धर्म-अध्यात्म

इस दिन है आमलकी एकादशी व्रत, जाने शुभ मुहूर्त और कथा

Subhi
8 March 2022 2:53 AM GMT
इस दिन है आमलकी एकादशी व्रत, जाने शुभ मुहूर्त और कथा
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हिंदू पंचांग के एकादशी का काफी अधिक महत्व है। प्रत्येक माह में एकादशी दो बार पड़ती है पहली शुक्ल पक्ष की एकादशी और दूसरी कृष्ण पक्ष। इसी तरह फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को सर्वोच्च स्थान दिया गया है।

हिंदू पंचांग के एकादशी का काफी अधिक महत्व है। प्रत्येक माह में एकादशी दो बार पड़ती है पहली शुक्ल पक्ष की एकादशी और दूसरी कृष्ण पक्ष। इसी तरह फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। इस एकादशी को 'आमलकी एकादशी' के नाम से जाना जाता है। ज्योतिषों के अनुसार, आमलकी एकादशी का नाम आंवला से संबंधित है। इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने का विधान है। इस एकादशी को रंगभरी एकादशी, आमली ग्यारस के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन विधि-विधान के साथ भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस साल आमलकी एकादशी का व्रत 14 मार्च को रखा जाएगा। जानिए आमलकी एकादशी का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।

पद्म पुराण के अनुसार, आंवले का वृक्ष भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय होता है। मान्यता है कि आमलकी एकादशी के दिन आंवले का पूजन, आंवले का भोजन या फिर आंवले का दान करना शुभ माना जाता है। ऐसा करने से सभी कष्टों से छुटकारा मिलता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

आमलकी एकादशी का शुभ मुहूर्त

एकादशी तिथि प्रारम्भ: 13 मार्च सुबह 10 बजकर 21 मिनट से

एकादशी तिथि समाप्त: 14 मार्च को दोपहर 12 बजकर 5 मिनट तक

पारण का समय: 15 मार्च सुबह 06 बजकर 31 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 55 मिनट तक

आमलकी एकादशी की पूजा विधि

एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें और व्रत का संकल्प ले लें और भगवान विष्णु का ध्यान कर रहें। आमलकी एकादशी के दिन आंवले के पड़े के नीचे की जगह को साफ कर लें। इसके बाद चौकी में पीला कपड़ा डालकर उसके ऊपर भगवान विष्णु की तस्वीर या मूर्ति स्थापित कर दें। सबसे पहले भगवान विष्णु को जल अर्पित करें। इसके बाद फूल, रोली, चंदन और अर्पित करें। इसके बाद आंवला और भोग के लिए कोई मिष्ठान अर्पित करें। इसके बाद घी का दीपक और अगरबत्ती जला दें। इसके बाद आंवला एकादशी की व्रत कथा पढ़ें या फिर सुनें। इसके बाद आरती करके प्रसाद सभी को बांट दें।

आमलकी एकादशी व्रत कथा

ब्रह्मा जी भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न हुए थे। एक बार ब्रह्मा जी ने स्वयं को जानने के लिए परब्रह्म की तपस्या करनी शुरू कर दी थी। उनकी भक्ति देखकर भगवान विष्णु प्रसन्न हो गए और उनके सामने प्रकट हो गए। उन्हें देखते ही भगवान ब्रह्मा के नेत्रों से आंसुओं की धारा निकल पड़ी जो नारायण के चरणों पर गिर रहे थे। माना जाता है कि भगवान विष्णु के चरणों पर गिरने के बाद ये आंसू आंवले के पेड़ में तब्दील हो गए थे। इसके बाद ही भगवान विष्णु ने कहा कि आज से ये वृक्ष और इसका फल मुझे अत्यंत प्रिय होगा। जो भी भक्त आमलकी एकादशी पर इस वृक्ष की पूजा विधिवत तरीके से करेगा, वो साक्षात मेरी पूजा होगी। इसके साथ ही उसको हर पाप से मुक्ति मिलेगी और मोक्ष की प्राप्ति होगी।


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