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धर्म-अध्यात्म
Ajmer Sharif: 800 साल पुरानी इस मस्जिद को कहते हैं 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा'
Tara Tandi
16 Jan 2025 6:47 AM GMT
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Ajmer Sharif राजस्थान न्यूज: अजमेर शरीफ दरगाह यानि मोइनुद्दीन चिश्ती का मकबरा भारत में न केवल मुसलमानों के लिए बल्कि हर धर्म के लोगों के लिए एक पवित्र स्थान है। अजमेर शरीफ दरगाह भारत के राजस्थान राज्य के अजमेर शहर में स्थित है, जिसकी विश्वस्तर पर बहुत बड़ी मान्यता है। सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती के बारे में कहा जाता है कि उनके पास कई अदभुद शक्तियाँ थी, जिसकी वजह से आज भी दूर-दूर से लोग उनकी दरगाह पर दुआ मांगने के लिए आते हैं।
अजमेर शरीफ दरगाह के बारे में कहा जाता है कि जो भी यहां पर सच्चे दिल से जो कुछ भी मांगता है, उसकी दुआ जरुर कबूल होती है। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह राजस्थान का सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। मोइनुद्दीन चिश्ती एक ऐसे महान सूफी संत थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों और दलितों के उत्थान के लिए समर्पित किया था। इस दरगाह की मान्यता की वजह से हर साल लाखों की संख्या में लोग यहां की यात्रा करते हैं। हम आज जानेगें अजमेर शरीफ दरगाह के इतिहास और ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के बारे में
अजमेर शरीफ दरगाह में गरीब नवाज मोइनुद्दीन चिश्ती की कब्र होने की वजह से यह सद्भाव और आध्यात्मिकता का एक आदर्श प्रतीक है। यह जगह शांति की तलाश करने वालों के लिए आदर्श जगह है। जब ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती 114 वर्ष के हो गए थे तो उन्होंने प्रार्थना करने के लिए छह दिन खुद को इसी जगह बंद कर लिया था और अपने शरीर को त्याग दिया, जिसके बाद उन्हें यहां दफनाया गया और इस पाक दरगाह का निर्माण किया गया। हजरत ख्वाजा मोइन-उद-दीन चिश्ती को भारत में इस्लाम के संस्थापक और दुनिया भर में इस्लाम के महान उपदेशक के रूप में भी जाना जाता है। इसके साथ ही हजरत ख्वाजा मोइन-उद-दीन चिश्ती अपने महान उपदेशों और सामाजिक कार्यों के लिए भी जाने जाते हैं। वे फारस से भारत आये थे और कुछ समय के लिए लाहौर में रहे और इसके बाद अजमेर शहर आकर बस गए थे। बारह सौ छत्तीस में उनकी मृत्यु हो गई थी, और तब ही से लोग उनकी कब्र पर मुराद मांगने आते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो भी इस दरगाह में सच्चे दिल से मांगता है उसकी मुराद जरुर पूरी होती है।
अजमेर शरीफ दरगाह का निर्माण मुगलों द्वारा करवाया गया था, इसलिए यह समृद्ध मुगल शैली की वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। अजमेर दरगाह का निर्माण इल्तूतमिश ने प्रारम्भ करवाया तथा हुमायूं के काल में इसका निर्माण पुरा हुआ। अजमेर शरीफ़ का मुख्य द्वार निज़ाम गेट कहलाता है क्योंकि इसका निर्माण 1911 में हैदराबाद स्टेट के उस समय के निज़ाम मीर उस्मान अली ख़ाँ ने करवाया था। इस दरवाजे को पार करने के बाद आप मुग़ल बादशाह शाहजहाँ द्वारा खड़ा किया गया शाहजहानी दरवाज़ा पार करेंगें। दरगाह तक एक विशाल द्वार के माध्यम से जाया जाता है