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अनंत चतुर्दशी 19 सितंबर को, जानें पूजा विधि और महत्व
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भादौं यानि भाद्रपद मास के व्रत व त्यौहारों में एक व्रत इस माह की शुक्ल चतुर्दशी को मनाया जाता है, जिसे अनंत चतुर्दशी कहा जाता है। इस दिन अनंत यानि भगवान श्री हरि यानि भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। साथ ही सूत या रेशम के धागे को चौदह गांठे लगाकर लाल कुमकुम से रंग कर पूरे विधि विधान से पूजा कर अपनी कलाई पर बांधा जाता है।
इस धागे को अनंत कहा जाता है जिसे भगवान विष्णु का स्वरूप भी माना जाता है। मान्यता है कि यह अनंत रक्षासूत्र का काम करता है। भगवान श्री हरि अनंत चतुर्दशी का उपवास करने वाले उपासक के दुखों को दूर करते हैं और उसके घर में धन धान्य से संपन्नता लाकर उसकी विपन्नता को समाप्त कर देते हैं। इस वर्ष अनंत चतुर्दशी का पर्व 19 सितंबर को है।
अनंत चतुर्दशी व्रत का महत्व
भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी कहा जाता है। अनंत भगवान् नारायण का नाम है इसलिए इसे अनंत चतुर्दशी कहा जाता है। इस दिन भगवान अनंत का पूजन और अर्चन किया जाता है। इसके व्रत में केवल एक समय बिना नमक के भोजन करने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि बारह वर्षों का वनवास भोग रहे पांडवों के आश्रम में एक बार भगवान कृष्ण बिना किसी सूचना के अचानक प्रगट हो गए थे।
इस तरह से उनके अचानक और अलभ्य दर्शन लाभ से पांडव बहुत प्रसन्न हुए और महाराज युधिष्ठिर ने कृष्ण से अपनी विपत्तियों को दूर करने का उपाय पूछा। तब कृष्ण ने उन्हें इस अनंत चतुर्दशी के व्रत का माहात्म्य बताते हुए व्रत रखने की सलाह दी थी। ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत को निरंतर करने के कारण ही पांडवों के सभी कष्ट दूर हो गए।
इस व्रत में भगवान अनंत यानी विष्णु का पूजन किया जाता है। इस व्रत के रखने से व्रती के समस्त कष्ट मिट जाते हैं। लेकिन इसका महत्व सिर्फ इतना भर नहीं है बल्कि भगवान श्री गणेश को दस दिनों तक अपने घर में रखकर उनका आज ही के दिन विसर्जन भी किया जाता है।
हिंदू ही नहीं जैन धर्म के अनुयायियों के लिये भी इस दिन का खास महत्व होता है। जैन धर्म के दशलक्षण पर्व का समापन भी शोभायात्राएं निकालकर भगवान का जलाभिषेक कर इसी दिन किया जाता है। मान्यता है यह भी है कि पांडवों ने भी अपने कष्ट के दिनों (वनवास) में अनंत चतुर्दशी के व्रत को किया था जिसके पश्चात उन्होंने कौरवों पर विजय हासिल की।
अनंत चतुर्दशी व्रत पूजा विधि
इस व्रत में यमुना नदी, भगवान शेषनाग और भगवान श्री हरि की पूजा करने का विधान बताया जाता है। कलश को मां यमुना का स्वरूप मानते हुए उसकी स्थापना की जाती है साथ ही शेषनाग के रूप में दुर्वा रखी जाती है, कुश से निर्मित अनंत की स्थापना भी की जाती है तो सूत या रेशम के धागे को लाल कुमकुम को भी अनंत स्वरूप मानकर रक्षासूत्र के तौर पर उसे कलाई में बांधा जाता है। अनंत चतुर्दशी पर भगवान श्री गणेश का आह्वान कर उनकी पूजा भी अवश्य करनी चाहिए।