धर्म-अध्यात्म

अहोई अष्टमी का व्रत गुरु-पुष्य योग में होगा, नोट कर लें पूजा का शुभ समय

Bhumika Sahu
26 Oct 2021 6:44 AM GMT
अहोई अष्टमी का व्रत गुरु-पुष्य योग में होगा, नोट कर लें पूजा का शुभ समय
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अहोई अष्टमी का व्रत विशेष रूप से संतान की दीर्घायु, अच्छे स्वास्थ, जीवन में सफलता और समृद्धि के लिए किया जाता है। इस व्रत में माता पार्वती को ही अहोई अष्टमी माता के रूप में पूजा जाता है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। प्राचीन काल से ही माताएं अहोई अष्टमी का व्रत करती हैं। इसे 'होई' नाम से भी जाना जाता है। अहोई अष्टमी का व्रत विशेष रूप से संतान की दीर्घायु, अच्छे स्वास्थ, जीवन में सफलता और समृद्धि के लिए किया जाता है। इस व्रत में माता पार्वती को ही अहोई अष्टमी माता के रूप में पूजा जाता है।

हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का व्रत और पर्व मनाया जाता है। माताएं यह व्रत अपनी संतान की दीर्घायु, अच्छे स्वास्थ, जीवन में सफलता और समृद्धि के लिए प्रतिवर्ष करती हैं। ज्योतिषविद विभोर इंदुसुत कहते हैं कि शास्त्रों की दृष्टि से अहोई अष्टमी के व्रत में संध्या काल व्यापिनी अष्टमी तिथि को लिया जाता है। इस बार अहोई अष्टमी का व्रत 28 अक्तूबर के दिन किया जाएगा।
इस बार अहोई अष्टमी व्रत में परम शुभ गुरु पुष्य-योग की उपस्थिति होने से इस बार अहोई अष्टमी व्रत का महत्व कई गुना बढ़ जाएगा। अहोई व्रत का पारायण तारोदय होने पर तारों का दर्शन कर किया जाता है। संध्या काल होने पर व्रती माताएं अहोई अष्टमी माता की पूजा कर तारों का दर्शन कर उन्हें जल का अर्घ्य देती हैं, तभी व्रत का महत्व पूरा होता है। सूर्यास्त के बाद तारों का दर्शन कर माताएं व्रत का परायण कर सकती हैं।
अहोई पर पूजा का समय-
दिन में अहोई अष्टमी कथा सुनने और पूजन के लिए दोपहर 12:30 से 2 बजे के बीच स्थिर लग्न और शुभ चौघड़िया मुहूर्त का समय श्रेष्ठ होगा। संध्याकाल में अहोई माता के पूजन के लिए शाम 6:30 से 8:30 के बीच स्थिर लग्न का शुभ मुहूर्त होगा।


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