जिसे बुलंद दरवाजा कहा जाता है। इसका निर्माण सुल्तान महमूद ख़िल्जी ने करवाया था, इस दरवाजे पर हर वर्ष उर्स के अवसर पर झंडा चढ़ाकर ही उर्स का समारोह आरम्भ किया जाता है। महान सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइन-उद-दीन चिश्ती की कब्र पर एक गुंबददार कक्ष बनाया गया है, जिस पर चांदी की रेलिंग और संगमरमर की स्क्रीन लगी हुई है। अजमेर शरीफ दरगाह पर हर शाम प्रसिद्ध कव्वालों द्वारा ख्वाजा की याद में कव्वाली पेश की जाती है। दरगाह के बाहर एक छोटा सा बाज़ार है जहाँ से सभी तीर्थयात्री चादर खरीदते हैं। दरगाह शरीफ में आप औलिया मस्जिद, दरगाह श्राइन, जामा मस्जिद और महफिलखाना का भी दीदार कर सकते हैं।
अजमेर में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में दुनिया का सबसे बड़ा बर्तन मौजूद है, जिसे बड़ी देग कहा जाता है. दरगाह को यह बड़ी देग मुगल बादशाह अकबर ने मन्नत पूरी होने पर भेंट की थी. इस बड़ी देग में 120 मन यानी अड़तालीस सौ किलो चावल एक साथ पकाए जाते हैं. इसके साथ ऐसी ही देग और भी है जिसे छोटी देग के नाम से जाना जाता है, इसमें एक बार में 60 मन चावल पकाए जाते हैं. छोटी देग को मुगल बादशाह जहांगीर ने बनवाकर इस दरगाह को भेंट किया था। दरगाह में बुलंद दरवाजे के समीप एक ओर बड़ी और दूसरी ओर छोटी देग है। दरगाह पर सभी धर्म और जाति के लोगों के आने के चलते इन दोनों देगों में सिर्फ शाकाहारी खाना यानि मीठे चावल ही पकाए जाते हैं। इसके साथ ही इन देगों में जायरीन अपनी आस्था और क्षमता के अनुसार कई और तरह के देग भी पकवाते हैं लेकिन इनमे कभी भी मांसाहारी भोजन या लहसुन प्याज का उपयोग नहीं किया जाता है।
सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती के शरीर को त्यागने के बाद से यहां इस्लामी चंद्र कैलेंडर के सातवें महीने में हर साल ‘उर्स’ उत्सव छह दिनों के लिए आयोजित किया जाता है। दरगाह का मुख्य द्वार जो रात में बंद रहता है उसे इस उत्सव के दौरान 6 दिनों के लिए दिन और रात में खुला रखा जाता है। जो भी लोग इस पवित्र दरगाह की यात्रा करना चाहते हैं वे लोग उर्स त्योहार के दौरान अजमेर की यात्रा कर सकते हैं। अजमेर शरीफ जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च तक है। इस दौरान दरगाह में उर्स के मेले का आयोजन किया जाता है और दरगाह को शानदार ढंग से सजाया जाता है। अजमेर दरगाह सर्दियों में सुबह 05:00 से रात 10:00 तक और गर्मियों में सुबह 4:00 से रात 10:00 तक तीर्थ यात्रियों के लिए खुली रहती है।
अजमेर शरीफ दरगाह जाने के लिए आप हवाई मार्ग, ट्रेन और सड़क मार्ग में से किसी का भी चुनाव कर सकते है। दरगाह अजमेर शहर से 2 किमी की दूरी पर स्थित है, जहां बसों और कैब की मदद से पहुंचा जा सकता है। हवाई मार्ग से यहां पहुंचने के लिए सबसे निकटतम हवाई अड्डा करीब 135 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जयपुर का सांगानेर एयरपोर्ट है। रेल मार्ग यहां पहुंचने के लिए सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन करीब 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अजमेर जंक्शन रेलवे स्टेशन है। इसके साथ ही सड़क मार्ग से यहां पहुंचने के लिए आप देश के किसी भी हिस्से से बस या कैब ले सकते हैं।
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