव से इन वात्सल्यमयी माता का अपने घर में आवाहन करता है, मां अन्नपूर्णा उसके यहां सूक्ष्म रूप से अवश्य वास करती हैं.
मां अन्नपूर्णा विशेष पूजन विधि
शिवालय जाकर देवी अन्नपूर्णा अर्थात माता पार्वती का विधिवत पूजन करें. गौघृत का दीप करें, सुगंधित धूप करें, मेहंदी चढ़ाएं, सफेद फूल चढ़ाएं. धनिया की पंजीरी का भोग लगाएं तथा किसी माला से इन विशेष मंत्रों का 1-1 माला जाप करें.
पूजन मुहूर्त- प्रातः 08:20 से 11:45 तक
पूजन मंत्र- ह्रीं अन्नपूर्णायै नम॥
अन्नपूर्णा जयंती विशेष उपाय
यश व किर्ति में वृद्धि हेतु देवी अन्नपूर्णा पर चढ़े मूंग गाय को खिलाएं.
विपत्तियों से रक्षा हेतु देवी अन्नपूर्णा पर चढ़ा नवधान पक्षियों के लिए रखें.
अन्न-धान्य की कमी से बचने हेतु देवी अन्नपूर्णा पर चढ़ा सूखा धनिया किचन में छुपाकर रखें.


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