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धर्म-अध्यात्म
गणेश पुराण के अनुसार विनायक को हाथी का ही सिर मिला किसी इंसान का सिर क्यों नहीं मिला?
Kajal Dubey
26 Jan 2022 2:25 AM GMT
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वी देवता अपने आप में बहुत खास हैं, लेकिन सभी में एक बात समान है कि इन सभी देवी देवताओं का चेहरा इंसान का है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आपने देखा होगा कि हिंदू देवी देवताओं (Hindu God Godess ) का उनके चेहरे और शारीरिक बनावट के कारण उनका अपना महत्व है. उनकी अपनी अलग प्रवृत्ति है. हर देवी देवता अपने आप में बहुत खास हैं, लेकिन सभी में एक बात समान है कि इन सभी देवी देवताओं का चेहरा इंसान का है. वहीं इन सबसे अलग हैं भगवान गणेश (Lord Ganesha) जिन्हें हर शुभ कार्य से पहले पूजा (Worship) जाता है. उनके प्रथम पूजने से सारे काम सफल होते हैं. जिनको एक हाथी का चेहरा मिला है. इसके पीछे भी एक पौराणिक कहानी है जिसके बारे में आज हम जानेंगे कि क्यों गणेश जी को हाथी का ही सिर मिला. किसी इंसान का सिर क्यों नहीं मिला?
सिर धड़ से अलग करने का उल्लेख
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार की बात है. जब माता पार्वती को स्नान करने जाना था, और पहरा देने के लिए कोई नहीं था. तो उन्होंने जो उबटन लगाया था, उस उबटन से एक पुत्र बनाया. जिसको विनायक नाम दिया. माता पार्वती ने उन्हें पहरा देने के लिए कहा इस बीच भगवान शिव आते हैं जिसे गणेश जी वहीं रोक देते हैं. भगवान शिव क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उनका सिर धड़ से अलग कर देते हैं. जब माता पार्वती वापस आती हैं तो देखती है कि उनके बेटे का सिर भगवान शिव ने धड़ से अलग कर दिया. माता पार्वती यह सब देख रोने लगती हैं और आग बबूला हो जाती हैं. भगवान शिव पूछते हैं तुम क्यों रो रही हो तब माता पार्वती पूरी घटना बताती हैं जब भगवान शिव कहते हैं कि तुम चिंता मत करो मैं उसे वापस जीवित कर दूंगा. भगवान शिव अपने गणों से कहते हैं कि जाओ उत्तर दिशा में जो सबसे पहला सिर दिखेगा उसे लेकर आना. उनके गण वैसा ही करते हैं और उत्तर दिशा में सबसे पहला सिर उन्हें इंद्र के हाथी एरावत का दिखता है. वह सिर लेकर आते हैं और भगवान शिव गणेश जी को हाथी का सिर लगा कर जीवित कर देते है
गणेश पुराण के अनुसार
गणेश पुराण में वर्णन मिलता है कि एक बार की बात है देवराज इंद्र वीरान जंगल में बह रही पुष्प भद्रा नदी के पास टहल रहे थे. देवराज इंद्र ने देखा कि वहां पर रंभा नाम की अप्सरा आराम कर रही है. इंद्र उसे देख कर कामुक हो गए. दोनों ने एक दूसरे को बड़े ही आकर्षित होकर देखा. तभी वहां से दुर्वासा ऋषि निकले. उन्हें देख देवराज इंद्र ने प्रणाम किया तो आशीर्वाद स्वरुप दुर्वासा ऋषि ने इंद्र को भगवान विष्णु का दिया पारिजात का पुष्प दे दिया और कहा यह पुष्प जिसके भी मस्तक पर होगा वह तेजस्वी और परम बुद्धिमान होगा, माता लक्ष्मी सदैव उसके पास रहेंगी और उसकी पूजा भगवान विष्णु की तरह होगी.
देवराज इंद्र ने उस पुष्प को हाथी के सिर पर रख दिया ऐसा करने से देवराज इंद्र का तेज समाप्त हो गया और अप्सरा रंभा भी उन्हें वियोग में छोड़ कर चली गई वहीं हाथी भी इंद्र को छोड़कर चला गया और उसी जंगल में हथनी के साथ रहने लगा. इस बीच हाथी ने वहां रह रहे वन्य जीव जंतुओं और प्राणियों को बहुत परेशान किया. हाथी का अहंकार खत्म करने के लिए दैवीय घटना घटित हुई, और उस हाथी का सिर काट कर गणेश जी के धड़ में लगाया गया. जो वरदान पारिजात के पुष्प को प्रदान था वह गणेश जी को मिला
तर्क के आधार पर
तर्क के आधार पर पढ़ने को मिलता है कि अगर भगवान शिव गणेश जी को किसी और व्यक्ति का चेहरा लगाते तो गणेश जी को उनके स्वरूप से कोई नहीं जानता. उन्हें उस व्यक्ति के स्वरूप से जानता जिसका चेहरा गणेश जी के धड़ से जोड़ा जाता. इसीलिए गणेश जी को गज यानी कि हाथी का चेहरा लगाया गया
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