धर्म-अध्यात्म

चाणक्य नीति के असुसार इन परिस्थितियों में दूसरों के कर्म की सजा भी आपको भोगनी पड़ सकती है, हमेशा इन्हें सही राह दिखाएं

Tara Tandi
4 Aug 2021 6:40 AM GMT
चाणक्य नीति के असुसार इन परिस्थितियों में दूसरों के कर्म की सजा भी आपको भोगनी पड़ सकती है,  हमेशा इन्हें सही राह दिखाएं
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शास्त्रों में कर्मफल के बारे में कहा गया है कि व्यक्ति जैसे कर्म करता है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | शास्त्रों में कर्मफल के बारे में कहा गया है कि व्यक्ति जैसे कर्म करता है, वैसे ही उसको फल भोगने पड़ते हैं. इसलिए हर व्यक्ति को सही कर्म करने और धर्म के मार्ग पर चलने की सलाह दी जाती है. लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में दूसरों के कर्म की सजा भी आपको भोगनी पड़ सकती है क्योंकि उनके कर्मों से आपका जीवन जुड़ा होता है. इसलिए ऐसे लोगों को हमेशा सही सलाह देनी चाहिए और उन्हेंं गलत काम करने से रोकना चाहिए. आचार्य चाणक्य ने भी ऐसे कुछ लोगों का वर्णन चाणक्य नीति में किया है. आप भी जानिए इनके बारे में.

राजा राष्ट्रकृतं पापं राज्ञ: पापं पुरोहित:

भर्ता च स्त्रीकृतं पापं शिष्यपापं गुरुस्तथा

1. इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जब किसी राजा के शासन काल के मंत्री, पुरोहित या सलाहकार अपने कर्तव्यों का निर्वहन ठीक तरीके से नहीं कर पाते हैं तो उस राज्य का राजा भी अपने कर्तव्य से विमुख हो जाता है. ऐसे में वो कई बार गलत फैसले ले लेता है. उसके गलत फैसलों के जिम्मेदार वो पुरोहित, सलाहकार और मंत्री ही होते हैं. ऐसे में राजा के गलत फैसलों की सजा उसके राज्य से जुड़े लोगों समेत उसकी निर्दोष प्रजा को भी भुगतनी पड़ती है. इसलिए राजा के पुरोहित, सलाहकार और मंत्री का काम है कि वो राजा को सही राह दिखाएं. का कर्तव्य है कि वह राजा को सही सलाह दें और गलत काम करने से रोकें।

2. आचार्य कहते हैं कि विवाह के बाद पति और पत्नी का संबन्ध ही नहीं उनका जीवन भी एक दूसरे से जुड़ जाता है. ऐसे में यदि कोई पत्नी गलत कार्य करती है, अपने कर्तव्यों का पलन ठीक से नहीं करती है तो उसके कार्यों की सजा उसके पति को भी भुगतनी पड़ती है. उसी तरह यदि किसी का पति व्याभिचारी है, तो उसके कर्मों की सजा पत्नी को भुगतनी पड़ती है. इसलिए दोनों को हमेशा एक दूसरे को सही राह दिखानी चाहिए.

3. इस नीति के अंत में चाणक्य ने बताते हैं, कि एक शिष्य अच्छा काम करता है तो प्रसिद्धि गुरू को भी मिलती है और अगर वो गलत कार्य करेगा तो उसका दुष्परिणाम भी गुरू को भोगना पड़ेगा. इसलिए गुरू को चाहिए कि वो अपने शिष्य को गलत कार्य करने से रोके और उसका मार्गदर्शन करे.

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