धर्म-अध्यात्म

आखिर नवरात्रि के पहले क्यों मनाया जाता है पितृपक्ष? क्या है इसके पीछे का विज्ञान

SANTOSI TANDI
9 Oct 2023 9:02 AM GMT
आखिर नवरात्रि के पहले क्यों मनाया जाता है पितृपक्ष? क्या है इसके पीछे का विज्ञान
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जाता है पितृपक्ष? क्या है इसके पीछे का विज्ञान
हिंदू धर्म में आत्मा के अमर होने की बात को माना जाता है। अगर हम सनातन धर्म को ही ले लें, तो सनातन का अर्थ भी है सदा बना रहने वाला। गीता के श्लोक में भी लिखा है कि आत्मा नहीं सिर्फ शरीर नष्ट होता है और आत्मा अमर रहती है। शायद यही कारण है कि हिंदू धर्म के अधिकतर रीति-रिवाज आत्मा और परमात्मा के आधार पर बनाए गए हैं। जब बात आत्मा की हो रही है, तो श्राद्ध पक्ष को कैसे भूला जा सकता है। मान्यता है कि इस दौरान हम अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पूजा-पाठ करते हैं। श्राद्ध के दौरान सात्विक नियमों को माना जाता है, सात्विक अनुष्ठान किए जाते हैं।
श्राद्ध पक्ष में सिर्फ पूजा-पाठ ही नहीं, बल्कि दान का भी प्रावधान है। इसलिए इसे ज्यादा जरूरी समझा जाता है। पर क्या इसके पीछे का कोई साइंटिफिक कारण भी है? क्या वाकई साइंस भी आत्मा को मानती है?
क्या साइंस मानती है आत्मा का कॉन्सेप्ट?
इसका जवाब हां भी है और नहीं भी। साइंस के मुताबिक आत्मा जैसा कुछ नहीं होता, लेकिन एनर्जी जरूर होती है जो एक फॉर्म से दूसरे फॉर्म में जाती है। साइकोलॉजी टुडे का एक रिसर्च पेपर कहता है कि साइंस भी अब मरने के बाद की एनर्जी के बारे में मानने लगी है और बायो सेंट्रीज्म (Biocentrism) जैसी थ्योरी असल में मान्य हैं।
अगर हम फिजिक्स के लॉ ऑफ कंजर्वेशन की बात करें, तो यह मानता है कि एनर्जी कभी खत्म नहीं होती बस अपना रूप बदल लेती है। ऐसा ही कुछ-कुछ भगवत गीता में लिखा है कि आत्मा कभी नहीं मरती बस अपने शरीर को बदल लेती है। हालांकि, साइंस एनर्जी को कभी आत्मा नहीं मान सकती इसलिए जवाब अभी भी यही होगा कि साइंस की तरफ से आत्मा का कोई अस्तित्व नहीं है।
आखिर नवरात्रि के पहले ही क्यों मनाया जाता है श्राद्ध का महीना?
साइंस मानती है कि श्राद्ध के महीने में सूरज पृथ्वी के ज्यादा करीब होता है। इस दौरान आपको मौसम में बदलाव भी साफ दिखेगा और सोलर सिस्टम में सूरज, चांद और पृथ्वी एक दूसरे के ज्यादा करीब होते हैं।इस दौरान सूरज नॉर्थ से साउथ की ओर रुख करता है और जब यह गतिविधी शुरू होती है उसे ही श्राद्ध की शुरुआत माना जाता है।
अधकितर सूर्य का यह बदलाव भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में होता है इसलिए इस पक्ष को ही पितृ पक्ष कहा जाता है। अगर हम हिंदू कैलेंडर के हिसाब से देखें, तो इस पक्ष को एस्ट्रोनॉमी के आधार पर ही निर्धारित किया गया है।
श्राद्ध में कैसे निर्धारित किया जाता है पितरों का दिन?
हिंदू मान्यताओं के अनुसार मरने के 12 दिन बाद तक आत्मा का संबंध शरीर से रहता है, इसलिए ही 13वें दिन भोज और 13वीं की जाती है। इसके अलावा, जन्म लेने के 12 दिन के बाद तक बच्चे का अपने पिछले जन्म से संबंध माना जाता है। ऐसे में मृत्यु के 12 दिनों के अंदर एक तिथि निर्धारित होती है। हर साल श्राद्ध के मौके पर महीने की उसी तिथि के दिन मृत व्यक्ति के लिए पूजा पाठ और दान किया जाता है।
लोककथाओं और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दौरान यमलोक से कुछ किरणें पृथ्वी पर पड़ती हैं और इन्हीं के साथ हमारे पूर्वज हमारे घरों में आते हैं और दान-धर्म और रीति-रिवाज के बाद हम पूर्वजों को शांत करते हैं और उनकी वापसी निर्धारित करते हैं।
श्राद्ध के नियमों में क्यों लिया जाता है पीढ़ियों का नाम?
ड्रेक्सेल यूनिवर्सिटी की एंथ्रोपोलॉजिस्ट उषा मेनन ने स्टेटटाइम्स.इन को दिए एक साक्षात्कार में इसके बारे में बताया। दरअसल, हिंदू रिवाजों के मुताबिक तीन जनरेशन पहले और तीन बाद यानि परदादा के दादा, परदादा, दादा, पिता, बेटे, पोते का नाम श्राद्ध के दौरान लिया जाता है। उषा के मुताबिक, पितृ पक्ष के ऐसे रिवाज यह समझाते हैं कि पहली पीढ़ियां, मौजूदा पीढ़ी और अजन्मी पीढ़ी सभी खून के रिश्ते से जुड़े हुए हैं।
क्योंकि श्राद्ध महीने में शुभ कार्यों को वर्जित माना जाता है इसलिए इसके खत्म होने के बाद महालय और नवरात्रि मनाई जाती है। मान्यता यह भी है कि इस दौरान मां दुर्गा पृथ्वी पर आती हैं। अगर हम श्राद्ध और साइंस की बात करें, तो हम इसे कुछ हद तक साइंस से जोड़ तो सकते हैं, लेकिन इसका कोई ठोस रूप नहीं निकाल सकते।
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