धर्म-अध्यात्म

महाभारत में जीत के बाद भगवान कृष्ण ने तोड़ा अर्जुन का घमंड

Subhi
1 Nov 2022 2:14 AM GMT
महाभारत में जीत के बाद भगवान कृष्ण ने तोड़ा अर्जुन का घमंड
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घमंड इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन होता है. अभिमान अगर किसी को हो जाए तो वो हर किसी को अपने से कम आंकने लगता है. कवि कुमार विश्वास ने 'स्वर्ण स्वर भारत' नाम के कार्यक्रम में एक पौराणिक कथा के माध्यम से समझाया कि अहम कैसे अच्छे, बुरे, सदाचारी और दुराचारी किसी को भी हो सकता है. महाभारत के युद्ध में कौरवों पर पांडवों की जीत के बाद अर्जुन (Arjun) को घमंड हो गया था. तब भगवान श्रीकृष्ण (Lord Shri Krishna) ने कैसे उनका दंभ तोड़ा था, आइए इसके बारे में जानते हैं.

कुमार विश्वास ने महाभारत युद्ध के बाद का अर्जुन और भगवान श्रीकृष्ण का एक प्रसंग सुनाया. कवि कुमार विश्वास ने कहा कि महाभारत की लड़ाई विश्व की सबसे बड़ी लड़ाई थी. अर्जुन जब कर्ण जैसे महारथी, दुर्योधन जैसे महाबली और कौरवों की सेना को परास्त करने के बाद विजेता बन गए तो उनको लगा कि उनमें बड़ा पराक्रम है. उनके बाणों में बल है, पुरुषार्थ है. अर्जुन यही सब अपने मन में सवार करके युद्ध भूमि से लौट रहे थे. जब अपने शिविर के आखिर में पहुंच गए तो अर्जुन के सारथी भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि पार्थ रथ से नीचे उतर जाओ. तब अर्जुन ने कहा कि माधव आप सारथी हैं आप पहले उतर जाइए. तब श्रीकृष्ण ने कहा कि नहीं मित्र तुम पहले उतर जाओ.

कवि कुमार विश्वास ने कहा कि विवाद बढ़ने पर धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा कि अर्जुन, द्वारकाधीश अगर कोई बात कह रहे हैं तो उसमें जरूर कोई संकेत होगा. इससे अर्जुन को कुछ समझ तो आया नहीं, फिर भी वो भृकुटि पर ताव दिए हुए थोड़े अनमने भाव से रथ से नीचे उतर गए. इसके बाद जैसे ही सब लोग जाने लगे और भगवान श्रीकृष्ण जैसे ही रथ से उतरे, रथ में एक भयंकर विस्फोट हुआ और रथ छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट गया. अभिमान जिसके सिर पर सवार था, उस अर्जुन ने जब पलटकर देखा तो रथ जल रहा था. अब उसे ये तो समझ आ गया कि उनके सखा श्रीकृष्ण ने उनको रथ से उतरने के लिए क्यों कहा था, पर विस्फोट का कारण अभी भी उनकी समझ से बाहर था.

आगे कुमार विश्वास ने कहा कि अब विनम्र भाव से अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि यह क्या लीला है? श्रीकृष्ण ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया कि पार्थ! युद्ध के दौरान रथ पर कई प्रकार की दिव्य शक्तियों का प्रयोग हुआ. तुम पर जिन घातक अस्त्रों का प्रयोग हुआ, उनका असर अब भी इस रथ पर था. लेकिन वो घातक शक्तियां सिर्फ इस वजह से काम नहीं कर रही थीं क्योंकि उस रथ पर मैं सवार था. अगर इस रथ से मैं तुमसे पहले उतर जाता अर्जुन तो युद्ध जीतने के बाद भी तुम जीवित नहीं होते. तब अर्जुन को यह एहसास हुआ कि विश्व की सबसे बड़ी विजय, जिसको वह अपना पराक्रम मान रहा है, वो केवल उसकी उपलब्धि नहीं बल्कि उसमें ईश्वर के उस अंश की सद्भावना है, जिसे मधुसूदन मनमोहन कन्हैया कहा जाता है.


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