धर्म-अध्यात्म

पूजा के बाद इस तरह करें भगवान की आरती, घर में हमेशा बनी रहेगी सुख-शांति

Subhi
4 Nov 2022 3:40 AM GMT
पूजा के बाद इस तरह करें भगवान की आरती, घर में हमेशा बनी रहेगी सुख-शांति
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शास्त्रों में भक्ति को श्रेष्ठ माना गया है, जिसमें श्रवण, कीर्तन, पाद सेवन, अर्चन एवं वंदन के बाद आरती की जाती है. आरती को अरार्तिक या निराजन भी कहते हैं. ऐसे में घर में सुबह और शाम के समय भगवान की आरती जरूर करनी चाहिए. इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. हालांकि, आरती करते समय कुछ बातों का जरूर ध्यान रखना चाहिए.

जिस घर में हो आरती, चरण कमल चित लाय

तहां हरि बासा करें, जोत अनंत जगाय

अर्थात जिस घर में प्रभु के चरण कमलों का ध्यान रखते हुए अर्थात पूर्ण आस्था एवं श्रद्धा भाव के साथ आरती अथवा अर्चन होता है, वहां प्रभु का वास होता है. शास्त्रों में भक्ति को श्रेष्ठ माना गया है,जिसमें श्रवण, कीर्तन, पाद सेवन, अर्चन एवं वंदन आदि के बाद की जाती है आरती. आरती को अरार्तिक या निराजन भी कहते हैं. आरती शब्द अत्यंत प्राचीन है. किसी भी देवता के पूजन से संबंधित स्थलों पर हम आरती का अवश्य दर्शन करते हैं.

क्षमा याचना के लिए आरती

शास्त्रों में कहा गया है कि जिस देवता की आरती करने चलते हैं, उस देवता का बीज मंत्र, स्नान थाली,नीराजल थाली, घण्टिका और जल कमंडलु आदि पात्रों पर चंदन से लिखना चाहिए और फिर आरती द्वारा भी उस बीज मंत्र को देव प्रतिमा के सामने बनाना चाहिए. पूजा के अंत में आरती की जाती है. पूजन में जो त्रुटि रह जाती है, उसकी क्षमा याचना अथवा पूर्ति के लिए आरती की जाती है. यदि कोई मंत्र नहीं जानता है और पूजा की विधि भी नहीं जानता है, लेकिन भगवान की आरती कहीं हो रही हो तो उसे वहां पर खड़े होकर भक्ति भाव के साथ श्रवण करना चाहिए.

ऐसे करें आरती

यदि कोई व्यक्ति देवताओं के बीज मंत्रों का ज्ञान न रखता हो तो सभी देवताओं के लिए 'ऊं' को लिखना चाहिए. अर्थात आरती को ऐसे घुमाना चाहिए, जिससे कि 'ऊं' वर्ण की आकृति बन जाए. किसी भी पूजा पाठ, यज्ञ, अनुष्ठान के अंत में देवी-देवताओं की आरती की जाती है. आरती का समय सुबह और शाम का होना चाहिए. संध्या करने की आदत बनानी चाहिए, यह स्ट्रेस दूर करने के लिए भी आवश्यक है.

थाल में फूल और कुमकुम रखें

आरती की थाल में कपूर या घी के दीपक, दोनों से ही ज्योति प्रज्वलित की जा सकती है. इसके साथ पूजा के फूल और कुमकुम भी जरूर रखें. आरती करते समय ध्यान रखें कि सर्वप्रथम चरणों की चार बार, नाभि की दो बार, मुख की एक बार आरती करने के बाद पुनः समस्त अंगों की सात बार आरती करनी चाहिए. जल को भगवान के चारों ओर घुमाकर उनके चरणों में निवेदन करना चाहिए. आरती के उपरान्त थाल में रखे हुए पुष्प को समर्पित करना चाहिए और कुमकुम का तिलक लगाना चाहिए. एक बात और ध्यान रखें कि आरती लेने वाले को थाल में कुछ दक्षिणा अवश्य रखनी चाहिए.


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