धर्म-अध्यात्म

आखिर क्यों की जाती है वट सावित्री व्रत के दिन बरगद के पेड़ की पूजा ? जानें क्या है इसका धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

Renuka Sahu
23 May 2022 4:43 AM GMT
After all, why is the banyan tree worshiped on the day of Vat Savitri fast? Know what is its religious and scientific importance
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फाइल फोटो 

हिंदू धर्म में ऐसे कई व्रत हैं जो सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं. इन्हीं में एक व्रत है सावित्री का व्रत भी है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंदू धर्म में ऐसे कई व्रत हैं जो सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं. इन्हीं में एक व्रत है सावित्री का व्रत भी है. ये व्रत हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि के रखा जाता है. इस साल वट सावित्री का व्रत (Vat Savitri Vrat 2022) 30 मई सोमवार को रखा जाएगा. सुहागिन महिलाएं इस दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु, देवी लक्ष्मी और वट वृक्ष या फिर कहें की बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है. ऐसा माना जाता है इस दिन व्रत रखने से सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है. सारे दुख दूर होता है. हिंदू धर्म में कई व्रत और त्योहार के दौरान बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है. वट सावित्री व्रत के दौरान खासतौर से बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि क्यों बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है? इसके पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक क्या है आइए जानें.

बरगद के वृक्ष की पूजा का धार्मिक महत्व
ऐसा माना जाता ही कि बरगद के वृक्ष की तने में भगवान विष्णु, जड़ों में ब्रह्मा और शाखाओं में भगवान शिव विराजते हैं. इस वृक्ष की बहुत सारी शाखाएं नीचे की ओर रहती हैं जिन्हें देवी सावित्री का रूप माना जाता है. इसलिए ऐसा माना जाता है कि इस वृक्ष की पूजा करने से हमें भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है. हमारी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. संतान प्राप्ति के लिए भी बहुत सी महिलाएं बरगद के वृक्ष की पूजा करती हैं.
इस पेड़ का जीवन लंबा होता है इसलिए इसे अनश्वर माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि के दिन वट वृक्ष की छांव में देवी सावित्री ने अपने पति को पुनः जीवित किया था. इस दिन से वट वृक्ष की पूजा की जाने लगी.
जिस प्रकार पीपल के वृक्ष को विष्णु का प्रतीक माना जाता है वैसे ही बरगद को शिव माना जाता है. इस वृक्ष के दर्शन करना शिव के दर्शन करने के बराबर है. वहीं ऐसा भी माना जाता है कि तीर्थंकर ऋषभदेव ने अक्षय वट के नीचे तपस्या की थी. इस स्थान को प्रयाग में ऋषभदेव तपस्थली नाम से जाना जाता है.

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बरगद का पेड़ बहुत अधिक ऑक्सीजन देता है. ये पेड़ दिन में 20 घंटे से भी ज्यादा समय तक ऑक्सीजन देता है. इसकी पत्तियों में कार्बन डाइऑक्साइड को सोखने की बहुत ज्यादा क्षमता होती है. ये वातावरण को शुद्ध रखने का काम करता है. इसके पत्तों से निकलने वाले दूध का इस्तेमाल मोच, चोट और सूजन के लिए किया जाता है. इससे आप दिन में 1 से 2 बार मालिश कर सकते हैं. ऐसा करने से आराम मिलता है. इन पत्तों के दूध में हल्दी मिलाकर आप चोट पर बांध सकते हैं. इससे घाव काफी जल्दी भर जाता है.
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