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ज्योतिष न्यूज़ : आज शनिवार का दिन है और इस दिन श्री शनिदेव को समर्पित किया जाता है। प्राप्त होता है.
लेकिन इसी के साथ ही शनिवार के दिन अगर भक्ति भाव से श्री शनि चालीसा का पाठ किया जाए तो भगवान जल्दी प्रसन्न हो जाएं और अपनी कृपा बरसाएं जिससे जीवन के सारे संकट कट जाएं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं शनि चालीसा पाठ ।।
श्री शनि चालीसा—
॥ दोहा॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल कर्ण कृपाल।
दीन के दुःख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥
॥ चौपाई ॥
जयति जयति शनिदेव दयाला।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला ॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै।
रत्न रत्न छबि छाजै ॥
परम विशाल मनोहर भाला।
तेहि दृष्टि भुकुति विकारला॥
कुंडल श्रवण चमाचम चमके।
हिय माल मुक्तन मणि दमके॥ 4॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा।
पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
पिंगल, कृष्ण, छाया नंदन।
यम, कोणस्थ, रौद्र, दुःखभंजन ॥
सूर्य, मंद, शनि, दश नाम।
भानु पुत्र पूजहिं सब काम॥
जा पर प्रभु प्रसन्न हवं जाहिं।
रंखहुं राव करैं क्षण माहीं॥ 8॥
पर्वत हूँ त्रिण होइ निहारत।
तृणहु को पर्वत करि डारत॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो।
कैकेइहूँ की मति हरि लीन्ह्यो॥
बनहूँ में मृग कपाट दिखाई दिया।
मातु जानकी गई चुराई॥
लखनहिं शक्ति विकल करिदारा।
मचीगा दल में हाहाकारा॥ 12॥
रावण की गति मति बौराई।
रामचन्द्र सों बैर ॥
दियो कीट करि कंचन लंका।
बाजी बजरंग बीर की डंका ॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा।
चित्र मधुरि गाय हारा ॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी।
हाथ पर डरवाय तोरी॥ 16॥
भारी दशा निकृष्ट।
तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो ॥
विनय राग दीपक महं किन्ह्यो।
तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्ह्यो॥
हरिश्चन्द्र नृप नारी बिकानि।
आपहुं अंतिम डोम घर पानी ॥
तैसे नल पर दशा सिरानी।
भूंजमीन कूद गया पानी ॥ 20॥
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई।
पार्वती को सती करे॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा।
नभ उड़ि गयो गौरीसुत सीसा॥
पाण्डव पर भाई दशा विवाह।
बच द्रौपदी होति उघारि॥
कौरव के भी गति मति मारयो।
युद्ध महाभारत करि डारियो॥ 24॥
रवि कहँ मुख महँ धारी ठंडा ।
लेकर कूदि परयो पाताला॥
शेष देवलखी विनती लाइ।
रवि को मुख ते दियो आदर्शै॥
वाहन प्रभु के सात सजाना।
जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बूक सिंह आदि नख धारी।
सो फल ज्योतिष कहत कॉली ॥ 28॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवै।
हय ते सुख संपति उपजवैं ॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा।
सिंह सिद्धकर राज समाजा ॥
जम्बूक बुद्धि नष्ट कर डारै।
मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी।
चोरी आदि होय डर भारी॥ 32॥
तैसाहि चारि चरण यह नामा।
स्वर्ण लोह चाँदी अरु तम ॥
लोह चरण पर जब प्रभु आवै।
धन जन विनाश नष्ट करावै ॥
समता ताम्र रजत शुभकारी।
स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै।
काहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥ 36॥
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला।
करण शत्रु के नाशी बलि उद्धार ॥
जो पंडित सुयोग्य बुलावै।
सर्वोपरि शनि ग्रह शांति करावे ॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत।
दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा।
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥ 40॥
॥ दोहा॥
पाठ शनिश्चर देव को, की होन भक्त तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