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धर्म-अध्यात्म
Akshaya Tritiya 2021 : अक्षय तृतीया का है हिंदू धर्म में खास महत्व, ये है वजह
Deepa Sahu
13 May 2021 9:33 AM GMT
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हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया को बेहद शुभ मुहूर्त के तौर पर देखा जाता है।
हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया को बेहद शुभ मुहूर्त के तौर पर देखा जाता है। इस दिन बिना कोई मुहूर्त देखे शुभ कार्य संपन्न कर दिए जाते हैं। इस दिन सिर्फ खरीदारी ही नहीं होती बल्कि कई लोग अपना भूमि पूजन, गृह प्रवेश, विवाह संस्कार या फिर अन्य शुभ आयोजन करते हैं। अक्षय तृतीया के दिन ये सभी कार्य बिना शुभ मुहूर्त निकाले संपन्न किए जा सकते हैं। पौराणिक काल में अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु के 3 अवतारों का प्राकट्य हुआ था। यही नहीं इस दिन मातंगी देवी और अन्नपूर्णा माता का भी प्राकट्य हुआ था। आइए जानते हैं इन सभी की कहानी…
परशुराम जी का अवतार
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान श्रीहरि के छठें अवतार परशुरामजी का प्राकट्य हुआ था। ब्राह्मण होते हुए ये स्वभाव से काफी आक्रामक और गुस्से वाले माने जाते हैं। इनके अंदर ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रियों वाले गुण थे। इसके पीछे इनके जन्म की बड़ी विचित्र कथा है। प्राचीन काल में कन्नौज के राजा थे गाधि। उनकी पुत्री का नाम सत्यवती था। सत्यवती का विवाह भृगु ऋषि के पुत्र से हुआ था। संतान की कामना से सत्यवती अपने ससुर भृगु ऋषि से आशीर्वाद लेने गईं। सत्यवती की मां को भी कोई पुत्र नहीं था इसलिए उसने ऋषि भृगु से माता के लिए संतान का आशीर्वाद मांगा। ऋषि से हुआ था। भृगु ऋषि ने सत्यवती को दो फल दिए और बताया कि स्नान करने के बाद सत्यवती और उनकी माता को पुत्र की इच्छा लेकर पीपल और गूलर के पेड़ का आलिंगन करना है। फिर इन फलों का सेवन करना है।
इसलिए परशुरामजी में थे क्षत्रियों गुण
सत्यवती की मां के मन में लालच आ गया और उन्होंने दोनों फलों की अदला-बदली कर दी। सत्यवती का फल उन्होंने खुद खा लिया और बेटी को अपना वाला फल दे दिया। जब भृगु ऋषि को इस बात का पता चला तो उन्होंने सत्यवती से कहा कि अब तुम्हारा पुत्र ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय गुणों वाला होगा। इससे परेशान होकर सत्यवती ने कहा कि ऐसा ना हो। भले ही मेरा पौत्र क्षत्रिय गुणों वाला हो जाए। कुछ समय बाद सत्यवती के गर्भ से महर्षि जमदग्नि का जन्म हुआ। युवा होने पर महर्षि जमदग्नि का विवाह रेणुका से हुआ। इस तरह परशुराम का जन्म हुआ, जो जन्म से ब्राह्मण होते हुए भी कर्म से क्षत्रिय गुणों वाले थे।
नर-नारायण अवतार
भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक प्रमुख अवतार नर-नारायण का माना जाता है। पुराणों के अनुसार नर-नारायण अवतार का प्राकट्य भी अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ था। मान्यता है कि धर्म की स्थापना के लिए इस अवतार का प्राकट्य हुआ था। बदरीनाथ दो पहाड़ियों के बीच स्थित है। एक पर भगवान नारायण ने तपस्या की थी जबकि दूसरे पर नर ने। नारायण ने द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने रूप में अवतार लिया जबकि नर अर्जुन रूप में अवतरित हुए थे। नारायण का तप भंग करने के लिए इंद्र ने अपनी सबसे सुंदर अप्सरा रंभा को भेजा था लेकिन नारायण ने अपनी जंघा से रंभा से भी सुंदर अप्सरा उर्वशी को उत्पन्न करके इंद्र को भेंट कर दिया था।
हयग्रीव अवतार का प्राकट्य
भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक है हयग्रीव अवतार। हयग्रीव भगवान को उनका 16वां अवतार माना जाता है। ब्रह्माजी से उनके वेदों को चुराकर मधु-कैटभ नाम के दैत्य रसातल में ले गए। तब ब्रह्माजी परेशान होकर भगवान विष्णु की शरण में गए। धर्म की रक्षा के लिए उन्हें हयग्रीव का अवतार लेना पड़ा। उन्होंने दैत्यों का वध करके ब्रह्माजी को उनके वेद सकुशल लौटाए।
मातंगी देवी का अवतार
मां दुर्गा की 10 महाविद्याओं में से एक मानी जाने वाली मातंगी देवी भी अक्षय तृतीया के दिन ही प्रकट हुई थीं। उनके अवतरण की कथा भी बड़ी रोचक बताई गई है। एक बार की बात है भगवान विष्णु मां लक्ष्मी के साथ कैलाश पर्वत पर माता पार्वती और शंकरजी से मिलने गए। वह उनको भेंट देने के लिए अपने साथ कुछ खाने की वस्तुएं ले गए थे। उन्होंने जैसे शिवजी को भेंट दी तो उसका कुछ हिस्सा धरती पर गिर गया। उस गिरे हुए अंश से एक श्याम वर्ण वाली मां मातंगी देवी का जन्म हुआ। उन्हें मां दुर्गा का ही एक रूप माना जाता है।
अन्नपूर्णा माता का अवतार
अक्षय तृतीया पर ही माता अन्नपूर्णा का भी जन्मदिन मनाया जाता है। इसदिन ऐसी मान्यता है कि माता अन्नपूर्णा का भी प्राकट्य हुआ था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जिस दिन अन्नपूर्णा माता का प्राकट्य हुआ था उस दिन वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया थी।
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