धर्म-अध्यात्म

अनंत चतुर्दशी आज, पांडवों ने भी रखा था यह व्रत

Subhi
9 Sep 2022 3:30 AM GMT
अनंत चतुर्दशी आज, पांडवों ने भी रखा था यह व्रत
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अनंत चतुर्दशी व्रत भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को रखा जाता है। इस साल अनंत चतुर्दशी 9 सितंबर, शुक्रवार को है। इस दिन को अनंत चौदस के नाम से जानते हैं।

अनंत चतुर्दशी व्रत भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को रखा जाता है। इस साल अनंत चतुर्दशी 9 सितंबर, शुक्रवार को है। इस दिन को अनंत चौदस के नाम से जानते हैं। अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा की जाती है। इस व्रत को प्रभाव से जातक को अनंत फलों की प्राप्ति होती है। अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश विसर्जन किया जाता है। यह दिन 10 दिनों तक चलने वाले गणेशोत्सव का आखिरी दिन होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, 14 साल तक लगातार अनंत चतुर्दशी का व्रत रखने से विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।

पांडवों ने भी रखा था यह उपवास-

जब पांडव जुए में अपना राज्य हारकर वन में कष्ट भोग रहे थे तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी व्रत करने की सलाह दी थी। पांडवों ने अपने वनवास में हर साल इस व्रत का पालन किया। इस व्रत के प्रभाव से पांडव महाभारत के युद्ध में विजयी हुए। कहा जाता है कि सत्‍यवादी राजा हरिशचंद्र को भी इस व्रत के प्रभाव से अपना राज्य वापस मिला था।

श्रीकृष्ण ने इस व्रत की महता समझाने के लिए एक कथा सुनाई, जो इस प्रकार है-

प्राचीन काल में सुमंत नामक एक तपस्वी ब्राह्मण थे। उसकी पत्नी का नाम दीक्षा था। दोनों की एक परम सुंदरी धर्मपरायण तथा ज्योतिर्मयी कन्या थी, जिसका नाम सुशीला था। सुशीला बड़ी हुई तो उसकी माता दीक्षा की मृत्यु हो गई। पत्नी की मृत्यु के उपरांत सुमंत ने कर्कशा नामक स्त्री से दूसरा विवाह कर लिया और सुशीला का विवाह ब्राह्मण सुमंत ने कौंडिन्य ऋषि के साथ कर दिया।

विदाई के समय कर्कशा ने दामाद को कुछ ईंटें और पत्थरों के टुकड़े बांध कर दे दिए। कौंडिन्य ऋषि अपनी पत्नी को लेकर अपने आश्रम की ओर निकल पड़े। रास्त में ही शाम ढलने लग गई और ऋषि नदी के किनारे संध्या वंदन करने लगे। इसी दौरान सुशीला ने देखा कि बहुत सारी महिलाएं किसी देवता की पूजा कर रही थीं। सुशीला ने महिलाओं से पूछा कि वे किसकी प्रार्थना कर रही हैं, इस पर उन लोगों ने उन्हें भगवान अनंत की पूजा करने और इस दिन उनका व्रत रखने के महत्व के बारे में बताया। व्रत के महत्व के बारे में सुनने के बाद सुशीला ने वहीं उस व्रत का अनुष्ठान किया और चौदह गांठों वाला डोरा हाथ में बांध कर ऋषि कौंडिन्य के पास आ गई।

कौंडिन्य ने सुशीला से डोरे के बारे में पूछा तो उन्होंने सारी बात बता दी। कौंडिन्य ने यह सब कुछ मानने से मना कर दिया और पवित्र धागे को निकालकर अग्नि में डाल दिया। इसके बाद उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई और वह दुखी रहने लगे। इस दरिद्रता का उन्होंने अपनी पत्नी से कारण पूछा तो सुशीला ने अनंत भगवान का डोरा जलाने की बात कही। पश्चाताप करते हुए ऋषि कौंडिन्य अनंत डोरे की प्राप्ति के लिए वन में चले गए। वन में कई दिनों तक भटकते-भटकते निराश होकर एक दिन भूमि पर गिर पड़े।

तब अनंत भगवान प्रकट होकर बोले, "हे कौंडिन्य! तुमने मेरा तिरस्कार किया था, उसी से तुम्हें इतना कष्ट भोगना पड़ा। तुम दुखी हुए। अब तुमने पश्चाताप किया है। मैं तुमसे प्रसन्न हूं। अब तुम घर जाकर विधिपूर्वक अनंत व्रत करो। 14 वर्षों तक व्रत करने से तुम्हारा दुख दूर हो जाएगा। तुम धन-धान्य से संपन्न हो जाओगे। कौंडिन्य ने वैसा ही किया और उन्हें सारे क्लेशों से मुक्ति मिल गई।"

श्रीकृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने भी अनंत भगवान का 14 वर्षों तक विधिपूर्वक व्रत किया और इसके प्रभाव से पांडव महाभारत के युद्ध में विजयी हुए व चिरकाल तक राज्य करते रहे। इसके बाद ही अनंत चतुर्दशी का व्रत प्रचलन में आया।

क्रेडिट : लाइव हिंदुस्तान

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