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धार्मिक नगरी उज्जैन मे एक ऐसा शिव मंदिर है, जहां विराजमान महादेव के दर्शन करने वाले श्रद्धालु कभी भी संकट में नहीं रहते हैं. महादेव सभी पर अपनी विशेष कृपा करते हैं हैं. ऐसा यहां के मंदिर के पुजारी का कहना है. 84 महादेव मे 33 वां स्थान रखने वाले श्री आनंदेश्वर महादेव कुछ ऐसे ही हैं, जिनकी प्रतिमा प्राचीन और चमत्कारी है.
मंदिर के पुजारी पंडित राजेंद्र कुमार शर्मा ने बताया कि चक्रतीर्थ पहुंच मार्ग पर ही घाटी पर श्री आनंदेश्वर महादेव का मंदिर स्थित है, जहां भगवान श्री आनंदेश्वर की काले पाषाण की प्रतिमा स्वयं भू बताई जाती है. मंदिर में भगवान श्री गणेश, श्री कार्तिकेय स्वामी और माता पार्वती के साथ ही नंदी जी की प्रतिमाएं भी विराजमान हैं. जबकि मंदिर के बाहर नृसिंह भगवान कि लगभग 150 वर्ष पुरानी प्रतिमा भी स्थापित है.
पुजारी पंडित राजेंद्र शर्मा ने बताया कि भगवान श्री आनंदेश्वर महादेव सब पर कृपा बरसाने वाले हैं. इसलिए इनके दर्शन करने मात्र से ही समस्त संकटों का निवारण हो जाता है और संतान की प्राप्ति भी होती है. मंदिर में वैसे तो हर त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन प्रदोष, शिवरात्रि और सोमवार को बड़ी संख्या मे भक्तजन भगवान का पूजन अर्चन करने मंदिर आते हैं.
गुरु पूर्णिमा उत्सव की रहती है धूम
मंदिर के समीप आनंद आश्रम भी है, जहां ब्रह्मलीन गणपतदास महाराज और कचरू दास महाराज की समाधि के साथ ही प्रतिमा भी लगी हुई है. इनका आशीर्वाद लेने के लिए भी बड़ी संख्या में भक्तजन आश्रम पर पहुंचते हैं. मंदिर के पुजारी पंडित राजेंद्र शर्मा बताते हैं कि गुरु पूर्णिमा उत्सव की धूम मंदिर में दिखाई देती है. इस दौरान यहां रामकथा, शिव कथा, भागवत कथा के साथ ही भंडारे के भी आयोजन होते हैं.
भक्त आनंद के नाम से जाने जाते हैं श्री आनंदेश्वर महादेव
स्कंद पुराण के अवंती खंड में उल्लेखित आनंदेश्वर महादेव की कथा बताती है कि प्राचीन काल मे अनमित्र नाम के एक राजा हुए जो कि काफी उदार और तपस्वी थे. उनकी रानी का नाम गिरी प्रभा था, जिन्हे आनंद नाम का एक पुत्र भी हुआ था. यह पुत्र इतना विचित्र था कि पैदा होने के साथ ही वह पुनर्जन्म की बातें करता था. उसका कहना था कि यह सारी सृष्टि स्वार्थी है. एक बिल्ली रूपी राक्षसी मुझे अपने स्वार्थ के लिए उठाकर ले जाना चाहती है .
बालक की ऐसी बात सुनकर रानी गिरीप्रभा नाराज हो जाती हैं और उसे अकेला छोड़ देती हैं. उसी समय बिल्ली के रूप में घूम रही राक्षसी उस बालक को उठाकर समीप ही स्थित एक अन्य राज्य की रानी हैमिनी के शयनकक्ष में इस बालक को रख देती हैं. जब राज्य का राजा विक्रांत रानी के कक्ष में बच्चे को देखता है तो उसे अपना ही बालक समझ लेता है और उसका नाम आनंद रख देता है. जबकि राक्षसी राजा विक्रांत के असली पुत्र को बोध नामक ब्राह्मण के घर पर छोड़ देती है क्योंकि राजा विक्रांत के घर रह रहे पुत्र आनंद को अपने पुनर्जन्म की सभी स्मृति रहती है.
आनंद ने भगवान शिव की उपासना की
इसीलिए जब यज्ञोपवित संस्कार के दौरान गुरु उनसे अपनी माता को नमस्कार करने को कहते हैं तो वे गुरु से पूछते हैं कि मे अपनी किस माता को नमस्कार करूं क्योंकि मेरी दो माताएं हैं. एक माता हेमिनी और दूसरी मां गिरीभद्रा राजा विक्रांत के असली पुत्र तो बहुत ब्राह्मण के घर पर हैं, जिनका नाम चैत्र है. यह सभी बात सुन सभी लोग आश्चर्यचकित रह जाते हैं. सभी जानकारी लगने के बाद राजा विक्रांत अपने पुत्र चैत्र को ब्राह्मण के घर से ले आते हैं और उसे अपना राज्य सौंप देते है, लेकिन आनंद इन सबके बाद महाकाल वन पहुंचता है. जहां वह भगवान शिव की वर्षों तक उपासना करता है, जिससे उन्हें ऐसी शक्ति प्राप्त होती है वे छटे मनु बन जाते हैं. क्योंकि इस शिवलिंग का पूजन महातपस्वी आनंद के द्वारा किया गया था इसीलिए इस लिंग को उन्हीं के नाम पर आनंदेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है.
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