धर्म-अध्यात्म

दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मंदिर है जयपुर का अक्षरधाम

Manish Sahu
29 Sep 2023 6:28 PM GMT
दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मंदिर है जयपुर का अक्षरधाम
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धर्म अध्यात्म: जयपुर में स्थित स्वामीनारायण अक्षऱधाम मंदिर अपनी शानदार मूर्तियों और सुंदर वास्तुकला के लिए फेमस है। यह मंदिर पर्यटकों का लोकप्रिय स्थान होने के साथ ही आस्था का भी केंद्र है। बता दें कि अक्षऱधाम मंदिर स्वामीनारायण को समर्पित है। दुनिया के सबसे बड़े हिंदू मंदिर परिसर के रूप में स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज है। आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको इस मंदिर से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में बताने जा रहे हैं।
सांस्कृतिक विरासत
स्वामीनारायण अक्षऱधाम मंदिर में आपको दीवारों पर नक्काशी, सुंदर मूर्तियां और मंदिर के बाहरी हिस्से में विशाल पेंटिंग बनी हुई हैं। इतना ही नहीं यह मंदिर भारतीय वास्तुकल, सांस्कृतिक विरासत और हिंदू देवताओं की मूर्तियों की वास्तविक झलक दिखाता है। हर साल इस मंदिर में भगवान नारायण के दर्शन करने के लिए लाखों की संख्या में भक्त जयपुर पहुंचते हैं। अक्षरधाम मंदिर हरे-भरे पेड़ों और झरनों से घिरा हुआ है।
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मंदिर का निर्माण
श्रीहरि नारायण को समर्पित अक्षरधाम मंदिर 10वीं-20वीं शताब्दी के बीच बनवाया गया था। हालांकि वैसे तो जयपुर में कई धार्मिक स्थल हैं। लेकिन अक्षऱधाम मंदिर की सुंदरता बेहद खास है। स्वामीनारायण का यह मंदिर उन लोगों में भक्ति की भावना पैदा करता है, जो इस पवित्र मंदिर में दर्शन करने आते हैं। आपको बता दें कि मंदिर में स्थापित भगवान विष्णु की मूर्ति को सोने और चांदी के गहनों से सुसज्जित किया गया है। पवित्रता, शांति और भक्ति के साथ ही सनातन धर्म को बढ़ावा देने के लिए इस मंदिर को बनाया गया है।
जयपुर में स्थित स्वामीनारायण अक्षऱधाम मंदिर के गर्भगृह में श्रद्धालु स्वामीनारायण की मूर्ति के दर्शन कर सकते हैं। मंदिर में एक ऐसा स्थान भी है जहां पर भगवान स्वामीनारायण की मूर्ति के साथ ही उनके भक्तों को भी दर्शाने का काम किया गया है।
क्यों खास है मंदिर
अक्षरधाम मंदिर में यज्ञपुरुष कुण्ड, परिक्रमा पथ, स्वागत कक्ष के साथ बेहद सुंदर खूबसूरत बगीचे भी हैं। इस मंदिर की वास्तुकला काफी अद्भुत है। इस मंदिर का निर्माण पंचरात्र शास्त्र और भारतीय वास्तुशास्त्र के आधार पर किया गया है। अक्षरधाम मंदिर में कई ऐसे गुंबद बने हुए हैं, जिनमें साधुओं, आचार्यों और देवताओं की मूर्ति भी बनी हुई है।
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