धर्म-अध्यात्म

वास्तु के अनुसार घर पर इन स्थानों में भूल कर भी न बनवाएं कुआं, वरना हो सकता है ये भारी नुकसान

Tara Tandi
2 March 2021 11:09 AM GMT
वास्तु के अनुसार घर पर इन स्थानों में भूल कर भी न बनवाएं कुआं, वरना हो सकता है ये भारी नुकसान
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वास्तु शास्त्री बताते हैं कि घर में गहरी खुदाई के लिए पूर्व दिशा का चयन करना शुभकारी होता है।

जनता से रिश्ता बेवङेस्क | वास्तु शास्त्री बताते हैं कि घर में गहरी खुदाई के लिए पूर्व दिशा का चयन करना शुभकारी होता है। अक्सर देखा जाता है कि लोग घर में पानी की आवश्यकता के लिए बोरपांप अथवा कुएं की खुदाई करवाते हैं। मगर इस दौरान दिशाओं का ध्यान रखना अधिक आवश्यक होता है। अन्यथा वहां रह रहे लोगों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

दरअसल वास्तु शास्त्र में घर के मुख्य नौ प्रमुख स्थानों के बारे में बताया है। जिनमें आठ दिशाएं तथा एक ब्रह्म स्थान शामिल है। कहा जाता है इन समस्त स्थानों में से ब्रह्म स्थान पर अत्थाधिक ऊंचाई होना अथवा कुआं व बोर खोदा जाना हानिकारक साबित होता है। इस लिए इस स्थान पर ऐसा कोई भी कार्य करने से बचना चाहिए।

इसके अलावा वास्तु शास्त्री बताते हैं कि वायव्य कोण जिसे उत्तर-पश्चिम कहा जाता है, कोने में बोर व कुएं का निर्माण करवाने से दैहिक-दैविक तथा भौतिक कष्ट होने की आशंका बढ़ जाती है। इतना ही नहीं घर के सदस्यों को मानिसक परेशानियां होने लगती है। क्योंकि यह चंद्रमा की दिशा मानी जाती है, इसलिए यहां दोष पैदा होने से मनोभाव प्रभावित होता है।

नैऋ़त्य कोण यानि दक्षिण-पश्चिम में बोर, कुआं होने से घर स्वामी के नाश का संकेत होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह दिशा राहू की होती है, इस दिशा में अधिक खुदाई करने से आकस्मिक घटनाक्रम बढ़ जाते हैं। इसके साथ ही इस दिशा में बोर व कुआं होने से स्त्री को कष्ट होता है, घर की मालकिन का प्रभाव कमजोर होता है।

इसके अतिरिक्त दक्षिण-पूर्व में उक्त व्यवस्था होने से घर के बच्चों को कष्ट की आशंका रहती है। उनकी शिक्षा दीक्षा तथा लालन-पालन में कमी रह जाती है।

वास्तु के अनुसार घर पर इन स्थानों में भूल कर भी न बनवाएं कुआं, वरना हो सकता है ये भारी नुकसान और वाटर बोर उत्तर-पूर्व एवं उत्तर दिशा में होना शुभ होता है। उत्तर दिशा बुध ग्रह की होती है, जिसे हल्की दिशा माना जाता है।

कहा जाता है इस दिशा में जल का प्रवाह सकारात्मक रहता है ठीक उसी तरह उत्तर-पूर्व गुरु की दिशा होती है, जिसे ईशान कोण कहते हैं। इस दिशा को पूजा आदि की दिशा कहा जाता है। यह दिशा व स्थान में स्वच्छ जल का प्रवाह और संग्रह सुख सौख्य कारक मानी जाती है।

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