धर्म-अध्यात्म

राशि के अनुसार करें इष्ट देव का निर्धारण, जानें कैसे पता लगाएं कौन हैं आपके इष्टदेव

Tulsi Rao
23 July 2022 10:50 AM GMT
राशि के अनुसार करें इष्ट देव का निर्धारण, जानें कैसे पता लगाएं कौन हैं आपके इष्टदेव
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। Worshiping Ishtdev: सभी लोग उपासना करते हैं और हर किसी का किसी न किसी विशेष देवता के प्रति आकर्षण होता है. यह विशेष देवता ही इष्टदेव होते हैं. भारतीय धर्म एवं अध्यात्म में कई देवी देवताओं का जिक्र आता है ऐसे में प्रश्न होता है किस व्यक्ति के इष्टदेव कौन हैं यह पता कैसे लगाया जाए और दूसरा प्रश्न आता है कि क्या सामान्य रूप से ईश्वर की उपासना करने से समस्याओं का निवारण नहीं होगा. इस लेख में इन्हीं विषयों के बारे में बताया जाएगा कि अपनी समस्या इष्टदेव से कहना क्यों आवश्यक है और इष्टदेव के बारे में जानकारी कैसे करें.

सरकारी दफ्तरों में एक कर्मचारी अपने अधिकारियों से कोई गुहार करता है तो विषय में लिखा जाता है उचित माध्यम द्वारा यानी थ्रू प्रॉपर चैनल. इसका मतलब साफ है कि सबसे बड़े अधिकारी से भी कुछ कहना है तो आपको पत्र अपने इमीडिएट बॉस के माध्यम से भेजना होगा. हो सकता है आपकी समस्या के लिए सर्वोच्च अधिकारी तक पत्र भेजना ही न पड़े और नीचे से ही निस्तारण हो जाए. इस बात को एक और उदाहरण से समझने का प्रयास कीजिए कि किसी विभाग की समस्या होने पर पहले उस विभाग के संबंधित अधिकारी से मिलते हैं न कि सीधे राष्ट्रपति को समस्या बताने चले जाएं.
ठीक इसी तरह हम लोग इष्ट रूपी अधिकारी से अपनी प्रार्थना रखते हैं, उनके माध्यम से ही आध्यात्मिक गति सद्गति की ओर रहे और परम सत्ता के साक्षात्कार पकड़ कर अपने साधना को मुखर करते हुए परम सत्ता तक पहुंचते हैं. तो एक बात स्पष्ट हो गई कि इष्ट का अर्थ है अपना फेवरेट देवता. इष्ट के साथ मैत्रीपूर्ण व्यवहार करना चाहिए. कभी किसी समस्या से घिरने और कोई रास्ता न सूझने पर इष्टदेव से प्रार्थना करने पर कोई न कोई रास्ता निकलता है.
भारतीय संस्कृति ज्ञान, कर्म और भक्ति का संगम है. इनका अपना अपना महत्व है. कोई ज्ञान के आधार पर अपनी मुक्ति का मार्ग ढूंढता है, तो कोई कर्म यानी सेवा को अपना माध्यम बनाता है, और कोई भक्ति से भगवान को पाना चाहता है. ज्ञान, कर्म और भक्ति में, भक्ति को सहज और शीघ्र ईश्वर प्राप्ति वाला मार्ग बताया गया है. गीता में भी श्री कृष्ण जब अर्जुन को समझाते समझाते थक गए तब बोलते है, सब बातों को त्याग कर तुम मेरी शरण में आ जाओ, मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूंगा, तुम डरो मत. इस प्रकार अपनी शरण में आए भक्त का पूरा उत्तरदायित्व भगवान अपने ऊपर ले लेते हैं और उसके समस्त पापों को क्षमा कर देते हैं. इसी प्रकार इष्टदेव को जानकार उनकी ही शरण में जाना चाहिए जिससे पूर्व जन्म व इस जन्म में किए गए पापों का शमन होता है.
इस तरह कर सकते हैं इष्टदेव की पहचान
भक्ति और अध्यात्म से जुड़े लोगों के मन हमेशा यह प्रश्न उठता है कि मेरा इष्टदेव कौन है और हमें किस देवता की पूजा अर्चना करनी चाहिए. जैसे किसी भक्त के प्रिय शिव जी हैं, तो किसी के विष्णु जी, तो कोई राधा कृष्ण का भक्त है या कोई हनुमान जी का. किंतु एक उक्ति है कि "एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाए" इसलिए यदि इष्ट देव पर ही फोकस करते हुए अपनी भक्ति को बढ़ाएं तो अभीष्ट देवता प्रसन्न हो जाते हैं.s
राशि के अनुसार करें इष्ट देव का निर्धारण
इष्ट देवता या दवी का निर्धारण व्यक्ति के जन्म-जन्मान्तर के संस्कारों से होता है. यूं तो ज्योतिष में जन्म कुंडली के पंचम भाव से पूर्व जन्म के संचित धर्म, कर्म, ज्ञान, बुद्धि, शिक्षा,भक्ति और इष्टदेव का बोध भी यहीं से होता है. अधिकांश विद्वान इस भाव के आधार पर इष्टदेव का निर्धारण करते हैं. इसका दूसरा सरल तरीका राशि और लग्न के हिसाब से इष्टदेव के निर्धारण का भी है.
मेष राशि वालों के इष्ट सूर्यदेव हैं इसलिए इस राशि के लोगों सदैव सूर्य के अनुसार ही नियमबद्धता और कठिन परिश्रम का जीवन जीना चाहिए. सूर्यदेव केवल प्रणाम से प्रसन्न होते हैं. वृष व कुंभ राशि वालों को प्रथम पूज्य गणेश जी की आराधना करनी चाहिए. मिथुन व मकर राशि वाले माता सरस्वती और लक्ष्मी माता की पूजा करें. कर्क व धनु राशि के लोगों को हनुमान जी का पूजन करना चाहिए जबकि सिंह व वृश्चिक राशि वालों के लिए शिव जी की आराधना उचित है. कन्या और तुला राशि वाले भैरव जी, हनुमान जी और काली माता तथा
मीन राशि वाले दुर्गा माता, सीता माता या कोई अन्य देवी की आराधना करें. इस तरह इष्ट देव या देवी की पूजा अर्चना करने से व्यक्ति के अंदर की ऊर्जा को जाग्रत होती है और वह स्वयं तथा समाज का कल्याण करता है.


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